“सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए ‘डेडलाइन’ तय करने पर सुनवाई शुरू—राष्ट्रपति संदर्भ पर संविधान पीठ बोलेगी”
नई दिल्ली । 19 अगस्त 25 : क्या राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की मंजूरी के लिए कोई समयसीमा तय की जा सकती है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई होगी।
इससे पहले 29 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने केंद्र और सभी राज्यों को 12 अगस्त तक लिखित पक्ष जमा करने को कहा था। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल हैं।
बेंच ने बताया था कि 19 अगस्त को केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों की प्रारंभिक आपत्तियों पर एक घंटे की सुनवाई होगी, जिन्होंने इस राष्ट्रपति के रेफरेंस की वैधता पर सवाल उठाया है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से क्या राय मांगी थी…
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी कि क्या राष्ट्रपति या राज्यपाल विधेयकों पर फैसला लेने में अनिश्चित काल तक देरी कर सकते हैं या कोई समयसीमा तय की जा सकती है।
राष्ट्रपति ने 15 मई को 5 पन्नों के अपने रेफरेंस में सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यह मामला पूरे देश को प्रभावित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने की समयसीमा तय की थी
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को रोके नहीं रख सकते और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी।
गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स
1. बिल पर फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं।
2. ज्यूडिशियल रिव्यू होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा।
3. राज्य सरकार को राज्यपाल को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे।
4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी।