राज्यपाल ने ‘अपराजिता विधेयक’ ममता सरकार को लौटाया, संवैधानिक सवालों पर जताई आपत्ति

0 17

पश्चिम बंगाल, 26 जुलाई 2025 । पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई है। राज्यपाल डॉ. सी.वी. आनंद बोस ने ममता बनर्जी सरकार द्वारा विधानसभा में पारित किए गए बहुचर्चित ‘अपराजिता विधेयक’ को वापस लौटा दिया है। उन्होंने इस विधेयक की वैधता, प्रक्रिया और संवैधानिक प्रावधानों को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है।

क्या है अपराजिता विधेयक?
‘अपराजिता विधेयक’ राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण और पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में 50% आरक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाया गया था। विधेयक में यह प्रावधान किया गया था कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगरपालिका और निगमों में महिलाओं को समान भागीदारी मिले और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित हो।

ममता सरकार ने इसे “ऐतिहासिक कदम” करार दिया था और दावा किया था कि इससे राज्य में महिला नेतृत्व को नई दिशा मिलेगी।

राज्यपाल की आपत्ति:
राज्यपाल बोस ने इस विधेयक को वापस भेजते हुए कहा कि इसमें कई प्रक्रियात्मक और संवैधानिक त्रुटियां हैं। उनके अनुसार:

  • विधेयक पारित करते समय विधानसभा में आवश्यक बहस और विरोध को दरकिनार कर दिया गया।

  • यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है, ऐसे में केंद्र सरकार से सलाह लिए बिना राज्य को अकेले निर्णय नहीं लेना चाहिए।

  • विधेयक की कुछ धाराएं मौजूदा पंचायत कानून और निकाय अधिनियमों से टकरा रही हैं।

राज्यपाल ने सरकार से विधेयक पर पुनर्विचार करने और आवश्यक संशोधनों के साथ दोबारा प्रस्तुत करने को कहा है।

ममता सरकार की प्रतिक्रिया:
राज्य सरकार ने राज्यपाल की कार्रवाई को “राजनीतिक प्रेरित” और “लोकतंत्र विरोधी” बताया है। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि यह राज्य सरकार की महिलाओं को सशक्त बनाने की नीति के खिलाफ एक सोची-समझी साजिश है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया में कहा,

“जब महिला सशक्तिकरण की बात आती है, तब भाजपा और उनके समर्थक शक्तियां इसे रोकने में लग जाती हैं। लेकिन बंगाल की महिलाएं झुकेंगी नहीं।”

राजनीतिक असर:
इस घटनाक्रम से तृणमूल कांग्रेस और राज्यपाल के बीच पहले से चल रहे टकराव को और हवा मिली है। विपक्षी भाजपा ने राज्यपाल के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार विधेयक को लेकर जल्दबाज़ी में थी और इसमें स्पष्टता नहीं थी।

विशेषज्ञों की राय:
संवैधानिक जानकारों का मानना है कि राज्यपाल के पास विधेयक को वापस भेजने का अधिकार है, लेकिन उसे बार-बार अस्वीकार करना केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित करता है। उनका मानना है कि यदि विधेयक जनहित में है, तो सरकार को सभी प्रक्रियाएं पूरी करके दोबारा विधानसभा से पारित करना चाहिए।

‘अपराजिता विधेयक’ को लेकर पैदा हुआ यह विवाद महज एक कानूनी बहस नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकार, राजनीति और केंद्र-राज्य संबंधों का भी महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। अब यह देखना होगा कि ममता सरकार इस विधेयक को किस तरह संशोधित कर फिर से आगे बढ़ाती है, और क्या राज्यपाल उसे इस बार मंजूरी देते हैं या नहीं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.