दो वर्ग दृष्टिकोण के बीच टकराव

अंध आस्था आज समाज के विकास में बाधक

0 704

ब्रह्मानंद ठाकुर
एक शिक्षक ने अपने विद्यालय के छात्रों को कविता के माध्यम से कांवड़ यात्रा की जगह ज्ञानार्जन की सलाह क्या दी, पूरा बबाल मच गया। शिक्षक के विरुद्ध एफआईआर तक दर्ज करा दी गई। यह लिखते हुए मुझे मुंशी प्रेमचंद याद आ गये। धर्मतत्व के बारे में कभी उन्होंने लिखा था—‘ मैं उस धर्म को कभी स्वीकार नहीं करना चाहता जो मुझे यह सिखाता हो कि इन्सानियत, हमदर्दी और भाईचारा सब कुछ अपने ही धर्म वालों के लिए है, उस दायरे के बाहर जितने लोग हैं, वे सभी गैर हैं। यहां तो वह शिक्षक और उनकी कविता पर बबाल मचाने वाले दोनों एक ही धर्म के हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि एक का दृष्टिकोण वैज्ञानिक और तर्क संगत है और दूसरा अंध आस्था वाला अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है। यही अंध आस्था आज समाज के विकास में बाधक है। यहां मैं किसी धर्म की मुखालफत नहीं कर रहा, धर्म को मैं व्यक्तिगत आस्था और विश्वास मानता हूं। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म को बिल्कुल व्यक्तिगत मामला ही रहने देना चाहिए। अब जरा यह भी जान लीजिए कि वह शिक्षक कौन हैं और उस कविता में शिक्षक ने आखिर कहा क्या है? शिक्षक का नाम है रजनीश गंगवार। वे यूपी के बरेली जिला अंतर्गत एमजीएम इंटर कालेज, बहेड़ी में शिक्षक हैं। प्रार्थना सभा में एक दिन उन्होंने छात्रों को एक कविता सुनाई। कविता का आशय था कि कांवड़ ढोने के बजाय तुम ज्ञानार्जन करो। ज्ञान अर्जित कर मानवता की सेवा करो। नशापान से बचें और सत्कर्म करो। कविता की पंक्ति है—
‘शिक्षा है जग-जग की जननी, उसका दूध पियो तुम
सत्कर्मों का रहस्य बड़ा है, उसका रूप गुनों तुम।’
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी ने भी तो शिक्षा का महत्व बताते हुए कहा था— शिक्षा शेरनी का वह दूध है, जो पियेगा, वह दहाड़ेगा! मतलब शिक्षा हर तरह के शोषण के विरुद्ध एक कारगर हथियार है। यह हमें वर्ग शत्रु की पहचान कराता है। शोषितों-पीड़ितों को अपने हक के लिए लड़ने की ताकत देता है। कभी हमारे देश के मनीषियों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने वाली, अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और अंध आस्था से मुक्ति दिलाने वाली शिक्षा पर विशेष बल दिया था। आज उसी वैज्ञानिक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विरोध किया जा रहा है। शिक्षक रजनीश गंगवार ने कहा है कि उनका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को आहत करना नहीं था। उन्होंने तो अपनी कविता के माध्यम से छात्रों को अपनी पढ़ाई-लिखाई पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी है। सवाल है कि क्या ऐसी सलाह देना अपराध है? इसे वर्गीय दृष्टिकोण से समझने की जरूरत है। धर्म आज समाज की किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकता। इस संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था ने धार्मिक क्रियाकलापों को भी विकृतियों का शिकार बन दिया है। ‘हमसे भंगिया न पिसाई हो गणेश के पापा’ और पिकप वाहनों पर एक से डेढ़ दर्जन की संख्या में हार्न बांधकर तेज आवाज में डीजे बजाने, डांस करने वाले कथित शिवभक्त आखिर समाज को क्या संदेश दे रहे हैं? है किसी में हिम्मत जो इनकी मुखालफत करे, ऐसा करने से रोके! भक्ति तो शुद्ध अंत:करण की चीज है। रजनीश गंगवार की वह कविता सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। बहरहाल खबर है उस कविता की कुछ पंक्तियों पर आपत्ति जताते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए और भारतीय न्याय संहिता की धारा 353(2) के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गई है। बताया जाता है कि रजनीश गंगवार एक शिक्षक के साथ-साथ कवि और स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। वैज्ञानिक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के निहितार्थ को समझने की जरूरत है।

 

 

ब्रह्मानंद ठाकुर
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
Leave A Reply

Your email address will not be published.