घायल और बीमार गायों के लिए कृष्णायन का समर्पण

0 65

भारत की संस्कृति में गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि मातृभावना और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। प्राचीन काल से ही गाय का महत्व धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन में रहा है। आज जब नगरीकरण और औद्योगीकरण की तेज़ी ने पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर असर डाला है, तब भी कुछ संस्थाएँ ऐसी हैं जो परंपराओं और मानवीय कर्तव्यों को आगे बढ़ाते हुए गौसेवा के महान कार्य में संलग्न हैं। इन्हीं में से एक है कृष्णायन गौशाला, जो विशेष रूप से घायल और बीमार गायों के लिए समर्पित है।

कृष्णायन गौशाला का मूल उद्देश्य केवल गायों को आश्रय देना ही नहीं, बल्कि उनकी देखभाल, उपचार और पुनर्वास करना है। यहाँ सड़क दुर्घटनाओं में घायल गायों, बीमारियों से पीड़ित गौवंश और परित्यक्त बछड़ों को अपनाकर सुरक्षित वातावरण दिया जाता है। आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं और अनुभवी पशु-चिकित्सकों की मदद से उनका इलाज किया जाता है। दवाइयों, पौष्टिक आहार और उचित देखभाल के साथ यहाँ उन्हें स्वस्थ जीवन जीने का अवसर मिलता है।

कृष्णायन गौशाला केवल उपचार केंद्र नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना और सेवा का जीवंत प्रतीक है। यहाँ स्वयंसेवक और स्थानीय लोग भी सेवा में भाग लेते हैं, जो समाज में करुणा और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है। यह संस्था यह संदेश देती है कि पशु हमारे सहचर हैं और उनकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।

समाज में जहाँ गायों को अक्सर लावारिस अवस्था में सड़कों पर छोड़ दिया जाता है, वहाँ कृष्णायन गौशाला की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह न केवल घायल और बीमार गायों के लिए आश्रयस्थल है, बल्कि इंसानियत और सहानुभूति की सजीव मिसाल भी है।

अतः कहा जा सकता है कि कृष्णायन गौशाला का कार्य हमें यह सिखाता है कि सेवा केवल मनुष्यों की ही नहीं, बल्कि उन मूक प्राणियों की भी होनी चाहिए जो अपने दर्द को शब्दों में नहीं कह सकते। यह प्रयास समाज को अधिक संवेदनशील और करुणामय बनाने की दिशा में एक प्रेरक कदम है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.