सेटा और एफटीए पर किसान संगठनों की भौहें हुई तिरछी

संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर आंदोलन की तैयारी में

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ब्रह्मानंद ठाकुर
भारत का प्रमुख किसान संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर आंदोलन की राह पर है। इस बार यह आंदोलन भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच प्रस्तावित कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक ट्रेड एग्रीमेंट (एसइटीए) और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) समझौते के विरोध में किया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने इन दोनों प्रस्तावित समझौते को पूरी तरह खारिज कर दिया है। इसने आगामी 13 अगस्त को कारपोरेट भारत छोड़ो दिवस पर देश भर में सेटा और एफटीए की प्रतियां जलाने, ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल रैलियां निकालने, और व्यापक विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है। मोर्चा के मीडिया सेल द्वारा इस सम्बंध में एक विज्ञप्ति जारी की गई है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि मोदी सरकार एक ओर उग्र राष्ट्रवाद का ढोल पीटती है, वहीं दूसरी ओर साम्राज्यवादी ताकतों के सामने घुटने टेककर देश और जनता के हितों से विश्वासघात कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि यह समझौता भारतीय अर्थव्यवस्था पर साम्राज्यवादी नियंत्रण को और मजबूत करेगा। यह उसी प्रकार का बाजार हस्तक्षेप है जैसा कि औपनिवेशिक काल में ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था। मोदी सरकार भारत के बाजारों को फिर से साम्राज्यवादी ताकतों के हवाले करना चाहती है। एसकेएम का मानना है कि भारत और ब्रिटेन की सरकारें तथा विदेशी और घरेलू कारपोरेट मीडिया इस समझौते को भारी व्यापारिक लाभों वाला बता रहे हैं, लेकिन प्रारंभिक समीक्षा से पता चलता है कि भारत के लिए कई संवेदनशील क्षेत्रों में तत्काल और लगातार आयात की बाढ़ का खतरा है। अनेक ऐसे टैरिफ श्रेणियां हैं जिन पर भारत को तुरंत सभी सीमा शुल्क समाप्त करने होंगे या गहरे कटौती करने होंगे। मांस और समुद्री उत्पादों के व्यापार में संपूर्ण टैरिफ उन्मूलन प्रस्तावित है, जो किसानों, मछुआरों और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में लगे लघु व सूक्ष्म उद्यमों के हितों के विरुद्ध है। एसइटीए में प्राथमिक उत्पादों की एक लंबी सूची है, जिन पर भारी टैरिफ कटौती या समाप्ति की बात है– जैसे साल्मन, सारडीन, मैकेरल, टूना, हिलसा, झींगा आदि (ताजे व प्रसंस्कृत रूप में), भेड़ का मांस, पालक, मशरूम, तरबूज, खुबानी, शरीफा, आम, आम का गूदा, केला, सूरन, अरबी, कच्चे केले, इमली आदि। मसाले, मक्के का आटा, राई का आटा, ब्राउन राइस का आटा, जई, बीटल पत्ते, कोको बीन्स, कोको पाउडर, माल्टेड मिल्क भी सूची में हैं।इस सूची में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद व पेय पदार्थ (जैसे शराब व अन्य मादक पेय) भी हैं, जिन पर तुरंत उदारीकरण का प्रस्ताव है। ये सारे उत्पाद भारतीय किसानों लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए गंभीर खतरा हैं। भारत अब तक अपने सरकारी खरीद क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए बंद रखता था ताकि स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा मिले। अब करीब 114 अरब डॉलर (₹9.80 लाख करोड़) के सरकारी खरीद बाज़ार में ब्रिटिश कंपनियों को प्रवेश मिल जाएगा, जो लघु, कुटीर एवं मध्यम उपकरण वाले उद्योगों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। एसकेएम का मानना है कि इसका सीधा लाभ बड़े कृषि-व्यवसायों को होगा। छोटी घरेलू इकाइयाँ और किसान हाशिए पर धकेल दिए जाएंगे। अंगूर, प्याज, शहद, केले, बिस्किट, बेकरी उत्पाद, नट्स आदि के निर्यात पर शुल्क में कटौती का लाभ भी प्राथमिक उत्पादकों तक न पहुंचकर बड़ी कंपनियों को मिलेगा। भारतीय कृषि असुरक्षित हो जाएगी। एसकेएम की चिंता इस बात को लेकर भी है कि कर्ज, लागत, जलवायु संकट और गिरते जलस्तर की वजह से भारतीय कृषि आज संकट में है। किसान आंदोलन का संघर्ष “न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी”, कर्जमाफी और सरकारी समर्थन की मांग के इर्द गिर्द केंद्रित है, लेकिन मोदी सरकार उनकी मांगों के प्रति असंवेदनशील बनी हुई है।

 

Preparation for farmer movement again
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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