वेदों में वर्णित गौमाता का गौरव

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भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान प्राप्त है। वैदिक काल से ही गौ माता को अत्यंत पूजनीय माना गया है। वेदों में गाय को “अघन्या” अर्थात् कभी न मारने योग्य कहा गया है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद — सभी वेदों में गौमाता का विस्तृत उल्लेख मिलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गाय का सम्मान केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है।

गाय का वैदिक महत्त्व:

वेदों में गाय को समृद्धि, शांति और उर्वरता का प्रतीक बताया गया है। ऋग्वेद में कहा गया है:
“गोभिः प्राणं दधाम्यहम्” — अर्थात गायों से हमें प्राणवायु (जीवन ऊर्जा) प्राप्त होती है।
ऋग्वेद के अनेक सूक्तों में गाय को “कामधेनु” कहा गया है — ऐसी दिव्य शक्ति जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है।

  • ऋग्वेद (6.28.1): गाय को घर की लक्ष्मी बताया गया है।

  • अथर्ववेद (11.1.34): गौ रक्षा से राष्ट्र की समृद्धि और कल्याण सुनिश्चित होता है।

  • यजुर्वेद (13.49): गौमाता को पृथ्वी की सबसे पवित्र जीव बताया गया है।

गौसेवा का आध्यात्मिक पक्ष:

गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास बताया गया है।

  • गाय का दूध, घी, दही, गोमूत्र और गोबर — ये पाँचों “पंचगव्य” कहलाते हैं, जिनका उपयोग धार्मिक कर्मकांड, औषधि निर्माण और भूमि उर्वरक के रूप में होता है।

  • गौमाता को भोजन कराना दान के सर्वोत्तम रूपों में से एक माना गया है।

  • श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में गोकुल में गायों की सेवा को ही सर्वोच्च धर्म कहा।

आर्थिक और पर्यावरणीय योगदान:

वेदों में गाय को “धन की जननी” कहा गया है। कृषि-प्रधान समाज में गाय से न केवल दूध मिलता है, बल्कि

  • उसके गोबर से ईंधन, खाद और कीटनाशक बनते हैं,

  • गोमूत्र से औषधियां बनाई जाती हैं,

  • और वह खेत जोतने में भी सहायक रही है।
    यही कारण है कि वैदिक युग में गायें राष्ट्र की संपत्ति मानी जाती थीं।

गौमाता का गौरव वेदों में केवल धार्मिक भावना से नहीं, अपितु जीवन के सभी पहलुओं — स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, और अध्यात्म — से जुड़ा हुआ है। वेदों में गौ रक्षा को राष्ट्र रक्षा के समकक्ष माना गया है। आज के युग में भी यदि हम वैदिक दृष्टिकोण से गाय की सेवा करें और संरक्षण करें, तो यह न केवल सांस्कृतिक पुनर्जागरण होगा, बल्कि सतत विकास और ग्राम स्वराज्य की दिशा में भी एक ठोस कदम होगा।

संदेश:

गौ माता केवल एक पशु नहीं, बल्कि भारतीय जीवनदर्शन की जीवंत परंपरा हैं — उनका सम्मान करना हमारी वैदिक जिम्मेदारी है।
“गावो विश्वस्य मातरः” — गायें सम्पूर्ण विश्व की माताएं हैं।

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