“एक देश‑एक चुनाव से GDP 1.5% तक बढ़ सकती है” — वित्त मंत्री, विशेषज्ञ और BJP समर्थन
नई दिल्ली । 31 जुलाई 2025 । एक देश-एक चुनाव पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की छठी बैठक बुधवार को संसद भवन एनेक्सी में हुई। 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और इकोनॉमी की प्रोफेसर डॉ. प्राची मिश्रा ने अपनी राय रखी।
न्यूज एजेंसी ANI सूत्रों के हवाले बताया कि दोनों ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने को आर्थिक रूप से फायदेमंद बताया। उन्होंने कहा कि इससे चुनावों के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।
अपने साझा प्रेजेंटेशन में दोनों एक्सपर्ट्स ने बताया कि 2023-24 के आंकड़ों के हिसाब से GDP में यह बढ़ोतरी 4.5 लाख करोड़ रुपए की होगी। हालांकि, चुनावों के बाद ज्यादा खर्च होने से राजकोषीय घाटा (सरकार का खर्च) भी करीब 1.3 प्रतिशत बढ़ सकता है।
एक्सपर्ट्स ने बार-बार चुनाव के नुकसान बताए
- बार-बार चुनाव होने से मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन पर्यटन और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ता है। प्रवासी मजदूर अक्सर अपने घर लौट जाते हैं। इससे प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है।
- भारत की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा प्रवासी मजदूरों का है। बार-बार चुनाव उन पर वित्तीय बोझ डालते हैं। इससे उनके मतदान के अधिकार का इस्तेमाल कमजोर होता है।
- बार-बार चुनाव होने पर शिक्षकों को बार-बार चुनाव ड्यूटी पर लगाया जाता है। साथ ही स्कूलों को मतदान केंद्र बना दिया जाता है। इससे स्कूलों में दाखिला 0.5 प्रतिशत कम हो जाता है।
- बार-बार चुनाव ड्यूटी के लिए पुलिस के इस्तेमाल से अपराध में वृद्धि होती है, क्योंकि पुलिस की तैनाती लंबे समय तक रहती है।
- आचार संहिता बार-बार लागू करनी पड़ती है। इससे सरकार का कामकाज सीमित हो जाता है और विकास कार्य धीमे पड़ जाते हैं।
- भारत में 1986 के बाद से एक भी साल ऐसा नहीं रहा जब चुनाव न हुए हों। इससे देश लगातार चुनावी मोड में रहता है। इससे ‘लोकलुभावन वादों का फैलाव’ होता है।
8 जनवरी को JPC की पहली बैठक हुई थी। इसमें सभी सांसदों को 18 हजार से ज्यादा पेज की रिपोर्ट वाली एक ट्रॉली दी गई थी। इसमें हिंदी और अंग्रेजी में कोविंद समिति की रिपोर्ट और अनुलग्नक की 21 कॉपी शामिल है। इसमें सॉफ्ट कॉपी भी शामिल है।