बहुत बोलना इस दल की बीमारी तो नहीं 

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बाबा विजयेन्द्र 

कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी वरना मोदी ट्रंप का नाम अवश्य लिया होता। आखिर क्या है भारत की मजबूरी जो सरकार ट्रंप का नाम नहीं ले रही है। बड़ी मुश्किल से सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करने के लिए तैयार हुई। पर जिस बात की अपेक्षा थी वह पूरी नहीं हुई। संसद सत्र की शुरुआत होते हैं प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्रा पर निकल गए। विपक्ष का दबाव बढ़ा तब कहीं मौके की नजाकत को देखते हुए मोदी विपक्ष का जबाव देने के लिए सदन में खड़े हुए।

अमूमन पूर्व की भांति मोदी ने संसद में लंबा भाषण दिया पर जिस प्रश्न का उत्तर देना था उसे ही गोल कर दिया। सवाल का जबाव देने के बजाय सवाल ही करते नजर आए। तुम मुझे घेरो और हम तुम्हे घेरें, यही चलता रहा। इधर-उधर की कहानी बहुत कही गई कि वेंस से कितनी देर बातचीत हुई और क्या बातचीत हुई। पुलवामा से लेकर पहलगाम तक सुरक्षा में सेंध क्यों लगी और कैसे लगी, इसे बताने में मोदी असमर्थ नजर आए।

कौन किसको मारा और कितना मारा इसका ठोस आकलन सामने नहीं आया है। भारत के नागरिक होने के नाते स्वदेश के प्रति लगाव का होना स्वाभाविक है, पर वास्तविक जानकारी जरूरी तो है ही।

बात विजय की कितनी भी कर लें, पर पाकिस्तान की सेहत पर कोई असर नहीं दिख रहा है। पाकिस्तान की सरकार और सेना सभी मस्त हैं। किसी बात की कोई परवाह पाकिस्तान को नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख ट्रंप से मुलाकात करते हैं, पर ट्रंप मुनीर को हड़काते हुए नजर नहीं आते हैं। एक बार भी ट्रंप ने पाकिस्तान से नहीं पूछा कि तुम ऐसी छिछोरी हड़कत क्यों करते हो और निर्दोषों को क्यों मारते हो? आतंकवाद के प्रश्रय देने के नाम पर अमेरिका ने लताड़ भी नहीं लगाया।

सच यही है ट्रंप भारत के साथ खेल रहा है। हम विदेश खूब जाते हैं पर हमारी नीतियां कहीं ठहरती नहीं दिखती है। मोदी के निरंतर देसाटन से अबतक देश को कोई दिव्यता नहीं मिल पाई है। भारत के नाम का डंका कहां बज रहा है? यह आवाज कहीं सुनाई नहीं देती है।

चैनलों पर एंकर उछल-उछल कर बम फोड़ते नजर आए। इन पालतू पत्रकारों ने फालतू का खबर चलाया। ऐसा दृश्य उपस्थित किया कि मानो हम भारत विजय के बाद कराची की गलियों में घूम रहे हैं। इस मीडिया- मिसाइल की जानकारी हमारी सेना को भी नहीं होती थी। हमारी सेना को भी यह देख आश्चर्य होता था कि मीडिया एक कदम आगे क्यों नजर आ रहा है। इस मीडिया-वार से हमारे जाबांज भी बहुत परेशान रहे। सेना के शौर्य पर हमें पूरा गर्व है पर इस बदचलन मीडिया ने जिस तरह मोदी को महानायक बना रहा था वह दुर्भाग्यपूर्ण था।

भारत की संप्रभुता में ट्रंप का हस्तक्षेप यह अब तक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। ट्रंप के सीज फायर की घोषणा से भारत की वैश्विक स्थिति बहुत ही कमजोर हुई है। सीजफायर की सूचना ट्रंप ने दी, यह सच है पर सरकार की निर्लज्जता ऐसी कि इसपर कुछ बोल नहीं रही है।

मोदी जबाव देने के बजाय कांग्रेस को ही कोसते नजर आए।

अब आमलोगों को यह महसूस होने लगा है कि मोदी के भाषण में फेंक-तत्व ज्यादा रहता है। अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए यह हुकूमत कोई भी काम कर सकती है। संभव है कि पहलगाम इनके ही किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा हो?

पाकिस्तान की सरकार भी अपने नागरिकों से अशांत है। भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कुछ तुम मारो और कुछ हम मारें। मोदी और मुनीर की चाल को समझना जरूरी है।

दोनों ही देश के बुनियादी सवाल सरकार का पीछा कर रहे हैं। दोनों देश की सरकारें बचने का हर प्रकार का तिकड़म करती रहती है। प्रॉक्सी या कहें फेकवार की कहानी लिखी जाती रही है। दाल में कुछ काला या पूरी दाल ही काली है, विचारना जरूरी है।

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