ब्रह्मानंद ठाकुर
आज के अधिकांश कलमकार समझौतावादी बन चुके हैं। उनकी कलम शोषितों-पीडितों, दलितों और ताकतवरों द्वारा विभिन्न तरीकों से सताए जा रहे आवाम की पीड़ा को अब आवाज नहीं देती, कभी देती थी। दुनिया में ऐसे कलमकारों की लम्बी फेहरिस्त रही है। देखता हूं आज इनकी संवेदना मर रही है। लगता है, हिंदी साहित्य का रीतिकाल लौट आया है। लेखक कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से सत्ताधीशों के प्रशस्ति गान में जुटे हुए हैं। सत्ता की आंख में उंगली डालकर सच दिखाने की हिम्मत उनमें इसलिए नहीं है कि वे सत्ता से कुछ पाने की उम्मीद संजोए हैं। उनकी उम्मीदें पूरी भी हो रही हैं। ऐसे में बेचारी जनता की कौन सुने, कौन पूछे। सभी लेखक प्रेमचंद तो नहीं होते, जो मुफलिसी में जीते हुए भी व्यापक जनहित में लिखते रहने के लिए सरकारी सुख-सुविधा के तमाम आफर ठुकरा दे। यही हाल पत्रकारिता का भी है। चूंकि पत्रकारिता भी साहित्य की एक विधा होती है, इसलिए देखता हूं, इस क्षेत्र में भी रीतिकाल की वापसी हो चुकी है। प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक। अपने आकाओं को गुहरा रहे हैं। जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे, तुम दिन को रात कहो, रात कहेंगे। साहित्य से पत्रकारिता तक में इसी फिल्मी गीत का भाव नजर आ रहा है। ऐसे में बाबा विजयेन्द्र के यूट्यूब चैनल ‘द डायलाग’ पर बीते दिनों एक रिपोर्ट देखा, मुन्नी विद्रोही होगी, हल्कु अब तेरे लिए। द डायलाग पर ऐसे रिपोर्ट आते रहते हैं। ये सभी रिपोर्ट शोषणमूलक राज सत्ता के चाल-चरित्र से आम आवाम को अवगत कराने वाले होते हैं। बाबा विजयेन्द्र का व्यक्तित्व बहु आयामी है। पत्रकारिता और लेखन के साथ उनको खेती-किसानी और पशुपालन में भी महारत हासिल है। सब काम खुद करते हैं। लिहाजा किसानों की पीड़ा उनकी अपनी पीड़ा है। इसी पीड़ा को आवाज मिली है द डायलाग के ‘मुन्नी विद्रोही होगी हल्कू अब तेरे लिए’ रिपोर्ट में। देश में महाकुंभ की चर्चा जोरों पर है। करोड़ों लोग जुटेंगे इस महान कुम्भ में। इनकी सुरक्षा का बड़ा व्यापक इंतजाम है। मीडिया इसको पूरी प्राथमिकता से दिखा रहा है। महा कुम्भ के इस शोर में किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की सुध कौन ले? जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन का आज 44 वां दिन है। सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है। कितना बड़ा दुर्भाग्य! किसानों का उपजाया सब खाएं, किसानों की चिंता कोई नहीं करें! अनशन पर बैठे डल्लेवाल से मिलने एक पूर्व जज आए थे। उन्होंने डल्लेवाल से कहा, आप वेशक अपना अनशन समाप्त न करें, मगर मेडिकल ट्रीटमेंट जरूर लें। इसपर डल्लेवाल ने उनसे कहा, किसानी पहले है, सेहत बाद में। अपने इस रिपोर्ट में बाबा विजयेन्द्र ने प्रेमचंद की कहानी पूस की रात वाले हल्कु की चर्चा की है और उसकी पत्नी मुन्नी की भी। हल्कु की पीड़ा सनातन है। उस पीड़ा का प्रतिकार लगातार जारी है। हल्कु भारतीय किसानों का प्रतीक है। डल्लेवाल का भी। किसानों को उसकी उपज का दुगुना दाम भले ही न मिला, पीड़ा दुगुनी जरूर हो गई। इस पूस की रात मे भी हल्कु का अनशन जारी है। सरकार व्यस्त और मस्त है। एक किसान की जिंदगी का इस व्यवस्था के लिए कोई मोल नहीं। जनता को यह समझना होगा। बाबा की कलम में धार तो है! उस धार के सहारे हम चाहें तो सियासत को पछाड़ सकते हैं। मगर…?
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)