बाबा विजयेन्द्र
बाबा बुलडोजर नाथ की जय! यह जयकारा मैं नहीं लगा रहा हूँ। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियां ही यह जयकारा लगा रही है। योगीजी कहते हैं – हंगामा है क्यों बरपा, बुलडोजर ही तो चलाया है…इस पर देश के साहित्यकार कुछ लिखे या न लिखे, पर बशीर बद्र को जरूर कोट करने लग जाते हैं कि – लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में? उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है इससे प्रतीत होता है कि योगीजी सबको यानी दुष्टों को मिट्टी में मिला देने के लिए ही राजनीति में आये हैं? फिलहाल ताबड़तोड़ एक्शन जारी है। कोर्ट का आदेश ठेंगा पर? कोर्ट डाल-डाल तो योगी पात-पात! बस इन्हे किसी को मिट्टी में मिलाना है, तो मिलाना है, कौन रोकेगा इन्हे? ऊपर पर नरेंद्र और शाह बैठे हों तो उत्तर प्रदेश में नादिरशाह हुए बिना सत्ता में बने रहना इनके लिए मुश्किल है। योगी का बुलडोजर केवल मकान को ही ध्वस्त नहीं करता, बल्कि किसी के अरमान को भी ध्वस्त करता है। हमें तो केवल बाहर की ही चोट दिखती है, पर भीतर की चोट कहीं और लग रही है। योगी के सूबा ने पीएम को पैदा किया। बनारस में जगह दी। माँ गंगा ने ही नहीं बल्कि इन्होने ही मोदी को बुलाया था। योगी जी के भीतर अब नारद मोह जाग्रत हो गया है। मोदी क्यों, अब हम क्यों नहीं? योगीजी बुलडोजर पर चढ़कर दिल्ली आना चाहते हैं। रामराज बाद में कायम होगा, पहले अपना राज कायम हो जाय? मंशा साफ़ है। सबसे बड़ा हिन्दू नेता कौन? इसे साबित करने के लिए ही उत्तर प्रदेश में सब कुछ हो रहा है। विकास तो यहाँ होना नहीं है। बुनियादी सवालों का समाधान देना भी नहीं है। आखिर किस आधार पर दिल्ली की सत्ता हासिल होगी? जो हो सकता था इस सरकार से, वही काम सरकार यहाँ कर रही है।
यह काम योगी ही कर सकते थे। ऐसी पृष्ठभूमि किसी और नेता की नहीं, बल्कि इनकी ही रही है। इन्होने कभी कमंडल नहीं देखा, बल्कि खंजर ही देखा है। रास्ते में शूल इतने थे कि ये त्रिशूल भूल गए? साधुता इनकी जाती रही। गड्ढे खोदने वालों के लिए ये कुँआ खोदने लगे। टिट फॉर टैट ! राजनीति भी उस जगह से इन्होने शुरू की जहाँ माफिया और गुंडाराज ही हुआ करता था। वह दौर बहुत ही मुश्किल भरा रहा होगा एक योगी के लिए? संयोग से माफिया सारे मुसलमान मिल गए? माफिया ने इनकी छवि बना दी एक फायर ब्रांड नेता की। फिर यही सिद्ध करने की कोशिश शुरू हो गयी कि दुष्ट दलन के लिए ही योगी जी का सत्तावतार हुआ है। योगी जी जिन प्रतीकों का और विम्बों का चयन करते हैं, यह इनके संस्कार का मामला है। हमने कभी भी इन्हे न तो प्रवचन सुनते देखा है, और न ही प्रवचन करते देखा है। बावजूद वस्त्र की अपनी भाषा तो होती ही है। इनका भाषण जब भी सामने आता है तो मिट्टी शब्द बार-बार गूंजता है। यह जीवन तो माटी का एक पुतला है, एक दिन उसे माटी में ही मिल जाना है। पर इतना जल्दी माटी में मिल जाना, थोड़ा खलता तो है ही? योगी जी का यह ब्रह्म भाव नहीं है। यह बदले की भावना है। अपेक्षा तो थी कि इनके भीतर बदलाव की भावना आ जाय, पर इसकी उम्मीद कम ही है।
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर अटैक का नया भेरिएंट आया है। माफिया, आतंकी और अपराधियों के मकानों पर बुलडोजर का चलना अब उत्तर प्रदेश की आम बात है। यह खबर अब उत्सुकता पैदा नहीं करती। मानवीय स्वभाव तो दया से भरा होता ही है। हम भी इस वेरिएंट को लेकर कभी-कभी चिंतित हो जाते हैं। हम तो किसी दुर्दांत के मरने पर भी उन्हें स्वर्गीय ही बोलते हैं। हम दुश्मन को भी नरकीय नहीं कहते हैं। हमारे पुरखों ने हमें सिखाया है कि पाप से घृणा करो, पापियों से नहीं। यहाँ कभी-कभी लगता है कि पाप से ज्यादा पापी से ही घृणा हो रही है। सब कुछ अब उल्टा-उल्टा सा दिख रहा है। यह आम धरना है कि साधु महात्मा सीधा लोग होते हैं, दयावान होते हैं। सब जीवों पर दया करने का पाठ साधु लोग पहले ही पढ़ लेते हैं। उत्तर प्रदेश में जब से साधु बाबा ने सत्ता की बागडोर सम्हाली तब से सारी परिभाषा ही बुलडोज हो गयी है। अब न्याय की परिभाषा बदल गयी है। विधायिका ही अब न्यायपालिका की भूमिका निभाने लगी है। अब कोर्ट कचहरी वकील जज का कोई रोल नहीं रह गया है।आने वाले दिनों में योगी जी याद किये जायेंगें कि न्याय पालिका से जुड़े लोगों का रोजगार कैसे उन्होंने छीन लिया था? तारीख पर तारीख वाला डायलॉग भी अब ख़त्म हो रहा है। यह रेपिड एक्शन पॉलिटिक्स है। अपराधी पर नकेल अवश्य कसा जाना चाहिए पर संविधान के दायरे में। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संविधान को चुनौती नहीं दी जा सकती है? कहीं यह कोशिश तो नहीं कि यह संविधान ही अर्थहीन है। अगर यह उपयोगी होता तो बुलडोजर एक्शन की जरुरत नहीं होती? अगर यह नैरेटिव है तो वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। कहीं बाबा द्वारा बाबासाहेब को मिटाने की साजिश तो नहीं? आखिर यह नयी बीजेपी ‘बुलडोजर जनता पार्टी’ होने को क्यों उतावली है?