किसान क्यों नहीं बेचना चाहते पैक्स को धान
सहकारिता विभाग के रिपोर्ट से हुआ खुलासा
ब्रह्मानंद ठाकुर
खबर है कि वर्तमान खरीफ मौसम में एमएसपी पर धान बेंचने वाले बिहार के 40 प्रतिशत किसानों को उनके धान की कीमत का भुगतान निर्धारित समय सीमा के भीतर नही हुआ है। यह मामला मुजफ्फरपुर, पटना, जहानाबाद, भोजपुर और जमुई जिलों से सम्बंधित है। यह खुलासा गत 8 दिसम्बर की सहकारिता विभाग के रिपोर्ट में हुआ है। राज्य मे इस बार 45 लाख मिट्रिक टन धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य है। इस लक्ष्य के विरुद्ध 8 दिसम्बर तक मात्र 3.11 प्रतिशत धान की खरीद की जा सकी है। ये आंकड़े इस बात के सबूत हैं कि भुगतान में देरी होने की वजह से ही अधिकांश छोटे और ठेका-बटाई पर खेती करने वाले किसान पैक्स और व्यापार मंडल को धान नहीं बैचना चाहते हैं। सरकारी अधिकारी किसानों के 48 घंटे के भीतर भुगतान कर देने की बात कहते हैं। ऐसा होता नहीं है। भुगतान के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है।
बिहार में धनकटनी का सीजन 15 अक्टुबर के बाद शुरू हो जाता है। रबी मौसम की खेती का समय 15 अक्टुबर से 30 दिसम्बर तक रहता है। इस अवधि में किसान धान काटने के बाद उस जमीन में मुख्य रूप से आलू, मक्का, गेहूं, तेलहनी और दलहनी फसल लगाते हैं। रबी की खेती के लिए किसानों को खेत की जुताई से लेकर खाद, बीज, कीटनाशक खरीदने के लिए एक मुश्त पूंजी की जरूरत होती है। इस पूंजी का जुगाड़ वे धान बेंच कर ही करते हैं। अधिकांश किसान लघु एव सीमांत किसान हैं। बड़े जोतदार अपनी जमीन इन्ही छोटे किसानों को बंटाई या पट्टे पर दिए हुए हैं। इसका सालाना रेंट 20 से 30 हजार रुपये प्रति एकड़ होता है। खेत में फसल तैयार होते ही इन्हें अपने भू-स्वामियों को जमीन का किराया देना होता है। फिर अगली खेती के लिए खाद-बीज समेत जरूरी सामग्रियों का इंतजाम भी करना होता है। सरकार ने बिहार के कुछ प्रमंडलों में 1 नवम्बर से धान क्रय की घोषणा की थी। ए ग्रेड धान का 2320 रुपये एवं साधारण धान का 2300 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी निर्धारित है। इस बीच सरकार ने 26 नवम्बर से 3 दिसम्बर तक राज्य में पांच चरणों में पैक्स चुनाव कराने का फैसला कर लिया। पैक्स चुनाव की गहमागहमी के कारण किसानों से धान की खरीद नहीं हुई। रबी की खेती करने और भूस्वामियों को रेंट भुगतान करने के लिए किसान मजबूरन बिचोलिए व्यापारियों के हाथ औने-पौने दाम पर धान बेच चुके हैं। इस बार इन्हें 1700 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान बेचना पड़ा है। व्यापारी उन्हें तत्क्षण भुगतान भी कर देते हैं। पैक्स को धान बेच कर भुगतान के लिए महीनों इंतजार करने का जहमत कौन उठाए? कुछ यही कारण है कि आम किसान एमएसपी पर पैक्स या व्यापार मंडल को धान बेचना नहीं चाहते। अब ऐसे में सवाल है कि धान अधिप्राप्ति का सरकार का निर्धारित लक्ष्य पूरा कैसे होता है? इसका जवाब इस विषय पर गहन शोध से ही मिल सकेगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)