सरकार को धान बेचने से क्यों बच रहे किसान?

धान का एमएसपी: सरकारी दावे और जमीनी हकीकत

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ब्रह्मानंद ठाकुर
चालू खरीफ मौसम के लिए सरकार ने एक ग्रेड धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2320 रुपये और सामान्य धान का मूल्य 2300 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। बाबजूद इसके किसान बिचौलिये व्यापारी से 1800 रुपये क्विंटल की दर पर अपना धान बैंच रहे हैं। सरकार को धान बेचने से क्यों बच रहे किसान? आखिर किसानों की क्या मजबूरी है कि वे अपना धान 500 रुपये प्रति क्विंटल घाटा सह कर बेंचने को मजबूर हैं?  यह समझने के लिए पहले एमएसपी पर धान क्रय की प्रक्रिया जानना जरूरी है। बिहार सरकार ने राज्य में पैक्स और व्यापार मंडल को धान क्रय के लिए अधिकृत किया हुआ है। धान क्रय के लिए इन एजेंसियों को किसान को भुगतान करने के लिए कैश क्रेडिट ऋण भी सरकार द्वारा दिया जाता है। यह बात दीगर है कि अधिकांश पैक्स या व्यापार मंडल कैश क्रेडिट का उपयोग इसलिए नहीं करते हैं कि इस राशि पर उन्हें ब्याज देना पड़ेगा। पैक्स, व्यापार मंडल जितना धान क्रय करता है, उसे वह कई लाट में चावल मिलों को पहुंचाता है। फिर वहां से तैयार चावल खाद्य निगम को देता है। खाद्य निगम जब भुगतान करता है तभी किसानों को उसके बचत खाता के माध्यम से भुगतान किया जाता है। यह प्रक्रिया इतनी लम्बी होती है कि भुगतान में काफी वक्त लग जाता है। किसानों को महीनो इंतजार करना पड़ता है। एमएसपी पर धान बेंचने के लिए किसानों को आनलाईन निबंधन कराना होता है, जिसमें बेंचे जाने वाले धान की मात्रा दर्ज करनी होती है। इसके बाद उन्हें अपने किराया पर पैक्स में धान पहुंचाना होता है। पैक्स में प्रति क्विंटल 5 किलो की कटौती की जातीं हैं। धान प्राप्ति की कोई पावती भी किसानों को नहीं दी जाती है। आम तौर पर पैक्स, व्यापार मंडल भुगतान के समय विभिन्न खर्च के नाम पर प्रति क्विंटल 200 रुपये की कटौती कर लेता है। इस बार पैक्स चुनाव के कारण धान की अधिप्राप्ति शुरू ही नहीं हो पाई है। जो किसान स्वेच्छा से पैक्स गोदाम में धान पहुंचा रहे हैं। उन्हें भुगतान के लिए चुनाव कार्य सम्पन्न होने तक इंतजार करना होगा।
लघु, सीमांत, ठीका-बटाई एवं लीज पर खेती करने वाले भूमिहीन किसानों को खरीफ के बाद रबी की खेती करने के लिए तत्काल पूंजी की जरूरत होती है। इस पूंजी की व्यवस्था वे धान बेच कर ही करते हैं। बिचौलिये व्यापारी इस स्थिति से फायदा उठाने में नहीं चूकते। वे प्रति क्विंटल 5 किलो की कटौती भी नहीं करते। किसानों को नगद भुगतान भी मौके पर कर देते हैं। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में किसान सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 2300 रुपये की जगह 1800 रुपये क्विंटल की दर से धान बेंचने को मजबूर हैं। वैसे सरकार का निर्देश है कि किसानों से धान अधिप्राप्ति के 48 घंटे के अंदर उनका भुगतान कर दिया जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। पैक्स और व्यापार मंडल द्वारा धान अधिप्राप्ति व भुगतान की देखरेख करने की जिम्मेवारी जिन अधिकारियों की है, वे भी किसानों को समय से भुगतान कराने के प्रति उदासीन बने रहते हैं।

 

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ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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