डॉ योगेन्द्र
कोलकाता एक अद्भुत शहर है। भव्य अट्टालिकाओं के सामने कंबल ओढ़कर सोया हुआ आदमी और कुत्ते दोनों मिल जायेंगे। सुबह सड़क पर निकला तो हल्की ठंड थी। बसें और कारें चलने लगी थी। लोग दफ़्तरों के लिए भी निकलने लगे थे। सड़क के दोनों किनारों पर बने फुटपाथ पर लगी दुकानों में रोटी- सब्ज़ी, चाय सहज ही उपलब्ध थे। यों ट्राम अंतिम साँसें गिन रही है, तब भी बॉलीगंज इलाके में वह सड़क पर घरघराती हुई चल रही थी। भव्य भवन तो है हीं, साथ ही पेड़- पौधों से भी यारी है। राधाकृष्ण मंदिर के पास वसंत का अहसास हुआ। कहीं से फूलों की भीनी भीनी गंध आ रही थी। दो तरह के पक्षी मिले- कबूतर और मैना। कोलकाता में आप हिंदी बोल कर आराम से अपना काम चला सकते हैं। बिहार में कोई ऐसा शहर नहीं है, जहाँ आप देश की कोई भी अन्य भाषा बोल कर आप काम चला सकें। हिन्दी प्रदेश के लोग भाग-भाग कर देश और विदेश के विभिन्न कोनों में गये और अपनी भाषा पर अड़े रहे। बंगाल में भी बिहार बसा लिया है। दिल्ली में भी बिहार का वर्चस्व बढ़ रहा है। हिन्दुस्तान की पुरानी राजधानी कोलकाता में भी हिन्दी और भारत की नयी राजधानी दिल्ली में भी हिन्दी। अमेरिका से जो अप्रवासी भारतीय भेजे जा रहे हैं, उसकी वजह क्या है? क्यों भारतीय अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करना चाहते हैं? क्योंकि हमारे यहाँ संपत्ति का केंद्रीकरण हो रहा है। लोगों को जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। बिहार से कोलकाता लोग भाग कर क्यों आये? क्योंकि आज तक बिहार अपने सभी नागरिकों को केंद्र में रखकर विकास की रूपरेखा गढ़ न सका।
भारत के छप्पन इंच वाले प्रधानमंत्री तो अमेरिका के सामने नतमस्तक हैं, लेकिन मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम ने ट्रम्प को ऐसा जवाब दिया कि सब हक्के बक्के रह गये। इस महान महिला ने ट्रंप को उनकी औकात दिखा दी। उन्होंने कहा- आपने दीवार बनाने की सोची, पर याद रखिए दीवार के उस पार 7 अरब लोग खड़े हैं। ये लोग आईफोन छोड़कर सैमसंग या हुआवेई पकड़ लेंगे। फोर्ड और चवरलेट की जगह टोयोटा, किया, होंडा चला लेंगे। डिज्नी की जगह लैटिन अमेरिकी फिल्में देखेंगे और नाइक की जगह मैक्सिकन पनाम जूते पहनेंगे। अगर इन 7 अरब उपभोक्ताओं ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स लेना बंद कर दिया, तो आपकी अर्थव्यवस्था दीवार के अंदर ही ढह जाएगी। तब आप खुद आकर कहेंगे- ‘प्लीज, ये दीवार हटा दो।’ हम ऐसा नहीं चाहते, लेकिन आपने दीवार मांगी, तो अब दीवार ही मिलेगी। बस याद रखिए, दुनिया बड़ी है और अमेरिका ही सब कुछ नहीं।” हमारे वाले तो गुम्मी लादे हैं। बोल ही नहीं फूट रहा। बोले भी तो क्या बोले? अबकी बार ट्रंप सरकार- का नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाया था। सोचा होगा कि वहाँ भी चुनावी प्रक्रिया में धाँधली होती होगी। उस बार तो ट्रंप हार गए और अब जीता है तो आग लगाये हुए है। दुनिया कोई बंद दड़बाजा नहीं है। इसे और भी खोलने की जरूरत है। जब आप कहते हैं कि दुनिया वैश्विक हुई है तो क्या केवल संपत्ति को इधर उधर करने के लिए? लोग इधर उधर क्यों नहीं जायेंगे? अगर दुनिया को वैश्विक बनाना है तो विश्व के किसी व्यक्ति को धरती के किसी हिस्से में बसने की आजादी होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है और दुनिया में घड़ियाल जैसा देश है तो वह दुनिया कभी शांत नहीं रहेगी।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)