व्यावसायिक शिक्षा बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं

आज रोजगार संकट एक वैश्विक समस्या बन चुका है

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ब्रह्मानंद ठाकुर
इन दिनों देश की शिक्षा-व्यवस्था गंभीर संकट की दौर से गुजर रही है। हमारे नीति- निर्माता विगत कुछ सालों से इस तर्क़ के साथ सामान्य शिक्षा को हतोत्साहित कर रहे हैं कि व्यावहारिक रूप में इसका कोई उपयोग नहीं है। तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा से ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। यही कारण है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित, समाजशास्त्र और भाषा जैसे विषयों के शिक्षण को लगातार हतोत्साहित किया जा रहा है। स्कूल- कालेजों से लेकर विश्वविद्यालय तक इन विषयों के प्रति छात्रों की रुचि कम हुई है। शिक्षकों का भी अभाव है। इस बात का खूब जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है कि रोजगार पाना है तो व्यावसायिक और उत्पादक ज्ञान प्राप्त करना होगा। लगातार बढ़ रही बेरोजगारी और सरकारी प्रचार तंत्र से दिग्भ्रमित होकर छात्रों और उनके अभिभावकों का सामान्य शिक्षा से मोह भंग हुआ है और वे बड़ी तेजी से विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की ओर मुखातिब होने लगे हैं। इसी का नतीजा है कि शहरों की बात तो दूर, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी धड़ल्ले से ऐसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम वाले संस्थान खुलते जा रहे हैं। गांव-गांव में निजी आईटीआई, कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र, पारा मेडिकल इंस्टीट्यूट, बीएड और नर्सिंग कालेज जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों वाले संस्थानों की बाढ -सी आ गई है। ऐसे पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों से 40-50 हजार से लेकर 3 लाख तक फीस वसूले जाते हैं।

रोजगार पाने और अपने उज्ज्वल भविष्य का सपना संजोए युवा वर्ग बड़ी तेजी से ऐसे पाठ्यक्रमों की और आकर्षित होने लगे हैं। उनके अभिभावक अपनी सारी जमा-पूंजी इन मुनाफा लोलुप शिक्षण संस्थानों के हवाले कर रहे है। कुछ देर के लिए ही सही यदि यह मान लिया जाए कि व्यावसायिक पाठ्यक्रम से ही बेरोजगारी की समस्या का समाधान सम्भव है तो बेरोजगारी से सम्बंधित सरकारी आंकड़े ही ऐसा मानने की इजाजत नहीं देते। यह सर्व विदित है कि बेरोजगारी का सीधा सम्बन्ध अर्थव्यवस्था से है। हमारी अर्थव्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। ऐतिहासिक नियमों के कारण पूंजीवाद आज खुद घोर संकट में है। संकटग्रस्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था किसी भी रूप में बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं कर सकती। वैश्वीकरण की नीति लागू होने के बाद देश में बड़ी संख्या में छोटै और मझोले उद्योग बंद हो चुके हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के लाखों कर्मचारी नौकरी से निकाले जा चुके हैं। रोजगार के सिमटते अवसर से यही लगता है कि देश के युवा वर्ग भले ही व्यावसायिक शिक्षा के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दक्ष हो जाएं, उन्हें संगठित क्षेत्र में रोजगार मिलने की सम्भावना नहीं है। जिन्हें रोजगार मिल भी रहा है, उन्हें रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। आज रोजगार संकट एक वैश्विक समस्या बन चुका है। इधर, हमारी सरकार स्किल डेवलपमेंट पर काफी जोर देने लगी है। इसका उद्देश्य है युवाओं को विभिन्न क्षेत्र में दक्ष मजदूर में परिवर्तित करना। सामान्य शिक्षा को नेस्तनाबूद कर स्किल्ड ओरिएंटेड शिक्षा को प्रोत्साहित करने के पीछे सरकार की मंशा पूंजीपतियों और कारपोरेट्स घरानों के हित में सस्ते दर पर श्रम उपलब्ध कराने की है। युवा वर्ग को आज यह समझना होगा कि शिक्षा के व्यावसायीकरण या रोजगारोन्मुखी शिक्षा से बेरोजगारी दूर नहीं की जा सकती क्योंकि इस मरनासन्न पूंजीवादी व्यवस्था ने हर क्षेत्र में बेरोजगारी का संकट पैदा कर दिया है।

Brhmanand Thakur
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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