कुंभ मेले का स्वर्गारोहण

जनता के प्रति भयानक लापरवाही

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डॉ योगेन्द्र
सुबह तीन बजे जग गया था और महसूस किया कि दाहिने जबड़े में कान के पास दर्द है। सोने में शायद उल्टा-सीधा हो गया है। दर्द क्रमशः बढ़ता ही जा रहा है। सोचता हूँ कि शरीर में थोड़ी सी गलत हरकत हुई तो सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है। जब देश में लोग उल्टा पुल्टा करते हैं, तब देश की हालत क्या होती होगी? देश को तो नीतियाँ ही सही या गलत रास्ते पर ले जाती हैं। एक दुर्घटना को याद कीजिए। कुंभ में जो दुर्घटना हुई। वह प्रशासन की विफलता तो है ही। लेकिन जिस तरह से मरनेवालों के आँकड़े छुपाए गए, यह लोकतंत्र के लिए कम घातक नहीं है। कम से कम लोगों को तो पता चले कि कौन कौन नहीं रहे। बिगड़ैल बाबा बागेश्वर कह रहे हैं कि ये लोग मरे नहीं, स्वर्ग गये हैं। स्वर्ग का पता ठिकाना जब उन्हें पता है तो वे इस धराधाम पर क्या कर रहे हैं? सीधे स्वर्ग कूच क्यों नहीं कर जाते? ऐसे ही पाखंडी और अज्ञानी धर्म को रसातल में पहुँचा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी खुद को बाबा ही बताते हैं। सत्य के अवतार। और उन्होंने आँकड़ों को छुपाया। कुंभ के लिए निमंत्रण बाँटने वाले और मीडिया और प्रचार माध्यमों से करोड़ों को बुलाने वाले मृतकों की सच्चाई को छुपाने में लगे हैं। लाशों की राजनीति और क्या होती है?
रोहित दरभंगा के हैं। उनके पिता जवाहर यादव कुंभ में गये और मिल नहीं रहे। वह प्राथमिकी लिखाने थाने पहुँचा तो पुलिस ने कहा- ‘लोग गायब होते हैं। मिल जाते हैं। तुम भी बीस फोटो का प्रिंट निकलवा कर दीवार पर चिपका दो, मिल जायेंगे।’ जबलपुर के सत्यम सुहाने भी अपने पिता की तलाश में दर दर भटक रहे हैं। प्रशासन से पूछा तो कहा गया कि गंगा में बह गए होंगे। भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद को मामले में षड्यंत्र की बू आ रही है। बाबा बागेश्वर नया ज्ञान दे रहे हैं, सरकार षड्यंत्रकारियों को ढूँढ रही है और जनता अपने सगे संबंधियों के लिए परेशान है। सुबह से जबड़े में दर्द का अहसास लिए सोचता हूँ कि जिसके पिता, पुत्र, माँ आदि गुजर गए या नहीं मिल रहे, उन्हें कैसा अहसास होता होगा। स्वर्ग नरक पर बहस करने वाले बहस करें, लेकिन जिसकी जिंदगी जीते जी नरक बन गयी, उसके लिए लोकतंत्र में क्या यही स्पेस है? हम राज काज नहीं चला रहे। जनता को कीड़े मकोड़े समझ कर उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करना बताता है कि हम लोकतंत्र में नहीं जी रहे। घटनाएँ घटती हैं तो सरकार को उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और पारदर्शिता के साथ बयान देना चाहिए। यथासंभव मदद करनी चाहिए और कम से कम जिनके साथ घटना घटी है, उनके साथ सद्व्यवहार तो करना चाहिए। जान किसी की भी हो, वह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की। आप कुर्सी पर हैं, इसलिए आपको झूठ बोलने का सर्टिफिकेट नहीं मिल गया है। आप का काम जनता की तकलीफों का निवारण करना है, उसे बढ़ाना नहीं है। अमृतकाल में विष काल की बू आ रही है। जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अपनी साख के लिए ही चिंतित रहे और जनता के प्रति भयानक लापरवाही बरते तो वैसी राज व्यवस्था पर गहरे प्रश्न चिह्न तो लगते ही है।

Those who died in Kumbh have gone to heaven
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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