बिधूड़ीयों के राज में हम सब

राजनीति का कोई चेहरा नहीं

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डॉ योगेन्द्र
बीजेपी के पूर्व सांसद और दिल्ली विधान सभा के कालका क्षेत्र से उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी ने कहा है कि कालका की सड़कें प्रियंका गांधी की गाल की तरह चिकनी बना देंगे। जब हो हल्ला मचा तो उन्होंने बयान दिया कि लालू प्रसाद यादव ने भी कभी कहा था कि बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी की गाल की तरह बना देंगे। यानी कोई गलती करे तो उसे गलती करने का अधिकार मिल जाता है। इस हिसाब से तो सभी सांसदों को एक दूसरे को गाली देने का हक मिल जाता है, क्योंकि यही बिधूडी ने पिछले सत्र में एक सांसद को गाली दी थी। सांसद और विधायक को अब काम क्या बचा है? जीत भी गये तो क्या करेंगे? हाथ उठाते रहना है। बेचारा निराशा में कुछ से कुछ बकता रहता है। नैतिकवान दल से इससे ज्यादा क्या मिलेगा देश को? बेचारे को अपनी गलतियाँ छिपाने के लिए लालू प्रसाद का सहारा लेना पड़ रहा है! अब राजनीति में कोई गाँधी, पटेल, नेहरू, मौलना आज़ाद, राधाकृष्णन, डॉ लोहिया, डॉ अम्बेडकर तो हैं नहीं कि विरोधियों के प्रति भी सदय रहें। आलोचना करें, लेकिन मर्यादा बनाये रखें। बिधूड़ी को बीजेपी ने एक तरह से सजा ही दी थी कि जब लोक सभा चुनाव में उनके टिकट भी काटे गए, लेकिन बीजेपी ने पुनः विधान सभा के लिए टिकट दे दिया। दरअसल राजनीति का कोई चेहरा तो बचा नहीं है। जीतने के लिए अपराधी भी काम आये तो उससे काम लिया जा सकता है!
मैं सुबह- सुबह जिस रास्ते से हर रोज टहलने जाता हूँ। उस रास्ते पर मछली बाजार है। दरअसल यह मछली बाजार कहने के लिए है। सड़क किनारे मछलियों की बिक्री होती है और मछुआरे अपनी दूकान लगाते हैं। उन्होंने पॉलीथीन का शेड दे रखा है। पत्थरों पर मछलियों को रख कर उनकी गर्दन पर उनके हंसुए चलते हैं। उन दूकानों के बीच में मु्र्गियों की भी बिक्री के लिए ठेले लगते हैं। मु्र्गियों का तो होशो हवास में कत्ल होता है, लेकिन मछलियाँ यहाँ दूर देश से आती हैं। डिब्बों में बर्फ की परतों के बीच ये मछलियाँ लेटी रहती हैं। दूर देश से आयी मछलियों को पुनः पानी में डाल कर होश में लाया जाता है। मछलियाँ बड़े-बड़े टब में तैरने लगती है। ग्राहक को तो ताजा मछलियाँ चाहिए। वे तैरती मछलियाँ खरीदते हैं और उनके समक्ष ही छटपटाती मछलियों पर हंसुए चलते हैं। हम सब की गति मछलियों की तरह ही हैं। पता नहीं कहॉं से आते हैं और संसार में हम सब की गर्दन पर हंसुए चलते रहते हैं। यह अलग बात है कि हमें अहसास नहीं होता। इच्छाओं और आकांक्षाओं में लिपटी हमारी चेतना को पता ही नहीं चलता कि कब हमारा शिकार हो गया। उस पर बिधूड़ीयों जैसे लोगों का राज। राजनीति में ऐसे लोग ही तरक्की पाते हैं। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री का भाषण सुनिए। लगेगा कि बिधूड़ी का ही श्रेष्ठ संस्करण हैं। बिलो द बेल्ट वे हमला करते हैं और भाषा पर वे कतई नियंत्रण नहीं रखते। ऐसी दुनिया में हम सब छटपटाती मछलियाँ ही तो हैं। कौन किसकी गर्दन पर ध्यान टिकाये बैठा है, कौन जानता है! हम सब भी नाली के कीड़े की तरह नाली में आनंदित हैं। वे अपना तिलिस्म फैला रहे हैं और हम उनके तिलिस्म के शिकार हैं।

 

The rule of people like Bidhuri
डॉ योगेन्द्र

 

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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