वचन जाये पर जान न जायी

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इन दिनों राँची की सड़कों पर घूमता रहता हूँ । कम से कम सुबह डेढ़ से दो घंटे। सड़क नापते हुए कई मुहल्लों का भूगोल समझने लगा हूँ । जहां मैं रहता हूँ, वहाँ अपार्टमेंट क्रांति हो रही है। अपार्टमेंट पर अपार्टमेंट बन रहे हैं । पूर्व से बने हुए हैं । आज सुबह निकला तो मौसम साफ़ था। आकाश में कोई बादल का टुकड़ा न था, बल्कि हल्की- सी सुबह की धूप आकाश से उतर रही थी। गलियों से होता हुआ एक मैदान के पास पहुँचा । उसके बग़ल में एक पहाड़ी है। मैदान में टहलने लगा, तभी पहाड़ी पर बादल घिर आये। वे काले भी थे और घने भी। मैंने सोचा कि बारिश होगी। आस पास वह जगह भी ढूँढने की कोशिश की, अगर बारिश हो तो सिर छिपाया जाय। मगर बारिश हुई नहीं । घर लौटा तो अख़बार पर नज़र पड़ी । हमारे महानुभाव आजकल सिंगापुर में हैं। उन्होंने वहाँ कहा-‘ भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहता हूँ ।’ भारत को भारत नहीं बनाना है, उसे सिंगापुर बनाना है। कभी बनारस को जापान का क्यूटो बना रहे थे । बनारस की अपनी विरासत है। अपना इतिहास और अपनी संस्कृति । क्या देश को किसी और देश का चोला पहनाना ज़रूरी है? दूसरे देशों का चोला पहनाये बिना , देश को देश नहीं बना सकते? नेहरू ने विदेशी चोला पहनाया। पश्चिमी सभ्यता से मोहित नेहरू गांधी की तिलांजलि देते हुए चल पड़े । देश न पश्चिम बना , न पूर्व का रहा। वह कॉकटेल बन गया है। नतीजा है कि कहीं ग़रीबी में लोटता भारत है , तो कहीं ऐय्याशी में डूबा भारत।

प्रधानमंत्री बदलते हैं । आदत नहीं बदलती। मज़ा यह है कि अख़बार के उसी पृष्ठ पर लीड्स विश्वविद्यालय का अध्ययन है , जिसने खुलासा किया है कि भारत प्लास्टिक कचरा पैदा करने में दुनिया में नंबर वन है। यह देश एक करोड़ दो लाख टन कचरा पैदा करता है । अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि प्लास्टिक कचरे के लिए 25 करोड़ 50 लाख लोग ज़िम्मेदार हैं । प्लास्टिक कचरे उत्पादित करने में भारत नंबर वन है, अमेरिका 90 वें स्थान पर और ब्रिटेन 135 वें पर है। देश के प्रदूषण पर कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन हम तो देश को यह बनायेंगे, वह बनायेंगे । यहाँ तथाकथित गौ रक्षक निर्दोष को गोलियों मार रहे हैं और सेबी अध्यक्षा बेईमानी पर उतरी हुई है । लेकिन हुज़ूर के मुँह में दही जमा रहेगा और देश को क्या-क्या नहीं बनायेंगे । जिस राज्य में गये, उसे नंबर वन बनाया। कहीं का बेटा बना, कहीं का कुछ और। लेकिन ढाक के तीन पात। हद तो यह है कि कि देश के इतिहास, भूगोल पर ग़लतबयानी की और इस डिजिटल युग में वे महा मानव बने बैठे हैं ।

देश के विकास की कोई दृष्टि होगी न? वह दृष्टि न तो अर्थव्यवस्था में दिखती है, न शिक्षा व्यवस्था में। कहा जाता है कि वे सिंगापुर पर इसीलिए पहुँचे हैं कि चीन को शिकस्त दे सकें ।लिखनेवाले भड़ैती करेंगे कि महामानव ने अद्भुत काम किया, लेकिन दूसरी तरफ़ देखिए । उन्होंने चीन के लिए अपने देश का बाज़ार उपलब्ध करवाया। 2023-24 में चीन ने 101.75 अरब डालर का बिज़नेस किया और हमने चीन में मात्र 16.66 अरब डालर का। महामानव से यह नहीं होता कि जो सामान चीन देश में सप्लाई कर रहा है, उसे बनाने के लिए हुनर और कल कारख़ाने विकसित करें । देश में बेरोज़गारी अलग से है। अगर विकास की दृष्टि ठीक हो, मन भ्रष्ट न हो , दिल दिमाग़ गंदा न हो तो भारत विकसित हो सकता है, लेकिन यहाँ तो गौ रक्षकों की पीठ सहला रहे हैं और कभी पाकिस्तान को देखेंगे, कभी बांग्लादेश को। केवल देश की कमजोर नसों को सहला कर गद्दी पर बैठने की जुगत भिड़ायेंगे।दस साल से देश को विकसित बनाने के लिए महज़ संकल्प पर संकल्प के हुआ क्या है! इस देश में कहा जाता था कि जान जाय पर ,वचन न जाई । अब यह है कि चाहे जैसे भी हो, जान बचे। वचन का क्या है? जान रहेगी तो वचन देते रहेंगे ।

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