पिपली लाइव के बहाने तेरी-मेरी उनकी बात

कृषि प्रधान देश के किसान की दयनीय हालत

0 617

ब्रह्मानंद ठाकुर
आज से लगभग 15 साल पहले आमीर खान प्रोडक्शन की एक फिल्म आयी थी —- पिपली लाइव। इस फिल्म के पटकथा लेखक अनुष्का रिजवी और महमूद फारूकी हैं।
निर्देशन अनुष्का रिजवी ने किया है। फिल्म की कहानी पिपली गांव के एक किसान पर आधारित है। कहने को तो हमारा भारत कृषि प्रधान देश है, भारत की आत्मा गांवों में बसती है, मगर भारत की कृषि और कृषि पर आधारित गांव और यहां के किसान आज किस दयनीय हालत में है, उसे पिपली लाइव फिल्म से समझा जा सकता है। फिल्म भी साहित्य की एक विधा है। इसमें भी वे सभी गुण होते हैं, जो साहित्य में होता है। मसलन, कथानक, चरित्र और शैली। जिस तरह साहित्य को अपने समय के समाज का आईना कहा गया है, फिल्म भी अपने समय के समाज का आईना होता है। विख्यात कहानीकार, उपन्यासकार, मुंशी प्रेमचंद ने भी कहा है, साहित्य उसी रचना को कहेंगे, जिसमें कोई सच्चाई प्रकट की गयी हो, जिसकी भाषा प्रौढ़, परिमार्जित और सुंदर हो, जिसमें दिल और दिमाग पर असर डालने का गुण हों। साहित्य में यह गुण पूर्ण रूप में उसी अवस्था में उत्पन्न होता है, जब उसमें जीवन की सच्चाइयां और अनुभूतियां व्यक्त की गई हों। साहित्य का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन का साधन जुटाना नहीं है। (प्रेमचंद: साहित्य का उद्देश्य)
अब चर्चा पिपली लाइव की। नत्था और उसका भाई बुधिया किसान है। दोनों ने खेती के लिए बैंक से कर्ज लिया है। कर्ज नहीं अदा कर पाने के कारण बैंक ने उसकी जमीन नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जमीन हाथ से न चली जाए इसके लिए दोनों भाई एक नेता से गुहार लगाने पहुंच जाते हैं। वह नेता उनसे कहता है, कि उसके जीते जी सरकार तो इसमें कोई मदद नहीं कर सकती। हां, यदि वह आत्महत्या कर ले तो उसे सरकार से एक लाख रूपये जरूर मिल जाएंगे। बुधिया थोड़ा चालाक है। वह अपने भाई नत्था को आत्महत्या के लिए राजी कर लेता है ताकि उसकी बूढ़ी मां, पत्नी और बच्चे को सहारा मिल जाए। इसके बाद नत्था द्वारा आत्महत्या के फैसले की खबर मीडिया को मिलती है। मीडिया वालों का नत्था के घर पर तांता लग जाता है। खबरें चलाई जाती हैं। चुनाव सिर पर है। विरोधी दल वाले चाहते हैं कि नत्था आत्महत्या कर ले तो उनको मुद्दा मिल जाएगा। कलक्टर लाल बहादुर खुद जीप से आकर नत्था को एक हैंड पम्प दे जाते हैं। उसके पास हैंड पम्प लगाने के पैसे नहीं है। पत्रकार कृषि मंत्री से नत्था के आत्महत्या वाले फैसले के सम्बन्ध में जब कृषिमंत्री की प्रतिक्रिया जानने पहुंचता है तो कृषि मंत्री का जवाब होता है, ‘आप तो ऐसी बात कर रहे हैं जैसे भारत में पहली बार कोई किसान आत्महत्या कर रहा हो!’ फिल्म में खेती- किसानी पर नत्था का यह कहना कि खेती में क्या रखा है? अमरीकी बीज डालो, अमरीकी खाद डालो। ऊपर से आसमान की ओर टकटकी लगाए रहो, इस कृषि प्रधान देश की वास्तविकता को उजागर कर देता है।

 

The pathetic condition of the farmer
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
Leave A Reply

Your email address will not be published.