डॉ योगेन्द्र
आज एक अख़बार में विज्ञापन है जिसमें प्रधानमंत्री की तस्वीर है और बड़े-बड़े हर्फ़ों में लिखा है-‘एक रहेंगे तो सेफ़ रहेंगे।’ ग्यारह साल हो गये। ‘अच्छे दिन आयेंगे’ कह कर गद्दी पर बैठे और ग्यारह साल गद्दी पर बैठने के बाद नव ज्ञान हुआ है कि भारत ग्यारह साल पूर्व सेफ़ था, अब उनके राज में कोई है जो भारत को अनसेफ कर रहा है। 2024 के पहले दो लोकसभा चुनावों में उन्हें जब तक लोगों ने वोट दिया, तब तक सबकुछ सेफ़ था। 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके अनुकूल वोट नहीं पड़ा तो भारत अनसेफ हो गया। भारत अनसेफ है। इसमें कोई संदेह नहीं है। भारत एक नहीं है, इस पर भी आप संदेह नहीं कर सकते। एक सड़क पर कटोरा लिए खड़ा है और एक जल, ज़मीन, जंगल पर क़ब्ज़ा कर रहा है तो भारत तो अनसेफ है और वह एक नहीं है। जहां समता नहीं है, वहाँ एकता नहीं है। बिहार के बाँका ज़िले में अमरपुर प्रखंड के पूरे परिवार ने सेल्फास की गोली खा कर आत्महत्या कर ली, तो आप कैसे कहेंगे कि आप बहुत सेफ़ हैं। हम सैंकड़ों जातियों में बँटे हैं। उनके अपने-अपने गिरोह हैं। उन गिरोहों में कोई प्यार मुहब्बत की बातें नहीं हो रही। हालत कितनी ख़राब है। इसका अहसास फ़ेसबुक पोस्ट देख कर कीजिए। कोई क्रिकेट खिलाड़ी अच्छा करता है कि उसकी जात ढूँढ ली जाती है और फिर उस जाति का गौरव गान शुरू हो जाता है। वह खिलाड़ी न इंसान रहा, न भारतीय। वह सिर्फ़ जात का बन कर रह गया। यह समझ पढ़े लिखे फेसबुकिया का है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि हिन्दू हो या मुसलमान- सैकड़ों जातियों में हम बिखरे हैं। कभी ऐसे माननीय को अहसास नहीं हुआ कि सैकड़ों जातियों के रहते हम एक कैसे होंगे? यह चिंता उनके सैकड़ों साल पुराने संगठन को भी नहीं है।
दरअसल जीत से ज़्यादा हार हमें नये ज्ञान देती है। प्रधानमंत्री को भी यह नया ज्ञान हार से ही मिला है। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में उन्हें अहसास हुआ कि कुछ लोगों ने भारत को जातियों में तोड़ दिया है। बीच-बीच में जातियाँ भी लहकती रहती है। भारत में एक ऐसी सरकार आयी थी, जिसने मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों को लागू कर दिया तो विपक्षी दलों में से एक कमंडल लेकर निकल पड़े। दरअसल यह झगड़ा बड़ा पुराना है। यह पुराना झगड़ा नये नये रूपों में हमारे सामने आता है। एक चुनाव में प्रधानमंत्री कहने लगे कि मैं ओबीसी हूँ, इसलिए मुझे गाली दी जा रही है। वे सेफ़ होने के लिए थोड़ा बंट भी गये। सेफ़ तो गद्दी को होना है। पब्लिक तो जैसी थी, वैसी ही रहेगी। हरेक पब्लिक के मन में प्यार का भी सोता बहता है और नफ़रत का भी। हम किसे जगाना चाहते हैं या कहें कि किस सोता को जगाने के बाद हमारे स्वार्थ की सिद्धि होती है, यह तो हम पर निर्भर है। आज कल नफ़रत का बाज़ार गर्म है। पब्लिक भी इसमें लहकती रहती है। इससे स्वार्थ सधेगा, इसलिए ऐसे नारे दिये जा रहे हैं। विभाजन की विभीषिका में दस लाख लोग मारे गये, लेकिन हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते। हम विभाजनकारी नारे बुलंद करते रहते हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि ये नारे भी वही लगा रहे हैं जिन्हें भारत को अखंड यानी एक रखने की ज़िम्मेदारी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)