भूमंडलीकरण में शिक्षा का मूल उद्देश्य ही गायब हो गया
शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ रोजगार पाना भर रह गया
ब्रह्मानंद ठाकुर
जबसे भूमंडलीकरण की नीति लागू हुई है, शिक्षा का मूल उद्देश्य ही गायब हो गया है। रोजगारोन्मुखी तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर भाषा, गणित, विज्ञान आदि विषयों को दरकिनार किया जा रहा है। छात्रों में यह मानसिकता पैदा की जा रही है कि इन विषयों को पढ़ने से नौकरी अथवा रोजगार मिलने की सम्भावना नहीं है। शिक्षा आज बाजार के हवाले कर दी गई है। इसी बाजार की मांग के अनुरूप पाठ्यक्रम निर्धारित किए जा रहे है। मेडिकल, इंजीनियरिंग, बिजनेस मैनेजमेंट, फैशन डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म, इवेंट मैनेजमेंट, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को इस तर्क के साथ बढावा दिया जा रहा है कि बदलते आर्थिक परिदृश्य में ऐसे पाठ्यक्रम ही भविष्य के लिए उपयोगी है। इनमें रोजगार मिलने की सम्भावना है। मतलब, शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं, सिर्फ रोजगार पाना भर रह गया।
देश के हुक्मरानों द्वारा छात्र-युवाओं में ऐसी मानसिकता पैदा की जा रही है ताकि उन्हें आसानी से समझाया जा सके कि बेरोजगारी का कारण शिक्षा सम्बन्धी पुरानी व्यवस्था है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि बेरोजगारी की समस्या आर्थिक व्यवस्था की देन है। इसका कारण हमारी पुरानी शिक्षा व्यवस्था तो हर्गिज नहीं। मुझे याद है, जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब वहां कार्यालय के मुख्य द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, सा विद्या या विमुक्तये। बाद में इसका अर्थ समझ में आया कि शिक्षा वही है जिससे हमें मुक्ति हासिल हो। मुक्ति किससे? जन्म-मृत्यु से? नहीं। शोषण, जुल्म, अन्याय और अत्याचार से मुक्ति। मतलब सही शिक्षा वहीं है जो हमें शोषण, जुल्म, अन्याय और अत्याचार से लडने की ताकत दे। युगों से ऐसी ही शिक्षा मानव मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती रही है। तब विद्यालय के मुख्य द्वार पर यह भी लिखा था, ज्ञानार्थ प्रवेश, सेवार्थ प्रस्थान। मतलब साफ था ज्ञान प्राप्ति हेतु विद्यालय में आइए फिर शिक्षा पाकर जनसेवा में जुट जाइए। उस दौर में यही था शिक्षा का उद्देश्य! ऐसे शिक्षितों ने ही तो सम्पूर्ण मानवता को उसकी मुक्ति की राह दिखाई। नया इतिहास गढा।
आज शिक्षा के क्षेत्र में घुप्प अंधेरा पसरा हुआ है। दूर दूर तक रोशनी की किरण नहीं दिखाई दे रही है। यह स्थिति अकस्मात नहीं पैदा हुई। इसके लिए संकटग्रस्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था जिम्मेवार है। इसी संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था को टिकाए रखने के लिए भूमंडलीकरण की नीति लागू हुई। आज यह संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था बेरोजगारी की समस्या दूर करने में पूर्ण रूप से अक्षम है। जितने को रोजगार नहीं मिल रहा, उससे कई गुणा ज्यादा लोगों की छंटनी हो रही है। कल-कारखाने और उद्योग बंद हो रहे हैं। ले-दे कर शिक्षा और स्वास्थ्य दो ही क्षेत्र बचा है जिसमे पूंजीनिवेश कर पर्याप्त मुनाफा लूटने की गुंजाइश है। सामान्य शिक्षा को हतोत्साहित कर व्यावसायिक शिक्षा को प्राथमिकता देने सम्बन्धी नीति को इसी नजरिए से देखने और समझने की जरूरत है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)