तीसरे विश्व युद्ध का आगाज हो चुका है। मानवता के करुण पुकार अनसुनी हो रही है। स्त्रियां, बच्चे, बूढ़े सभी युद्ध की विभीषिका के शिकार हैं। मन व्यथित है कि हमारी निजी भूमिका क्या हो और सामूहिक भूमिका क्या हो?
विश्व शांति खतरे में है। अमेरिका, ब्रिटेन भी आंखें दिखा रहा है। दुनिया में मरने मारने के हथियार द्वितीय विश्व युद्ध से हजार गुणा बढ़ा हुआ है। आम जीवन से लेकर ख़ास जीवन में कामनाओं का साम्राज्य है।