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ज्ञान ही एक मात्र रास्ता

नब्बे के दशक में मैं पूरी गया था। गया था तो एक सम्मेलन में, लेकिन मंदिर की वास्तुकला देखने की इच्छा हुई। कोणार्क तब तक देख चुका था। हम चार मित्र थे जिसमें एक मुस्लिम मित्र भी थे। कोणार्क सूर्य मंदिर में तो कोई दिक्कत नहीं थी।

बाढ़ में भंसते भक्त और भगवान

मंदिर भी डूब रहे, मस्जिद भी। बाढ़ किसी की नहीं सुन रही। वह अंधी, बहरी, गूँगी हो गयी है। लोग लाख मनाने की कोशिश करते हैं, वह मान ही नहीं रही है। हर दिन उसका रौद्र रूप डराता है जन मानस को।