हालांकि मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूं, उसका पर्याय मुहब्बत हरगिज़ नहीं। यह प्रेम वह इश्क भी नहीं जिसकी चर्चा आज कल सरेआम होती है, गांव की गलियों में, चौराहे पर, बगीचे में, दरिया किनारे और स्कूल कालेजों में भी। सर्वत्र ! प्रायः युवा छात्र…
कुत्सित भाव हमें अपनी ममतामयी मां, प्रकृति की गोद से धीरे-धीरे दूर करता चला गया। हम भूल गये प्रकृति मां की लोड़ियां और थपकियां दे-दे कर हमें चैन की नींद सुलाना।