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कृष्णायन की एक गाय की पुनर्जीवित करने की प्रेरक कहानी

हरिद्वार स्थित कृष्णायन गौशाला न केवल गौसेवा का केंद्र है बल्कि करुणा, विज्ञान और परंपरा के अद्भुत संगम का प्रतीक भी है। यहाँ गौसेवकों का उद्देश्य सिर्फ गायों को आश्रय देना नहीं है, बल्कि उनकी जीवन रक्षा और पुनर्जीवन के लिए हर संभव प्रयास…

गाय आधारित वृक्षारोपण अभियान

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाय केवल धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण और सतत विकास की आधारशिला भी है। "गाय आधारित वृक्षारोपण अभियान" इसी सोच का परिणाम है, जिसमें गायों के गोबर, गौमूत्र और जैविक अपशिष्टों का…

सोशल मीडिया के माध्यम से गौसेवा का विस्तार

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया केवल मनोरंजन या संवाद का साधन नहीं रह गया है, बल्कि यह एक सशक्त माध्यम बन चुका है, जिसके जरिए किसी भी सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक अभियान को गति दी जा सकती है। गौसेवा जैसे पवित्र कार्य को भी सोशल मीडिया के…

कृष्णायन में समय दान: वॉलंटियरशिप का अनुभव

कृष्णायन गौशाला और संरक्षण केंद्र में समय दान (टाइम डोनेशन) की परंपरा एक अनूठा अनुभव है, जहां व्यक्ति केवल आर्थिक सहयोग ही नहीं बल्कि अपने जीवन का कुछ हिस्सा सेवा में समर्पित करता है। यह केवल एक वॉलंटियरशिप नहीं बल्कि आत्मिक संतोष और…

गौसेवा का पुण्य: जन्मों तक फलदायक

ChatGPT said: भारतीय संस्कृति में गाय को "गौमाता" कहा गया है और उसे सम्पूर्ण जगत की जननी माना गया है। वेद, पुराण और धर्मशास्त्रों में गौसेवा को सर्वोच्च पुण्य का कार्य बताया गया है। गौसेवा केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक परंपरा…

₹51 से कैसे बन सकते हैं किसी गाय की जिंदगी का हिस्सा?

भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। गौसेवा केवल एक धार्मिक कार्य नहीं बल्कि यह मानवीय कर्तव्य भी है। लेकिन अक्सर लोग सोचते हैं कि उनके पास बड़ा दान करने की क्षमता नहीं है, तो वे क्या योगदान देंगे? सच्चाई यह है कि सिर्फ ₹51…

गौसेवा में दान: एक आध्यात्मिक कर्म

भारत की संस्कृति में गौसेवा का विशेष महत्व रहा है। गाय को ‘कामधेनु’ और ‘माता’ का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यह न केवल कृषि और दूध से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करती है बल्कि समाज में धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतीक भी है।…

महात्मा गांधी और गौसेवा

महात्मा गांधी का जीवन सत्य, अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों पर आधारित था। वे मानते थे कि किसी भी समाज की सभ्यता का स्तर इस बात से आंका जा सकता है कि वह अपने सबसे कमजोर और असहाय प्राणियों के साथ कैसा व्यवहार करता है। गाय, भारतीय संस्कृति में…

श्री कृष्ण की नगरी में जुटे देशभर के पंचगव्य चिकित्सक

12वां पंचगव्य वार्षिक सम्मेलन 22,23 एवं 24 नवम्बर तक चलेगा। इसमें पूरे देश भर के विभिन्न राज्यों से पंचगव्य चिकित्सक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।