निर्मल रानी
वैसे तो 2012 में प्रसारित किये गये आमिर खान के प्रसिद्ध व लोकप्रिय धारावाहिक ‘सत्यमेव जयते’ में भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त धांधली व लूट जैसे अति गंभीर विषय को अत्यंत प्रभावी रूप से उठाया जा चुका है। इस में प्रमाणिक तरीके से यह बताया गया था कि किस प्रकार डॉक्टर्स द्वारा मरीजों को बिना जरुरत के दवाइयाँ दी जाती हैं और किस तरह मरीजों का गैर जरूरी इलाज किया जाता है। इसमें कई ऐसे उदाहरण पेश किये गये थे जिससे यह साबित होता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में किस तरह की धांधलियां हो रही हैं। ‘सत्यमेव जयते’ में यह भी दिखाया गया था कि आंध्र प्रदेश के एक गाँव में बड़ी संख्या में महिलाओं की बच्चेदानी (गर्भाशय) निकाल दिया गया, जबकि इसकी ज़रुरत ही नहीं थी। डॉक्टर्स द्वारा महिलाओं को यह बताया गया था कि अगर उन्होंने ऑप्रेशन नहीं करवाया तो उनकी जान चली जाएगी। जब कि इस कार्यक्रम में भाग ले रही एक सीनियर डॉक्टर का कहना था कि कैंसर के अलावा कोई और मामला नहीं होता जिसमें गर्भाशय को निकालना पड़े। इसी मंच पर यह भी बताया गया था कि कई बार मरीजों से दवाओं की कीमत पचास गुना ज़्यादा तक वसूली जाती है। तरह-तरह के गैर जरूरी फर्जी टेस्ट करने के लिए मरीज पर दबाव बनाने जैसी अनेक बातें भी सामने आयी थीं। यहाँ तक कि सत्यमेव जयते में डॉक्टरों के व्यवसाय से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक सभी पर निगरानी रखने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की गड़बड़ियों पर भी चर्चा की गई थी।
परन्तु ‘सत्यमेव जयते’ द्वारा भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में व्याप्त घोर भ्रष्टाचार व लूट के उजागर होने के बावजूद गत 12 वर्षों में इसमें कोई सुधार तो बिल्कुल नहीं आया, हाँ लूट खसोट में और अधिक इजाफा जरूर हो गया है। और भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में व्याप्त यह लूट अब इस हद तक पहुँच चुकी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सीधे शब्दों में मरीज को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देने के बारे में तो कतई नहीं बल्कि उससे कितने अधिक से अधिक पैसे वसूले जा सकते हैं सारा ध्यान व अस्पतालों का सारा चक्रव्यूह इसी तरीके से रचा जा रहा है। और ऐसा हो भी क्यों न? जब सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फार्मा और हेल्थकेयर कम्पनीज द्वारा सत्ता को चुनावी बांड के रूप में इतने पैसे दे दिए जायें कि उनकी हर तरह की लूट पर सरकारें खामोश रहें? गौरतलब है पिछले दिनों जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर इलेक्टोरल बांड सार्वजनिक किये गए थे उन्हीं चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से पता चला था कि देश की कम से कम 30 फार्मा और हेल्थकेयर कंपनियों ने 5 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे जो कुल मिलाकर लगभग 900 करोड़ रुपये है। यह कुल 12,155 करोड़ रुपये की राशि का लगभग 7.4% है, जिसके लिए डेटा जारी किया गया था।
नतीजतन आज सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फार्मा और हेल्थकेयर फार्मों को इस बात की पूरी छूट मिल चुकी है कि वे मरीज की आर्थिक स्थिति के अनुसार जितना चाहे उसका दोहन कर सकते हैं करें। इनको मिली इस शह का नतीजा है कि आज देश में प्रायः 44% ऐसी झूठी सर्जरी की जा रही हैं जिनकी जरुरत ही नहीं। करीब 55% गैर जरूरी हार्ट सर्जरी, लगभग 48% गर्भाशय सर्जरी करीब 47% कैंसर सर्जरी, 48% घुटना बदलने वाली शल्य चिकित्सा 45% प्रसव सर्जरी केवल धन ऐंठने हेतु पूरी तरह अकारण ही की जा रही हैं। यह कोई गढ़े हुये काल्पनिक आंकड़े नहीं बल्कि मार्च 2016 को भारत की एक संसदीय समिति द्वारा स्वीकार किये गये तथ्य हैं। सत्ता संरक्षित इन अस्पतालों को भी पूरी तरह से कॉर्पोरेट कम्पनी की ही तरह टारगेट आधारित व्यवसाय बना दिया गया है। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये हर महीने के अंत में इन डॉक्टर्स पर दबाव बढ़ता है और डॉक्टर्स को OPD के मरीजों को भी अकारण शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की तरफ धकेलना पड़ता है। यूँही नहीं कई बड़े नामी सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल अपने सीनियर डॉक्टर्स को एक करोड़ रूपये प्रति माह तक तनख़्वाह देते हैं। इसके बदले में इन्हें प्रत्येक माह एक हजार सामान्य मरीजों को गंभीर मरीज में परिवर्तित करना होता है। ऐसे लूट एक्सपर्ट डॉक्टर्स का ट्रैक रिकार्ड बनता है कि वह मरीजों को लूटने का कितना एक्सपर्ट है उसके हिसाब से ही उसे दूसरे लुटेरे अस्पतालों में मरीजों को लूटने का ठेका यानी नौकरी मिलती है।
कई मामले ऐसे भी सामने आये हैं जिसमें मृत हो चुके मरीजों को भी जिंदा बताकर पैसे वसूले जाते रहे हैं। अस्पताल द्वारा मृत हो चुके मरीजों का इलाज जारी रखने का केवल नाटक चलता है ताकि जितना हो सके पैसे ऐंठे जाते रहें। ऐसे कई मामले अखबारों में भी आते रहते हैं। ब्रेन डेड मरीजों को एक महीना वेंटिलेटर पर रखने जैसा एक अस्पताल का मामला अदालत में साबित हुआ तो अदालत ने सिर्फ 5 लाख की सांत्वना राशि का जुर्माना उस अस्पताल पर ठोक दिया। इन्हीं भारतीय स्वास्थ्य सम्बन्धी अनियमिताओं के चलते पिछले दिनों मेरे एक पारिवारिक सम्बन्ध रखने वाले संपन्न, शिक्षित व अप्रवासी भारतीय परिवार की एक 76 वर्षीय महिला की समय पूर्व जान चली गयी। मरीज के शरीर में इस आयु में चौथे चरण का अग्न्याशय का कैंसर (Pancreatic Cancer) चिन्हित किया गया। उसी समय चंडीगढ़ में एक वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ ने यह घोषित कर दिया कि मरीज अधिकतम एक वर्ष की आयु और जी सकता है। अमेरिका में मरीज के करीबी रिश्तेदार जोकि स्वास्थ्य विभाग में ही शोधार्थी है तथा उच्च पद पर कार्यरत हैं जब उन्हें इस घटनाक्रम का पता चला तो उन्होंने भी इस उम्र में किसी भी कीमियो थरेपी की कोशिश से मना किया साथ यह भी कहा की अमेरिका में इस उम्र में कीमियो की सलाह नहीं दी जाती।
परन्तु जब यही मरीज मोहाली के एक नामी सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया तो वहाँ के ‘नेटवर्क’ ने किसी दूरदर्शिता की बात करने या संभावित खतरों की फिक्र या उससे आगाह किये बिना कीमियो कर डाला। जिससे मरीज के शरीर में जॉन्डिस फैल गया। और इस अनावश्यक कीमियो के सप्ताह भर के भीतर ही वह मरीज चल बसा जोकि बिना कीमियो के एक साल जी सकता था। देश में ऐसे हजारों मामले रोजाना होते रहते हैं मगर सत्ता संरक्षित होने के कारण इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता। लूट का अड्डा बनते जा रहे ऐसे सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का तो लाइसेंस ही निलंबित कर दिया जाना चाहिये।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)