दो अतिवादी छोरों पर खड़े

आरएसएस और वामसेफ का संघर्ष

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डॉ योगेन्द्र
जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ अब घर ही घर है। जो सड़क पास से गुजरती है, उस पर काफी धूल उड़ती रहती है। ट्रेफिक बेइंतहा है। सदी की शुरुआत में आसपास बहुत से आम के पेड़ हुआ करते थे, अब दो-चार शेष हैं। उन पेड़ों में मंजर आ गए हैं, जबकि वे धूल से अटे- पड़े हैं। पेड़ की अंदरूनी ताकत है कि वसंत मनाने के लिए वह तैयार है। वरना धूल से लिपटे पेड़ों की साँसें घुटती हैं। रात को नींद उचटती रही थी। जब भी मन उद्विग्न रहता है, तब नींद भी ठीक से नहीं आती और गर्मी भी लगती है। रात को कई बार कंबल मैंने फेंका था। सुबह जगा और रोजमर्रे का काम संपादित कर टहलने के लिए गया। पास ही हवाई अड्डा है। हवाई पट्टी पर घूमते हुए एक व्यक्ति मिले। दरअसल कल मैं फूले- अम्बेडकर जयंती आयोजन समिति की बैठक में गया था। उन्होंने मुझे वहीं देखा था। उन्होंने अपनी बात कहनी शुरू की। उन्होंने कहा कि मैं वामसेफ का कार्यकर्ता हूँ। वामसेफ भी दो भागों में बँटा है- एक बोरकर जी का और दूसरे वामन मेश्राम का। मैं बोरकर जी के साथ हूँ। बोरकर जी और वामन मेश्राम में यह अंतर है कि बोरकर के वामसेफ में आप किसी भी पद पर दो टर्म से ज्यादा नहीं रह सकते, जबकि वामन मेश्राम में ऐसा नहीं है। दूसरी बात यह है कि बोरकर के वामसेफ में ऑडिट होता है, वामन मेश्राम में ऐसा नही है। आगे उन्होंने यह जोड़ा कि वैसे दोनों समाज का ही काम कर रहे हैं।
हम दोनों हवाई पट्टी से उतर कर धूल भरी पगडंडी पर चलने लगे। वह मौजूदा राज से नाराज था और बातों ही बातों में कहा कि इस ब्राह्मणी राज से तो अंग्रेजी राज अच्छा था। उसने भागलपुर स्थित नौलख्खा कोठी की याद दिलाई और कहा कि देखिए उस कोठी को। अंग्रेजी राज में बना और उसकी एक ईंट भी नहीं हिली। अब ब्राह्मणी राज में तो आज बिल्डिंग बनी, कल टूटने लगी। यह राज लूट का राज है। फिर उसे अपने पूर्वजों की याद आयी। उसने कहा कि लोग होली मनाते हैं और अपनी ही बहन होलिका का दहन करते हैं। ये सब ब्राह्मणी पर्व है। दुर्गापूजा में महिषासुर की हत्या पर जश्न मनाते हैं। महिषासुर कौन था? अपने ही प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि दरअसल वह महेश यादव था। उसने महात्मा फुले, डॉ अम्बेडकर, पेरियार आदि को याद करते हुए कहा कि ब्राह्मणों ने बहुत साजिश रची है। पेरियार का जन्म 17 सितंबर है तो ब्राह्मणों ने उस दिन विश्वकर्मा पूजा शुरू कर दी। अम्बेडकर के जन्मदिन पर सतुआनी पर्व की शुरुआत कर दी और उनकी मृत्यु के दिन बाबरी मस्जिद ढाह दिया। ब्राह्मण बहुत षड्यंत्रकारी होते हैं। मैं हाँ हूँ करता जा रहा था और सोचता जा रहा था कि एक अति आरएसएस है तो दूसरा अति यह है। आखिर दो अतियों के संघर्ष में कौन जीतेगा? आरएसएस आज विजेता है। सत्ता और मन में वह प्रवेश कर चुका है। वामसेफ में अभी बहुत देर है। तब तक यह समाज किस रास्ते पर चलेगा? क्या कोई तीसरा रास्ता भी है? वह अपनी बात लगातार कहते जा रहा था और मुझे छोड़ने गेट तक आया। अंत में कहा कि बुद्धिजीवी ही समाज को समझा सकता है। मैं जब अपने लोगों को कहता हूँ तो लोग मुझे पागल समझते हैं।

 

 

Struggle between RSS and BAMCEF
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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