नैतिकता के लिए संघर्ष

पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष

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ब्रह्मानंद ठाकुर
दुनिया नीति -नैतिकता, अपसंस्कृति और मूल्यबोध की संकट से गुजर रही है। परिवार, समाज और राष्ट्र हर जगह यह संकट व्याप्त है। जैसे दुनिया में कोई भी चीज शाश्वत और चिरंतन नहीं है, वैसे ही नैतिकता के मानदंड और मूल्यबोध कभी भी शाश्वत और चिरंतन नहीं होते। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार इसमें परिवर्तन होते रहते हैं। यह परिवर्तन ही प्रकृति का शाश्वत सत्य है। हर युग में शोषण, उत्पीड़न और दमन के खिलाफ शोषितों, वंचितों के संघर्ष ने ही नैतिकता का मानदंड स्थापित किया है, नूतन मानवीय मूल्यबोध विकसित किया है। हमारे देश ने भी 18वीं शताब्दी में गंभीर सामाजिक संकट का सामना किया था। उस दौर में कायम थी। धार्मिक कर्मकाण्डों को प्रश्रय दिया जा रहा था। संक्षेप में कहा जाय तो वह अंधकार युग था। ऐसे में सामंती शोषण– उत्पीड़न और औपनिवेशिक दमन के विरुद्ध नवजागरण आंदोलन शुरू हुआ। मानवतावादी आदर्शों और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए जनता में जो छटपटाहट थी, इसी छटपटाहट ने समाज में नैतिकता की एक लहर पैदा की। गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और नैतिक मानदंड इसी युग में स्थापित हुए। आम जनता हर तरह के कुप्रथाओं और बंधनों से मुक्त होकर विकास के पथ पर अग्रसर हुई। 18वी और 19वीं शताब्दी में राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महात्मा ज्योति बा फुले, सावित्री बाई फुले, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद, सैयद अहमद खान, काजी नजरुल इस्लाम, सुब्रमण्यम भारती, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, शरतचन्द्र और रवीन्द्र नाथ टैगोर, रामानुज, जगदीश चन्द्र बोस, पीसी राय जैसे समाज सुधारक साहित्यकार और वैज्ञानिक पैदा हुए। इन महान विभूतियों ने समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। परिणामस्वरूप भारतीय समाज में चतुर्दिक उत्साह, रचनात्मकता, उच्च सांस्कृतिक और नैतिक वातावरण पैदा हुआ। इसी का परिणाम था कि देश को ब्रिटिश दासता से मुक्ति दिलाने के लिए असंख्य युवाओं ने अपनी कुर्बानी दी। आज हमारा देश आजाद हैं लेकिन इन महापुरुषों ने जिस आजाद भारत का सपना देखा था, वह अब भी अधूरा है। नवजागरण काल के राष्ट्रवादी मूल्य, नैतिकता, आदर्श और आचार -विचार सभी समाप्त हो चुके हैं। जीवन के तमाम क्षेत्रों में अनैतिकता और अपसंस्कृति व्याप्त है। मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण चरम पर है। हत्या, लूट, बलात्कार, भ्रष्टाचार की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं। यह अकारण नहीं है। वर्तमान संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था ही इसका जिम्मेवार है। पूंजीपतियों के ताबेदार राजनीतिक पार्टियां अपने वर्ग हित में इस स्थिति को बढ़ावा दे रही हैं। ऐसे में जरूरत है अनैतिकता और सांस्कृतिक संकट को बढ़ावा देने वाली पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध एक जुट संघर्ष की, क्योंकि संघर्ष के बिना कुछ भी पाया नहीं जा सकता।

Struggle against the capitalist system
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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