डॉ योगेन्द्र
एक बंदर दारू पी ले और उसे बिच्छू डंक मार दे। इसके बाद जो उछल-कूद करता है, वैसी ही उछल-कूद मन हर वक्त करता रहता है। बंदर यों भी चंचल होता है। दारू उसे और चंचल बनाता है और उस पर बिच्छू का डंक। गर मन में स्थिरता न हो, तो दुनिया स्थिर और शांत कैसे होगी? बहुत थोड़े से लोग होंगे, जिनका मन स्थिर होगा। अस्थिर चित्त के लोग बहुतायत से हैं। जिसे पाना बहुत है, उसके चित्त सबसे ज्यादा अस्थिर है। नेता, व्यापारी और नौकरशाह – सबसे ज्यादा अस्थिर चित्त के होते हैं, लेकिन उनके हाथ में ही हम सबने सबकुछ दे दिया है। हमारा भविष्य उनकी गुलामी कर रहा है। क्या खायेंगे, क्या पियेंगे, कैसे रहेंगे, क्या पहनेंगे और कैसे सोचेंगे, क्या लिखेंगे, इसका निर्धारण भी अस्थिर चित्त के लोग कर रहे हैं। नतीजा सामने है। अस्थिर चित्त सभी को अस्थिर कर रखा है। वे पद, मुनाफा और तरक्की के लिए पूरी दुनिया को फांसी पर लटका सकते हैं।
किसान बहुत हद तक स्थिर चित्त का हुआ करता था। इधर कैश क्रोप उनकी दुनिया में प्रवेश कर गया है। वे अपने अनुसार खेती नहीं करते, बाजार के अनुसार खेती करते हैं। उनके मन में भी विचलन है। उनके एक तबके की हालत बंदर वाली ही है, लेकिन बहुतायत किसान अभी भी लंबी कूद में शामिल नहीं हैं। हां, मन में तरह तरह के आवेग हैं। लोभ, लालच, छल – छद्म उनकी दुनिया में भी प्रवेश कर गया है। संतों का चित्त सबसे ज्यादा स्थिर रहना चाहिए। संत जिनका चित्त सत्य पर केंद्रित है, वे अस्थिर हो नहीं सकते। वे संत ही इसलिए हैं कि स्थिर चेतना वाले हैं। अस्थिरता उनके जीवन का अंग नहीं है, लेकिन आज जो संत हैं, वे बहुत विचलित नजर आते हैं। उन्हें भी पार्लियामेंट चाहिए, शोहरत चाहिए, भीड़ चाहिए। ऐसे लोगों के संतत्व पर गहरे सवाल तो है हीं। जिनसे पावन धारा बहनी चाहिए, वहां से अपावन स्रोत फूट गया है। वे गृहस्थ से भी पदच्यूत हो गये हैं।
बुद्धिजीवी का चित्त भी स्थिर होना चाहिए। वह परिस्थितियों का आकलन करता है, घटना क्रम की विवेचना करता है, भविष्य के लिए इशारे करता है। उसके चित्त में अगर विचलन होगा, तो उसके निष्कर्ष दूषित होंगे। आज उनके विचारों में दूषण बहुत है। कोई जाति का बुद्धिजीवी है, कोई संप्रदाय का। किसी ने सत्ता को पकड़ रखा है। कोई नफ़रत फैलाने में लगा है। सभी वर्ग और जाति को बुद्धिजीवी उपलब्ध है। हां, इंसानों के लिए बुद्धिजीवी कम है। शिक्षकों को सबसे बड़ा बुद्धिजीवी माना जाता है, लेकिन आज सबसे ज्यादा गुलामी वही कर रहे हैं। सांसारिक रास्ते में धुंध बहुत है। आजकल इंसानों के बीच सामाजिक कार्यकर्ता का एक वर्ग उग आया है। वह है सामाजिक कार्यकर्ता। यानी समाज के लिए काम करने वाला। वह प्रतिबद्ध है। उसके लिए कोई दूसरी राह नहीं है। लेकिन देख रहा हूं कि वे करते कम हैं, उजागर बहुत करते हैं। जबसे सोशल मीडिया का जन्म हुआ है, तबसे उन्हें खुद को प्रचारित करने का और मौका मिला है। अपनी तस्वीरें चेपते रहते हैं और लिखते ऐसे हैं कि वे अंतिम सत्य लिख रहे हों।
तब सवाल है कि गर चित्त अस्थिर न हो, इच्छाएं बलवती न हों, सबकुछ ठहर जाये, तो फिर दुनिया कैसे संचालित हो? इच्छाओं के ठहर जाने से कहीं दुनिया तो ठहर नहीं जायेगी? फिर स्थिर चित्त करने के तरीके क्या हों? क्या जंगल में बैठ जायें? एकांत ही जीवन के हिस्सा बना लें? स्थिर चित्त का मतलब है स्थिर अवलोकन। हम देखें कि क्या हो रहा है? आकाश का नीला विस्तार, चांदनी, घुप्प अंधेरा, चिड़िया, पौधे, नदी, दरिया, लोग। सबके होने का अहसास और उस समुद्र में अपनी अनुभूति।
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