बाबा विजयेन्द्र
सत्यपाल मलिक की राह पर जगदीप धनखड़ आगे बढ़ चले हैं। सत्यपाल मलिक भाजपा में रहकर भाजपा के लिए सिरदर्द बन गए थे। भाजपा नेता तो मलिक को भस्मासुर भी कहने लगे थे। जिस थाली में खाना उसी में छेद करने का भाजपा का आरोप सत्यपाल मलिक पर लगता रहा। मलिक द्वारा पुलवामा के सवाल पर भाजपा को कठघरे में खड़ा किया गया था। जैसे-तैसे कर उन्होंने अपनी गवर्नरी सेवा को पूरा किया था। राज्यपाल पद से हटने के बाद भी मलिक भाजपा को परेशान करते रहे।
ठीक उसी तरह देश के चौदहवें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भाजपा को मुसीबत में ला दिया है। धनखड़ को सभी दलों में रहने का अनुभव है। सभी घाट का पानी पीकर अभी भाजपा में हैं। एक जाट को काटने के लिए दूसरे जाट को सामने लाना भाजपा की मजबूरी भी थी। मलिक की काट में इन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया।
कल मुंबई के कपास प्रायोगिक अनुसन्धान संस्थान में एक कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति धनखड़ और क़ृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान दोनों मंचासीन थे। धनखड़ ने मंच से ही क़ृषि मंत्री का खूब क्लास लिया और कहा कि किसानों को लेकर सरकार का रवैया ठीक नहीं है। किसानों की मांग को लेकर सरकार आना कानी क्यों कर रही है? जो वादा किया गया था उसे पूरा क्यों नहीं किया जा रहा है? इतनी बातें मंच से ही सुनाई गयी। काटो तो खून नहीं। शिवराज के पास कोई जवाब ही नहीं था। आंय बांय कर किसी तरह शिवराज ने अपनी इज्जत बचाई। शायद ऐसा पहली बार हुआ कि आमने-सामने किसी कबीना मंत्री की ऐसी बेइज्जती हुई हो?
आखिर उपराष्ट्रपति को क्यों ऐसा व्यवहार करना पड़ा? क्या यह कोई स्क्रीपटेड ड्रामा का पार्ट है या कुछ और है? धनखड़ के बयान के पीछे क्या और किस तरह की साजिश हो सकती है? किसानों की अनदेखी का आरोप केवल शिवराज पर नहीं लगाया जा सकता। तीनों क़ानून को लागू करना और फिर वापस करना यह क़ृषि मंत्री का फैसला नहीं हो सकता। किसी भी कबीना मंत्री को आज की तिथि में कोई स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। बिना गुजराती बंधु के हस्तक्षेप का कोई कुछ नहीं कर सकता है। सारे फैसले यही लोग ले सकते हैं। शिवराज की औकात ही नहीं है कि किसान के हित में कोई बड़ा फैसला कर ले। क्या इन बातों को धनखड़ नहीं जानते हैं?
सरकार बात बनाती है किसानों को लेकर, फिर केवल शिवराज को दोषी क्यों माना जाए? धनखड़ जिस पद पर हैं वे सब कुछ जानते और समझते हैं बावजूद उन्होंने क़ृषि मंत्री की बेइज्जती कर दी। सरकार के सारे मंत्रालयों के कामकाज से धनखड़ वाकिफ हैं। प्रधानमंत्री के असंख्य वादों से भी ये अवगत हैं। प्रधान मंत्री के अधूरे वादों की लम्बी फेहरिस्त है। वादों की अनदेखी केवल क़ृषि मंत्रालय ही नहीं किया बल्कि सभी मंत्रालयों ने वही सब काम किया जो नहीं होना चाहिए। फिर शिवराज हीं टारगेट क्यों?
यह मामा के साथ घोर अत्याचार है। मामा को कंस बनाया जा रहा है। कौन इनके व्यक्तित्व का संहार करना चाहता है? कौन इन्हें मारना चाहता है? शिवराज से खतरा किसको है? क्यों शिवराज को लगातार नीचा दिखा रहे हैं? इसे समझने की जरुरत है।
शिवराज ने अपने नेतृत्व में भाजपा को बम्पर जीत दिलायी। मध्यप्रदेश विधान सभा के चुनाव में भी चौकाने वाला रिजल्ट दिया। बावजूद गुजराती बन्धुओं ने इन्हें मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया। शिवराज को केंद्र लाया गया और काँटों का ताज़ क़ृषि मंत्रालय दिया गया। इसी दौरान झारखण्ड का चुनाव प्रभारी बना दिया गया। झारखण्ड में भाजपा पिट गई। स्वाभाविक है कि मामा पर सवाल खड़ा किया गया। अब धनकड़ ने शिवराज की बची खुची कसर निकाल दी।
शिवराज सिंह अगले अध्यक्ष के प्रबल दावेदार माने जाते हैं। ये पिछड़ा चेहरा भी हैं। पिछड़ा चेहरा तो मोदीजी भी हैं। मोदी के समकक्ष और कोई पिछड़ा चेहरा खड़ा हो जाए, यह मोदी को पसंद नहीं होगा।
दूसरी चाल यह भी हो सकती है कि दूसरा कोई किसानों के सवाल पर सरकार को घेरे इससे बेहतर है घर में ही विरोध दर्ज हो जाए ताकि दूसरे को विरोध का मौका ही नहीं मिले। किसान आंदोलन फिर शुरू हो चुका है। आज की तिथि में नॉएडा में हजारों किसान जमा हैं।
परसों दिल्ली मार्च के दौरान सड़कें जाम हो गयी थी। जनता को कोई असुविधा न हो किसानों ने अपने मार्च को धरना में बदल दिया। बगल के ही दलित प्रेरणा केंद्र के पास किसानों ने डेरा जमा लिया है। 160 किसानों से ज्यादा किसानों की गिरफ़्तारी हो चुकी है। सरकार तो अभी मस्जिद की खुदाई में ही व्यस्त है। सरकार की इतनी व्यस्तता है कि किसानों का सुध लेने की फुर्सत ही नहीं है।
धनखड़ की चालाकी भी हो सकती है। हो सकता है कि यह सारा खेल शिवराज के संज्ञान में हो। रामराज की इस तैयारी में भला शिवराज क्या करेंगे? कभी-कभी बहुत चतुराई जानलेवा हो सकती है। संभव है कि सरकार के इस चालाकी को किसान संगठन जल्द ही समझ लेंगे।