गुलामी प्रथा की वापसी की आहट!
कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करने की सलाह
ब्रह्मानंद ठाकुर
लार्सन एंड टुब्रो कम्पनी के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन ने कहा है कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए। पूर्व में ऐसा ही बयान इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति भी दे चुके हैं। सप्ताह में 90 घंटे काम। यानि प्रतिदिन 15 घंटे। यदि रविवार छोड़ दिया जाए तब। वैसे सुब्रह्मण्यन साहब ने रविवार के दिन भी कर्मचारियों को काम करने की बात कही है। इससे जाहिर हो रहा है कि इस संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था में उद्योगपतियों के लिए मुनाफा अर्जित करने की महत्वाकांक्षा परवान चढ़ चुकी है। अगर ऐसा हुआ तब तो औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा गुलामी प्रथा वाले समाज के मजदूरों जैसी ही हो जाएगी। इतिहास बताता है कि गुलामी प्रथा में मजदूरों से काफी निर्दयता पूर्वक काम लिया जाता था। गुलामों पर उनके मालिक का अधिकार होता था। उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने मालिक के आदेश पर काम करना पड़ता था। गुलाम की श्रम क्षमता का पूरा उपयोग करते हुए उसे मौत के मुंह में झोंक देना आम बात थी। विकास के ऐतिहासिक क्रम मे गुलामी प्रथा का अंत हुआ और औद्योगिक क्रांति के साथ पूंजीवाद का आगमन हुआ।19वीं शताब्दी के प्रारंभ में औद्योगिक क्रांति जोर पकड़ रही थी। बड़ी संख्या में खेतिहर मजदूर इन उद्योगों में काम करने आ रहे थे। तब इनसे रोजाना अमानवीय तरह से 18 से 20 घंटे काम लिया जाता था। कुछ इन्ही परिस्थितियों में 1886 के मशहूर मई दिवस संघर्ष और मजदूरों की शहादत ने पूरी दुनिया के मजदूरों में जागृति ला दी। फिर 1889 में पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन ने 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस घोषित किया। 1917 में दुनिया में पहली बार रूस के मजदूरों ने पूंजीवादी राजसत्ता को उखाड़ कर समाजवादी राजसत्ता कायम किया। इसके साथ ही मजदूरों के शोषण का अंत हुआ। काम के घंटे धीरे-धीरे कम होते गए। पहले 6 घंटा फिर उसे घटाकर 5 घंटा कर दिया गया। 104 दिनों का सवैतनिक अवकाश लागू किया गया। अपने देश मे बाबा साहब अम्बेडकर ने श्रम कानूनों में संशोधन की मांग की थी। उन्हीं की मांग पर 1948 में मजदूरों से रोज 8 घंटे और सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम नहीं कराने का कानून बना। इसमें यह भी प्रावधान था कि यदि कोई नियोक्ता मजदूरों से निर्धारित समय से अधिक काम कराता है तो वह उसे ओभर टाइम देगा। मजदूर भी अतिरिक्त पैसे पाने के लिए राजी खुशी ओभर टाइम कर लेते थे। अब वह भी खत्म कर दिया गया है। शासक पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकारें काम के घंटे इसलिए बढ़ा रही हैं कि मजदूरों के श्रम का बेरहमी से शोषण कर अपने आका पूंजीपतियों की तिजोरी भर सकें। पूंजीपति चाहते हैं कि मजदूर कम से कम मजदूरी में अधिक से अधिक घण्टे काम करें और उनकी संपत्ति में वृद्धि करते जाएं। इसलिए वह चाहते हैं कि काम के घंटे 8 से भी बढ़ाकर 12-14 कर दिए जाएं। लार्सन एंड टुब्रो कम्पनी के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन के हालिया बयान को इसी नजरिए से समझने की जरूरत है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)