गण मौन एवं गणाध्यक्ष गौण वाला गणतंत्र

गणराज्य या गणतंत्र

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विनोद कुमार विक्की
आज के प्रसंग में हम विविधता से भरे-पूरे विश्व के सबसे प्राचीनतम और सात दशक पूर्व संशोधित किये गये गणतंत्र, उनमें निवासित गण और गणमान्य की चर्चा करने जा रहे हैं। इस अद्भुत और अद्वितीय गणतंत्र के गणगोष्ठी सदन में शिक्षित, अशिक्षित, खिलाड़ी, व्यापारी, नेता-अभिनेता आदि किसी भी वर्ग, वर्ण, जाति, लिंग आदि का मानव शरीर धारी जीव, गणमान्य के पद पर निर्वाचित हो सकता हैं। मजे की बात यह है कि मोह-माया से इतर मंदिर, हिमालय या कंदराओं में निवास करने की प्रवृत्ति वाले तथाकथित साधु/साध्वी सज्जन से जेल, बीहड़ में निवास करने की आपराधिक प्रकृति वाले दुर्जन अभियुक्त भी खादी चोला धारण कर गणतंत्र का प्रमुख बन गण को नियंत्रित और नियमित कर सकता हैं।
आए दिन ऐसे गणमान्य अपने कृत्यों से गणतंत्र का गुड़ गोबर करने का शौर्य साहस भी कर डालते हैं। आलम यह है कि बेतार संचार पर राष्ट्र प्रधान भी गण अथवा जन की बजाय मन की बात करने में रुचिरत हैं। जब लोकतांत्रिक शासन से प्रशासन तक धन और मन का आधिपत्य हो जाए, तो गण का गौण होना लाजिमी है। इस भूखंड पर गणराज्य या गणतंत्र है, लेकिन तंत्र से पीड़ित गण हर क्षेत्र में गौण और मौन है।
करोड़ों गण को नियंत्रित और नियमित करने वाला रिमोट कंट्रोल मुट्ठी भर गणमान्य के कर कमलों में होता है। जिसका इस्तेमाल वो गणराज्य पर शासन करने हेतु पाँच वर्षों के अंतराल पर सुविधा अनुसार किया करते हैं।
हालांकि गणमान्य का चयन ‘गण’ के द्वारा ही होता है। यह और बात है कि चयन की प्रक्रिया में बहु आयामी विकास की बजाय जाति और कौम को प्राथमिकता दी जाती है। फलस्वरूप जाति, धर्म, कौम के नाम पर गणमान्य पाँच वर्षों तक गण पर पूरे मन से शासन करते है।
आजादी के सात दशक बाद भी यहांँ के गण मुद्दे से ज्यादा गड़े मुर्दे में दिलचस्पी रखते हैं। बहरहाल गलती गण की है, तो गणसेवक भी कम दोषी नहीं है। आखिर गण के वोट से ही गणमान्य विकास, गरीबी, भ्रष्टाचार की दुहाई देकर दिल्ली अथवा प्रांतीय गण गोष्ठी सदन तक पहुँचते हैँ। चुनाव पश्चात गणनायक चिंतनीय, विचारणीय एवं क्रांतिकारी विषयों से गण को रू-ब-रू करवाते हैं। गणराज्य के गणमान्य ही निर्धारित करते है कि वास्तविक समस्या या मुद्दा मंदिर मस्जिद, गाय, गंगा, क्षेत्र और जाति में ही छुपी हुई है तथा गणराज्य का विकास आधुनिकीकरण और डिजिटलाइजेशन में छुपा हुआ है।
शेष गरीबी, पलायन, शिक्षा, रोजगार कृषि, बिजली, सड़क सहित अन्य मुद्दे समस्याओं की श्रेणी में आती ही नहीं है। जाति- मजहब के लिए योगदान ही सर्वोपरि है। राष्ट्र व राष्ट्रीयता तो सब्सिडियरी मुद्दे है। गणमान्य के गुण से गण को समस्याओं का ज्ञान होता है और उसके बाद गण की सक्रियता समस्या समाधान के प्रति बढ जाती है। गणनायक के लोकतांत्रिक ज्ञान के वशीभूत गण जागरूक नागरिक बन कर समस्याओं के खिलाफ शंखनाद करते हैं। आंदोलन करते है, तोड़-फोड़ करते है, धरना-प्रदर्शन करते है, यहाँ तक कि मरते-मारते भी है। यह और बात है कि लड़ने वाली समस्या का विषय धर्म, आरक्षण, आतंकी की फांसी या भ्रष्ट नेताओं या पथ भ्रष्टबाबा की गिरफ्तारी होती है।
रोजी-रोटी, बिजली, सड़क, शिक्षा के विषय पर गण एवं गणमान्य दोनों ही गौण हो जाते है।
गणमान्य अपनी सुविधा अनुसार तोड़-मरोड़ कर तंत्र का पुनर्निर्माण करते हैं। तंत्र, गण को भूल-भूलैया का रास्ता दिखाता है और गण उसी में अगले पाँच वर्षों तक भटकता रहता है। गण को वही दिखता है, जो तंत्र दिखाता है। गण फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक हेतु हिंसा करता है। आरक्षण की मांग पर तोड़-फोड़ करता है। टुच्चा टाइप बाबा के लिए गदर-कोहराम मचाता है।
गण को सुध कहांँ है तंत्र को सुनियोजित करने का। वह मस्त है विकास का उड़नखटोला देखने में, मुफ्त आटा और डाटा के इंतजार में।
वैसे इस अद्भुत गणराज्य में अध्यक्ष का प्रावधान भी है लेकिन औपचारिक, क्योंकि उन्हें गण नही चुनते बल्कि गण द्वारा चुने गए ‘गणमान्य’ चुनते हैं।
गणाध्यक्ष पर भी गणमान्यों का ही वर्चस्व है। इस अद्वितीय गणराज्य में जोड़-जुगाड़, जाति जवार से निर्वाचित गणमान्य ही गण, गणाध्यक्ष एवं गणतंत्र को संचालित और संधारित कर रहे है। सार यह है कि इस गणराज्य में तंत्र है, गण हैं और गणाध्यक्ष भी है लेकिन गौण और मौन है।

 

 

Republic in which Ganaadhyaksha is secondary
विनोद कुमार विक्की ,खगड़िया

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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