डॉ योगेन्द्र
मुझे स्वामी विवेकानंद बहुत पसंद हैं। उन्हें बार-बार पढ़ता हूं। उन पर लिखने की भी इच्छा है, लेकिन आज सुबह मैंने उनका एक भाषण पढ़ा, जो उन्होंने 20 अक्टूबर 1886 को लंदन में दिया था। उसमें उन्होंने कहा है -“हमने भारत में धर्म के विषय में स्वाधीनता दी थी और उसके फलस्वरूप हमें एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति मिली है। तुम लोगों ने सामाजिक स्वतंत्रता दी थी, इसलिए तुम्हारा सामाजिक संगठन इतना सुंदर है। हमने सामाजिक बातों में बिल्कुल स्वतंत्रता नहीं दी, इसलिए हमारे समाज में संकीर्णता है। तुम्हारे देश में धार्मिक स्वतंत्रता नहीं दी गई, अतः धार्मिक विश्वास दूसरों पर लादने के लिए तलवारों और बंदूकों का उपयोग किया गया। उसी का फल है कि आज यूरोप में धर्म इतना कुंठित और संकीर्ण है। भारत में समाज की बेड़ी को तोड़ना होगा और यूरोप में धर्म की बेड़ी को। तभी मनुष्य में आश्चर्यजनक विकास और उन्नति होगी।” अन्य बातों से सहमति है, लेकिन क्या यह सच है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता दी गई थी? बौद्धों को खत्म करने के लिए क्या हिंसा का सहारा नहीं लिया गया? क्या शैवों और शाक्तों में युद्ध नहीं हुए? स्वामी विवेकानंद का यह कहना कि भारत में सिर्फ सामाजिक संकीर्णता है, धार्मिक नहीं – यह सही नहीं लगता।
आज भी बौद्ध विहारों पर कब्जा करने में थोड़ा भी परहेज़ नहीं कर रहे। बोधगया में जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ, वहां जाकर देखिए। तथाकथित सनातनियों ने बुद्ध के ज्ञान स्थल पर हनुमान आदि की मूर्तियां डाल रखीं हैं। मनुष्य के विकास के लिए धार्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता जरूरी है। लेकिन आज भारत कुंठा के दौर से गुजर रहा है। एक धर्मावलंबी दूसरे पर टूट पड़ता है। विवेकानंद ने इस भाषण में एक मजेदार बात कही है। उसने कहा है कि आदमी के विकास के साथ ईश्वर का भी विकास हो रहा है। आदमी अपने समय के अनुसार ईश्वर का निर्माण कर लेता है। वैदिक देवता इंद्र को अब कोई हिन्दू नहीं पूजता। वैदिक युग के वे सशक्त देवता रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु के भी दिन लद गए। आप देखेंगे कि श्वेतांबरा सरस्वती अब विभिन्न रंगों की हो गई है यानी ईस्टमैन कलर की होती जा रही है। दुर्गा भी बदलती जा रही है। जाहिर है कि इनके बदलाव में युग का प्रभाव है। विवेकानंद ने साफ़-साफ़ लिखा है कि अगर कुत्ते या बिल्लियां अपने ईश्वर का आकार बनायेगी, तो वह बिल्लियों की तरह होगा, मनुष्य की तरह नहीं। आखिर बिल्ली मनुष्य के देवता को अपना देवता कैसे और क्यों माने?
आज जो धार्मिक विवाद है और यह विवाद अधार्मिक लोगों ने फैला रखा है। अगर ये लोग विवेकानंद को ही ध्यान से पढ़ जायें तो बहुत सारे भूत उनके सिर से उतर जायेगा। व्यर्थ के झगड़ों से वे बच जायेंगे और देश भी दूसरा काम करेगा। आप पूजा करना चाहते हैं, करें। पर सड़क पर हंगामा करना कहां की पूजा है? मुहर्रम गम का पर्व है, लेकिन सड़कों पर हथियार लेकर निकलते हैं और डरावना दृश्य उत्पन्न करते हैं या शबे-बारात के कानफोडू पटाखे कहां से शबे-बारात को शबे-बारात रहने देता है? काली विसर्जन या दुर्गा विसर्जन में मन डरा रहता है कि पता नहीं कौन सी दुर्घटना घटित हो जाय। हमने धार्मिक स्थलों पर अपनी अपनी मूछें लगा दी हैं। नतीजा है कि पूजा समारोह संकट समारोह में तब्दील होता जा रहा है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)