
राहुल गाँधी जहां जा रहे हैं संघ और संघ प्रमुख को साथ ले जा रहे हैं। पटना में फिर इन्होने संघ के खिलाफ गर्जना की है।
राहुल गाँधी बिहार में गर्जना कर वापस दिल्ली लौट आये हैं। निर्धारित कार्यक्रमों से समय निकाल कर लालू प्रसाद से मिल आये। आंदोलनरत छात्रों को अपना समर्थन भी दे आये। अमूमन राहुल गाँधी जहां जाते हैं वहां एक आशा जगा कर लौटते हैं। लेकिन निराशा कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ती है। हताशा का साया साथ-साथ ही चलता है। अकर्मन्यता का यह भूत कांग्रेस का पीछा ही नहीं छोड़ता है।
दुर्भाग्य से बिहार का लाचार और लचर कांग्रेस नेतृत्व राहुल की आवाज को जन-जन तक पहुंचाने में अबतक असफल ही साबित हुए हैं। इस बार की यात्रा के भी कुछ ऐसे ही परिणाम निकलेंगे। प्रदेश अध्यक्ष को जब पार्टी के ही कार्यकर्त्ता दलाल घोषित कर रहे हों तो कांग्रेस को जमीन कहाँ से मिलेगी बिहार में? कैसे कांग्रेस की तरफ लोग आकर्षित होंगे?
राहुल गाँधी की यात्रा को लेकर राजद तमाशबीन ही बना रहा। बावजूद राहुल अहंकार को त्याग कर लालू से मिलने गए। राजद से अलग हटकर चुनाव लड़ने की संभावना अभी मरी नहीं है। राजद राष्ट्रीय परिषद ने तेजस्वी को असीमित अधिकार प्रदान किया है। राजद ने घोषणा की है कि इस बार के चुनाव में राजद ही बिग- बॉस की भूमिका निभाएगा। किसी की कोई बार्गेनिंग नहीं चलेगी। वैसे राहुल राजनीति खेल आये बिहार में। उन्होने बिहार में हुई जातिगत जनगणना को फर्जी करार दिया। तेजस्वी भी इसको लेकर सीना ताने दिखते थे कि हमलोगों ने जनगणना का काम कर दिखाया। राहुल के बयान से तेजस्वी भी पिट गए हैं। एक तरह से तेजस्वी भी फर्जी साबित किये गए। राजनीति है सबको अपने दाव और दावा की परवाह करनी होती है।
बिहार का समीकरण क्या आकार लेता है और कांग्रेस क्या स्टेप लेगी, इसका हमें इंतज़ार करना होगा। चुनाव के परिणाम जो भी हो, पर राहुल गाँधी की जनपक्षधर राजनीति अब लोगों को भाने लगी है। एम्स के बाहर कपकपाती सर्द रात में रोगियों का हालचाल पूछने पहुँच जाते हैं। कभी खेत में तो कभी खलिहान में। कभी चौराहे पर बैठ असहाय महिला से बतियाते दिखते हैं।
यह पहल एक सरोकार स्थापित करती है। कोई भी दल और उसका नेता चाहे जो हो, जनता से बात करने की जहमत नहीं उठाते। अगर जनता की कद्र ये करते भी हैं तो केवल चुनाव में। लेकिन गाँधी लगातार नजीर पेश कर रहे हैं। मूल कांग्रेस यही है। अगर राहुल के भीतर का यह कांग्रेस जीवित हो गया तो भाजपा के लिए यह बड़ा खतरा साबित होगा। कीचड़ के ऊपर केवल खिला हुआ कमल देखने से तो काम नहीं चलेगा।
घबराहट है कि राहुल गाँधी सुकुमार नेताओं को कीचड़ में न उतार दे। संघ के सुकुमार कार्यकर्त्ता वास्तव में देव दुर्लभ ही है। देवदुर्लभ भला जनता के लिए सुलभ कैसे रहेंगे? सेवा की बड़ी-बड़ी बात भाजपा के लोग करते हैं लेकिन चमचमाती गाड़ी से नीचे उतरते हुए नहीं दिखते हैं।
राहुल गाँधी जहां जा रहे हैं संघ और संघ प्रमुख को साथ ले जा रहे हैं। पटना में फिर इन्होने संघ के खिलाफ गर्जना की है। भाजपा नेताओं के लिए जैसे ओबैसी भाईजान हैं वैसे ही कांग्रेस के लिए बजरंगी भाईजान यानी संघी हो गए हैं। बिना ओबैसी और पाकिस्तान का भाजपा नेताओं का भाषण अधूरा रहता है, वैसे ही बिना संघ को लपेटे राहुल गाँधी का भाषण भी अधूरा रहता है।
संघ की स्थापना इसलिए नहीं हुई कि भविष्य में राहुल गाँधी को स्थापित करना है। केवल संघ का विरोध कर कांग्रेस आगे नहीं बढ़ सकती है। राहुल गाँधी के पास कहने के लिए अपना कुछ क्या है? कांग्रेस को अपना कुछ नहीं है कहने के लिए। भारत कैसे मजबूत होगा? भूख और बेकारी कैसे दूर होगी? मोदी अगर बुरे हैं तो आप कैसे अच्छे हैं? यह बताना भी होगा और दिखाना भी होगा। बात नीयत की है और नीतियों की भी है। राहुल की नीयत ठीक हो सकती है, पर इनके भाषण में कोई नूतन नीति नहीं दिखाई देती। कांग्रेस को समानांतर सिद्धांत को गढ़ना पड़ेगा। छूछे भाषण से काम नहीं चलेगा। लोकनायक का विरोध भी था और साथ में व्यवस्था परिवर्तन का मॉडल भी था। राहुल के पास प्रतिकार के स्वर तो हैं पर परिवर्तन के कोई मॉडल नहीं है।