राजनीति को एक अदद भगीरथ चाहिए

भ्रष्ट और चालाक राजनीतिज्ञ

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डॉ योगेन्द्र
आजकल की राजनीति में एक ह्रदय की तलाश है तो वह आपकी और हमारी मूर्खता है। पहले पक्ष हो या विपक्ष – हरेक नेता में ह्रदय होता था। वे एक दूसरे के ख़िलाफ़ बोलते थे, लेकिन ह्रदय बचा रहता था। वे इतने कटु नहीं होते थे कि व्यक्तिगत रिश्ते न बचें। आज की स्थिति अलग है। दोनों भैंसा की तरह भिड़ जाते हैं और सबकुछ तहस नहस कर डालते हैं। कल मेरी मुलाक़ात नयी नवेली पार्टी के एक नेता से हुई। यह पार्टी बिहार में सत्ता क़ायम करने के दावे करती है। मैंने उससे पूछा कि राजस्थान में कोटा फैक्ट्री है जिसमें हर वर्ष ढाई लाख छात्र कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने आते थे। इस वर्ष आधे हो गए हैं। बहुत से मकान मालिक हैरान परेशान हैं कि अगर बाहर से छात्र नहीं आये तो इन मकानों का क्या होगा? पिछले तीन वर्षों में उनसठ लड़के लड़कियों ने आत्महत्या की है। अब बेरोजगारी का आलम यह है कि आईआईटी से पास आउट इंजीनियर में से अड़तीस फ़ीसदी को ही अच्छी नौकरी मिल रही है। करोड़ों छात्र विभिन्न संस्थानों से पढ़ कर निकल रहे हैं। उन्हें बताया गया है कि बिना नौकरी के तुम्हारी ज़िंदगी का कोई मतलब नहीं है। ऐसी दशा में आपकी पार्टी ऐसे छात्रों को कैसे संबोधित करेगी? उन्होंने कहा कि मेरी पार्टी ने कहा है कि बिहार से बाहर किसी छात्र को नहीं जाने देगी। बिहार में ही सबको काम मिलेगा। मैंने पूछा -कैसे? उन्होंने कहा कि यह मत पूछिए। मेरे नेता ने कहा है। मैं वही कह रहा हूँ। इसके अलावे और कुछ नहीं कह सकता। फरेब आजकल की राजनीति का अभिन्न हिस्सा है। चाहे जैसे भी हो, सत्ता पर क़ाबिज़ होना है।
उन्होंने बताया कि मेरी पार्टी की ओर से पाँच हज़ार मोटरसाइकिल मँगवाई गई हैं जो कार्यकर्ताओं को दी गयी है और उन्हें कहा गया है कि घर-घर उसे पार्टी के पाँच संकल्प को पहुंचाना है। वे अपने काम में लगे हैं। मेरी पार्टी किसी से कम नहीं है। हरेक कार्यकर्ता को पाँच हज़ार रूपया महीने, खाने पीने का पूरा इंतज़ाम और रहने के होटल का इंतज़ाम है। कार्यकर्ता मस्त हैं कि यह पार्टी नयी दुनिया बनायेगी, जिसमें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी। सच यह है कि पार्टी के पास कोई ठोस योजना नहीं है। उनका मानना है कि असली लड़ाई नैरेटिब गढ़ने का है। जीत कर काम कौन दल कर रहा है? सबका तो गोरखधंधा है। पहले चुनाव में जो नैरेटिब गढ़ा गया, दूसरे चुनाव में ग़ायब हो जाता है। प्रत्येक साल दो करोड़ युवाओं को रोज़गार देंगे। कैसे देंगे, क्या योजना है, नहीं बताया गया। मगर युवाओं ने भरोसा किया। दूसरे चुनाव में नारा बदल गया। अब गारंटी का जमाना है। सो राजनीति में गारंटी दी जाने लगी। दो करोड़ की गारंटी के बारे में किसी ने किसी से नहीं पूछा। पूछने का मौक़ा नहीं था। धड़ाधड़ गारंटी दी जा रही थी। अगले चुनाव में इन गारंटियों का कोई मतलब नहीं रहेगा। कोई नये नारे के साथ राजनीतिक बिसात बिछाई जाएगी। फिर नया दाना और चारा होगा और हम सब उन दानों को चुभलाने लगेंगे। देश की राजनीति सचमुच बंद गली के आख़िरी मकान पर पहुँच चुकी है और इस राजनीति को एक भगीरथ की ज़रूरत है।

 

Politics needs a Bhagiratha
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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