धर्म की टोपी और राज का सपना

धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल

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डॉ योगेन्द्र
मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने कभी लिखा था-
“यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
यूँ ही हमेशा खिलाये हैं हमने आग में फूल
न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई।”
खल्क यानी दुनिया। दुनिया जुल्म से उलझती रही है। जुल्म की कोई नयी रस्म नहीं है, न उनसे टकराती दुनिया की नयी रीत है। सदियों से यह चलती रही है। ज़ुल्म जितना निष्ठुर हुआ, संघर्ष उतना ही सघन हुआ। टकराते रहे, उलझते रहे और संघर्ष के नये मोर्चे खुलते रहे। शायर कहता है- न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई। ये रस्में नयी नहीं है। एक संघर्ष आज भी चल रहा है। जुल्म अनेक रूपों में मनुष्य पर आक्रमण कर रहा है- विचार और व्यवहार दोनों स्तरों पर। हर एक के दिमाग में बैठाया जा रहा है कि देश में एक मुस्लिम काल था जिसने हिंदुओं को खूब असम्मानित किया, उसके धार्मिक स्थलों को तोड़ा। दरअसल मुस्लिम काल नामक कोई काल नहीं था। यहाँ वंशों का राजपाट रहा। पहले मुस्लिम व्यापारी के रूप में आये, जैसे अंग्रेज आये थे। पर सिंध पर आक्रमण हुआ। फिर लुटेरा तुर्क महमूद गजनवी आया। बार-बार चढ़ाई कर यहाँ की संपदा लूटी। फिर मुहम्मद गोरी आया। उसके मरने के बाद काफी खून खराबे हुए और अंततः एक गुलाम इल्तुतमिश राजा हुआ। गुलाम वंश, खिलजी वंश, लोदी वंश का राजपाट हुआ। ये लोग गद्दी के लिए आपस में टकराते। ऐसा भी नहीं था कि स्थानीय राजाओं ने उन्हें टक्कर नहीं दी। वे लड़े जरूर, लेकिन हार गये।
मुगल वंश का पहला बादशाह बाबर किसी और से नहीं बल्कि एक मुस्लिम राजा इब्राहिम लोदी से टकराया था। इतिहास बहुत लंबा है। ये सब बादशाह थे, धार्मिक प्रचारक नहीं थे। जब मुस्लिम मुस्लिम से टकराता था तो जिहाद का नारा गायब हो जाता था और जब हिन्दू राजा से लड़ता था तो जेहाद के नारे बुलंद होते थे। जो आम जनता थी, वह भी अमीरों- गरीबों में बँटी हुई थी। सभी मुस्लिमों की हैसियत एक नहीं थी। पहली श्रेणी में वे लोग थे जो कुलीन लोग थे, जिनके पास जमीन- जायदाद और जागीरें थीं। दूसरी श्रेणी में कारीगर, मामूली दुकानदार और किरानी लोग थे और तीसरी श्रेणी में मजदूर और किसान थे। जो मुसलमान थे, वे भी सामाजिक और आर्थिक आधार पर बँटे थे। आज भी हिन्दू राष्ट्र का नारा है। इसमें भी हिन्दुओं की कई श्रेणियाँ है जिनमें आपस में भी संबंध नहीं है। मुस्लिम राज में गरीब मुस्लिम की कोई हैसियत नहीं थी, जैसे आज समाज की स्थिति है। एक भ्रम यह भी है कि अंग्रेजों ने मुसलमानों से राजपाट छीना। यह एक बड़ा झूठ है। मुगल वंश तो इस कदर बिखर गया था कि दिल्ली पर मराठों का कब्जा था। मराठे दिल्ली के मुगल वंशजों को पेंशन देता था। 1803 में मराठों और अंग्रेजों में अंतिम युद्ध हुआ, जिसके कारण अंग्रेज़ों का राज कायम हुआ। सभी वंशों के काल में समाज के स्ट्रेचर को बहुत नहीं छेड़ा गया। हिन्दू राजाओं ने कभी संघर्ष किया, कभी समझौता किया। यह लड़ाई पूरी तरह से राजनैतिक थी, धर्म का जगह जगह इस्तेमाल होता था। जैसे आज हो रहा है। आज भी पूरी लड़ाई राजनीतिक है। धर्म का सिर्फ़ इस्तेमाल किया जाता है। प्रधानमंत्री या गृह मंत्री के ऐसे कौन से व्यवहार हैं जो उन्हें हिन्दू संत का दर्जा दिला सकता है। वे त्रिपुंड धारण सिर्फ हिंदू जनता को लुभाने के लिए करते हैं। धर्म से उन्हें कोई लेना देना नहीं है।

 

Political use of religion
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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