निर्मल रानी
जिस समय अबू धाबी में स्वामीनारायण मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत वर्ष 14 फरवरी 2024 को किया गया था। उस समय भारतीय मीडिया में इसकी जोरदार चर्चा हुई थी। अबू धाबी में 27 एकड़ जमीन पर बने इस पहले एवं विशाल हिंदू मंदिर के उद्घाटन समारोह में 42 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस मंदिर के निर्माण हेतु 13.5 एकड़ जमीन अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद ने वर्ष 2015 में बीएपीएस संस्था को दान स्वरूप भेंट की थी। गौरतलब है कि संयुक्त अरब अमीरात में लगभग 26 लाख भारतीय रहते हैं जो वहां की कुल जनसँख्या का लगभग 30 फीसदी हिस्सा है। इससे पहले दुबई में भगवान शिव व भगवान कृष्ण के दो अलग-अलग मंदिर और एक गुरुद्वारा तथा अबू धाबी में एक चर्च पहले से मौजूद थे परन्तु यहाँ कोई मंदिर नहीं था। हालाँकि अबू धाबी में निर्मित हुये इस विराट व भव्य मंदिर के निर्माण के बाद यह प्रचारित करने की कोशिश की गयी कि यह अरब जगत में निर्मित पहला हिंदू मंदिर है परन्तु यह सच्चाई से कोसों दूर गोदी मीडिया द्वारा सत्ता की चापलूसी के लिये गढ़ा गया एक नरेटिव मात्र था। क्योंकि बहरीन की राजधानी मनामा में सिंधी हिंदू समुदाय का श्रीनाथजी का मंदिर एक सदी से भी अधिक पुराना है। पड़ोसी देश सऊदी अरब में रहने और काम करने वाले हिंदू भी पवित्र अवसरों पर इस मंदिर में पूजा-पाठ करने आते हैं। ओमान की राजधानी मस्कट में 125 वर्ष प्राचीन मोतीश्वर मंदिर भगवान शंकर का मंदिर हैं। जबकि मस्कट के ही रुवी में 150 साल पुराना कृष्ण-विष्णु मंदिर भी है। इस मंदिर को ओमान के सुल्तान ने ओमान में बसे गुजराती हिन्दू समुदाय के लिए मित्रता के प्रतीक के रूप में निर्मित कराया था। इसके अलावा भी दुबई में संपन्न भारतीय समुदाय में दक्षिण भारतीयों के अलावा सिंधी, मराठी, गुजराती, पंजाबी और करीब सभी प्रमुख धर्मों के कई दशकों पुराने अनेक धार्मिक स्थान हैं। यहाँ इन्हीं मंदिरों में ही पूजा अर्चना, हवन, यज्ञ, धर्म व आध्यात्मिक से जुड़े समारोह, उत्सव व अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि दुबई और उसके आसपास के कुछ शहरों और खाड़ी के अन्य हिस्से में दिवाली की रात ठीक उसी तरह की रोशन होती है, जैसे भारत में होती है।
यह तो उन इस्लामिक देशों में मंदिरों की स्थिति है जहाँ मूर्ति पूजा प्रतिबंधित मानी जाती है परन्तु केवल धार्मिक सौहार्द व सम्मान के कारण अरब जगत के कई देश धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देते हुये एक दूसरे की धार्मिक मान्यताओं व परंपराओं का आदर व सत्कार करते हैं। निश्चित रूप से जब भारतीय समाज ऐसी खबरों से बाखबर होता है तो उसे बेहद खुशी होती है। परन्तु ठीक इसके विपरीत हमारे देश में असहिष्णुता का दिनोंदिन बढ़ता सिलसिला हमारे लिये शर्मिन्दिगी का सबब बनता जा रहा है। यदि हम अरब देशों में मंदिरों के निर्माण पर खुश हो सकते हैं। जब हम बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान जैसे देशों में मंदिर गुरुद्वारों व चर्चों पर होने वाले हमलों पर क्रोधित होते हैं तो हमें स्वयं सौहार्द की मिसाल पेश कर दुनिया के सामने सहिष्णुता व सद्भाव का एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिये। परन्तु यहाँ तो सत्ता के संरक्षण में स्थिति दिन प्रतिदिन कुछ और ही होती जा रही है। गुजरात से शुरू हुआ धार्मिक असहिष्णुता का यह घिनौना खेल अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों तक जा पहुंचा है। कहीं मस्जिदों में नमाज अदा करने से रोका जा रहा है तो कहीं अपने घरों में ही नमाज पढ़ने पर पाबन्दी लगा दी गयी है। जुमे के दिन गुड़गांव जैसे बड़े शहर में पार्कों या खुले स्थानों पर शांतिपूर्वक नमाज पढ़ने वालों का कई बार विरोध हो चुका है। हरियाणा सहित विभिन्न राज्यों में चर्चों पर भी हमले होते रहते हैं। मस्जिदों के इमामों की हत्यायें व उनपर हमले होते रहते हैं। कहीं मस्जिद पर भगवा फहराया जाता है तो कहीं पीर फकीरों की मजारों या दरगाहों को हिंसा व उपद्रव का निशाना बनाया जाता है।
आज हमारे देश में ऐतिहासिक प्रमाणिकता के साथ ऐसे सैकड़ों गैर मुस्लिम धर्मस्थान मिल जायेंगे जिसके लिये मुस्लिमों द्वारा जमीन दान में दी गयी हैं। आज जहां एक ओर तो हमारे देश में सूफी फकीरों से जुड़े अनेक आस्तानों का संचालन गैर मुस्लिमों द्वारा पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ किया जा रहा है। नानक, कबीर, फ़रीद, बुल्ले शाह, ख़ुसरु, निज़ाम, चिश्ती, रहीम रसखान और जायसी जैसे संतों व समाज सुधारकों की ‘सर्व धर्म समभाव’ की मानवीयता पूर्ण विरासत को संजोकर रखने की कोशिश की जा रही है वहीँ साम्प्रदायिकता की शह पाये कुछ लोग इस भारतीय परंपरा और विरासत को छिन्न-भिन्न करने की पुरजोर कोशिश में लगे हुये हैं। यही संकीर्ण मानसिकता के लोग दूसरे समुदाय के लोगों के खान पान पर नजरें रखते हैं। उनकी रसोई में क्या बना है इसमें इनकी पूरी दिलचस्पी है। दूसरों के पहनावे पर एतराज, धार्मिक आयोजनों पर आपत्ति, नफरत की हद तो यह कि इन्हें मुसलमानों के मकान खरीदने या किराये पर लेने पर भी आपत्ति होती है। इनके रोजगार से नफरत, इनके व्यवसायिक बहिष्कार की कोशिशें और हद तो यह हो गयी कि एक मुस्लिम बच्चे द्वारा मंदिर के प्याऊ से पानी पीने का विरोध करने व उसकी पिटाई का समर्थन करने वाले मंदिर का महामंडलेश्वर आज हिन्दू धर्म का आइकॉन बन चुका है? कहाँ चली गयी है हमारी इंसानियत? आखिर किस युग में जी रहे हैं हम?
इन दिनों इलाहाबाद (प्रयागराज) में कुंभ का विराट आयोजन चल रहा है। देश के लिये निश्चित रूप से यह एक गौरवपूर्ण आयोजन है। परन्तु दुःख का विषय है कि इस आयोजन में भी अनेक मंचों का प्रयोग साम्प्रदियकता फैलाने व धर्म विशेष के प्रति नफरत भड़काने के लिये किया गया। केवल छुटभैय्ये नेताओं द्वारा ही नहीं बल्कि शासन से जुड़े ज़िम्मेदार नेताओं द्वारा वैमनस्य पूर्ण बातें की गयीं। परन्तु सुखद यह है कि इसी कुंभ में अनेकानेक मानवतावादी संत व प्रचारक ऐसे भी थे जिन्होंने परस्पर सौहार्द, एकता व भाईचारे का सन्देश दिया। अन्यथा संकीर्ण व रुग्ण मानसिकता के यह लोग जो इबादत के दुश्मन बने बैठे हैं उनसे मानवीयता की क्या उम्मीद की जा सकती है?

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)