जातिवाद किसी समस्या का समाधान नहीं

जातिवाद के जाल में फंसी जनता

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ब्रह्मानंद ठाकुर
देश भर में 76 वां गणतंत्र दिवस काफी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। लोगों ने एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं और बधाइयां दीं।हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था और 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान लागू हुआ। तभी से इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय आजादी आंदोलन से पूर्व नवजागरण काल में हमारे मनीषियों ने समाज में अशिक्षा, अंधविश्वास और जातिवाद के विरुद्ध जो आवाज बुलंद की थी, वह आजादी आंदोलन के दौरान भी गूंजती रही। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि आजादी के बाद से ही देश का पूंजीपति वर्ग अपने वर्गहित में आमजनता में भेदभाव बनाए रखने के लिए धर्म, जाति और भाषा के आधार पर विभेद पैदा कर रहा है। परिणाम सामने है कि देश में आजतक जात-पात की समस्या दूर होने की जगह और भी विकराल होती जा रही है। तमाम राजनीतिक दल प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से खुल्लम खुल्ला जातिवादी मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए जिस क्षेत्र में जिस जाति का वर्चस्व होता है, उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया जाता है। जनता में यह भ्रम फैलाया जाता है कि अपनी जाति के उम्मीदवार के चुनाव जीतने से ही अपनी जाति का विकास होगा। जातिवाद के जाल में फंसी जनता इनके झांसे में आ जाती है और भला- बुरा सोंचे बगैर जाति के आधार पर अपने मताधिकार का प्रयोग करती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी देश या राज्य का संचालन वहां की संसद और विधानसभाओं में संविधान के आधार पर बनाई गई नीतियों, कार्यक्रमों और कानून के आधार पर किया जाना चाहिए, जाति और धर्म के आधार पर नही।
जनता की मूलभूत समस्याएं जैसे रोजगार और शिक्षा के अवसर, आसमान छूती महंगाई, खेती -किसानी, आदि का समाधान धर्म और जाति के आधार पर कतई संभव नहीं है। उद्योगों में जब तालाबंदी और छंटनी होती है तो उससे बेरोजगार हुए श्रमिकों की जाति और धर्म नहीं देखा जाता। बेरोजगारी का दंश सब को समान रूप से झेलना पड़ता है। देश का पूंजीपति वर्ग बड़ी चालाकी से आमजनता का शोषण -उत्पीड़न जारी रखने के लिए उसमें जाति और धर्म की भावना भड़काने का कार्य कर रहा है। आज 76 वें गणतंत्र दिवस पर यह बात समझने की जरूरत है कि किसी भी वर्ग विभाजित समाज में, जैसा कि हमारा समाज है, शोषक और शोषित सिर्फ दो वर्ग ही होते हैं। इन दो वर्गों का संघर्ष ही आज की ऐतिहासिक वास्तविकता है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता । इस स्थिति में शोषित -पीडित जनता को शोषण से स्थाई मुक्ति के लिए जाति -धर्म की मानसिकता की भावना से ऊपर उठकर शोषकों के विरुद्ध एकजुट आंदोलन करने की जरूरत है क्योंकि जाति और धर्म में बंटे रहकर जनता की किसी भी बुनियादी समस्या का समाधान सम्भव नहीं है।

divided on the basis of caste and religion
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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