श्री कृष्ण की नगरी में जुटे देशभर के पंचगव्य चिकित्सक

श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में 12वां पंचगव्य वार्षिक सम्मेलन

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मथुरा, स्वराज खबर। 12वां पंचगव्य वार्षिक सम्मेलन भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और उनकी लीलाओं की स्थली वृंदावन के फोगला आश्रम में हो रहा है। राष्ट्रीय महासम्मेलन के लिए हर वर्ष नए राज्य को चुना जाता है। इस वर्ष यह उत्तर प्रदेश में होने जा रहा है। इसका आयोजन पंचगव्य डॉक्टर्स एसोसिएशन ने किया है। यह महासम्मेलन 22,23 एवं 24 नवम्बर तक चलेगा। इसकी तैयारियां बड़े ही जोर-शोर से चल रही हैं। इस महासम्मेलन में पूरे देश भर के विभिन्न राज्यों से पंचगव्य चिकित्सक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पंचगव्य एक ऐसी प्राचीन भारतीय चिकित्सा विधा है ,जिसमें हमारी सनातनी वैदिक गोवंश अर्थात देसी गायों के द्वारा दिए गए विभिन्न गव्यों जैसे दूध, दही, छाछ, घी मक्खन, गोमय, गोमूत्र इत्यादि से चिकित्सा की जाती है। इसमें कुछ सहज रूप से उपलब्ध होने वाली आयुर्वेदिक औषधि एवं वनस्पतियों का भी उपयोग किया जाता है। जब इन वनस्पतियों को गोमूत्र में मिलाकर शुद्ध अर्क प्राप्त किया जाता है तो इनकी प्रभावकारी क्षमता अनेक गुना बढ़ जाती है।
आपातकाल स्थितियों को छोड़ दें तो पंचगव्य चिकित्सा विश्व में जितनी भी गंभीर बीमारियां हैं उन पर काफी प्रभावशाली ढंग से कार्य करती हुई देखी गई हैं। सम्मेलन के पूर्व पत्रकारों को संबोधित करते हुए पंचगव्य चिकित्सकों ने देसी गाय के महत्व को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि आज पूरा भारत और विश्व के लोग किसी न किसी प्रकार की गंभीर शारीरिक व्याधि से ग्रस्त हैं। ऐसे में भारत के पास पंचगव्य के रूप में एक ऐसा अमूल्य उपहार एवं धरोहर है जो भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए मंगलकारी है। आज जरूरत है इसको गंभीरता से अपनाये जाने की और देसी गाय के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास की।
भारत के लिए देसी गाय प्रकृति का वह अमूल्य उपहार है जिसकी कीमत का अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता है। यह एक चलती फिरती चिकित्सालय है जो एक ही साथ अनेक समस्याओं का समाधान करती है। एक तरफ यह ऊर्जा का अक्षय स्रोत है, तो दूसरी तरफ पर्यावरण को संतुलित करने अर्थात ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में, कृषि की समस्याओं का समाधान करने तथा बेरोजगारी इत्यादि का समाधान करने में पूरी तरह से सक्षम है। हमने तो उसे केवल अन्य पशुओं की तरह एक विशेष मतवालों के लिए पूज्य एक पशु के रूप में देखा है। इसलिए हमने ना तो गौ सेवा को महत्वपूर्ण माना और ना गो संवर्धन को। यहां तक कि हम गाय के विज्ञान को भी मनाना नहीं चाहते इसलिए इसलिए आज भारत सक्षम और समृद्ध होने के बावजूद विपन्नता से उबर नहीं पाया है।
पूरे देश में आर्थिक संपन्नता तभी संभव है जब देशी गोवंश के विज्ञान को एक साथ समग्र रूप से पूरे देश भर में अपनाया जाए। हमें गाय को उसका वास्तविक स्थान देकर राष्ट्रीय धरोहर के रूप में मान्यता देते हुए यह नारा अपनाना ही होगा कि “गौ सेवा-जन सेवा”- “गौ सेवा-राष्ट्र सेवा” आज आवश्यकता है देसी गोवंश के बहुउद्देशीय विज्ञान को संपूर्ण भारत और विश्व में फैलाने की।

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