डॉ योगेन्द्र
‘वन नेशन वन इलेक्शन‘ बुरा आइडिया नहीं है। ज़रूर हो। हुज़ूर की इच्छा है तो इसे जरूर पूरी की जाए। अधूरी इच्छा से गुज़रना ठीक नहीं होता। बहुत अशुभ होता है, लेकिन हुज़ूर की इच्छा यह भी होती है कि दूसरी पार्टी की राज्य सरकारों को गिरा दिया जाए। सरकार गिराने के लिए पाँच साल तो इंतज़ार नहीं कर सकते। बीच कार्यकाल में गिरी सरकारें तो अपना दम तोड़ देंगी, तब वहाँ कोई चुनाव होगा या फिर केंद्र सरकार के प्यारे-दुलारे राज्यपाल ही राजा होंगे? नेशन वन है तो इलेक्शन वन तो होना चाहिए, लेकिन वन नेशन में वन एजुकेशन नहीं होना चाहिए। तरह-तरह के रंग-बिरंगे एजुकेशन। जिसके पास पैसा आ जाए तो एजुकेशन की दुनिया में प्रवेश कर जाए। जैसे कोई क्लीनिक खोल कर बैठ जाता है। टका होना चाहिए। आप कहीं भी प्रवेश कर सकते हैं। एजुकेशन में तो जब मन करे, प्रवेश कर जायें। सरकार पूँजीपतियों के लिए लाल कार्पेट बिछा कर रखी है। सुनते हैं कि सरकार के हमनिवाले और हमप्याले पूँजीपति ने ‘माउंट कारमेल’ टाइप के स्कूलों को धड़ल्ले से ख़रीदना शुरू कर दिया है। सरकार ने ठान ली है- वन नेशन वन कैपिटिलिस्ट का नारा बुलंद करेगी। सरकार का काम करना नहीं है, नये-नये नारे लगाना है।
जो भी हो। हाथी की मदमस्ती से ज़्यादा मदमस्ती सरकार के पास है। हाथी तो मुफ्त में बदनाम है। सरकार ने एनसीआरटी का गठन किया। देश के बुद्धिजीवियों को बुलाया और बुद्धिजीवियों ने मेहनत कर स्कूली कक्षाओं के लिए किताबें बनायीं। वे किताबें सचमुच बहुत अच्छी हैं और सस्ती हैं, लेकिन देश के स्कूलों में लागू नहीं किया। हर निजी स्कूल में अलग-अलग किताबें। हर राज्य सरकार के स्कूलों में अलग-अलग सिलेबस। दरअसल लोकतंत्र में लूट बड़ी चीज़ होती है। लोकतंत्र को लुटाते जाओ। लोकतंत्र को जड़ से मिटाना है तो शिक्षा को तहस नहस कर दो। विश्वविद्यालय को खंडहर बना दो। नालंदा और विक्रमशिला तो पुराने खंडहर है हीं। देश में नये खंडहर हैं नये जीवित विश्वविद्यालय। सरकार ने क़सम खा ली है कि इसे नहीं रहने देंगे। वह ऐसे ऐसे कुलपति को नियुक्त कर रही है, जो पहले से ही भ्रष्ट आचरण के लिए कुख्यात हैं। जो नियुक्त कर रहे हैं, वे भी माल चाभ रहे हैं। जो कुलपति हो रहे हैं, वे भी मालामाल हैं। जो शिक्षक रिटायर हुए। उनकी पेंशन बनेगी। उससे वसूली होगी। शिक्षकों का जो प्रमोशन होगा, उसमें वसूली होगी। विश्वविद्यालय में वही फ़ाइल सरकेगी, जिसमें धन का उपार्जन संभव है। लोकतंत्र बिगड़े हुए लोगों का तंत्र बन गया है। जो जितना बिगड़ा हुआ है, वह उतने ही बड़े पद पर है। इसलिए बिगड़े हुए को कौन बिगाड़ सकेगा? सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का?
इसलिए यहाँ वन नेशन वन इलेक्शन चलेगा। गद्दी का मामला है। वन नेशन, वन एजुकेशन नहीं चलेगा, क्योंकि जनता का मामला है। कुछ वर्षों पहले वन नेशन, वन टैक्स का भी नारा लगा था। देश की हालत यह है कि भिखारी से भी टैक्स वसूले जा रहे हैं। जहाँ जाइए वहाँ टैक्स। बैंक से लेकर सूई ख़रीद तक। वह टैक्स हुज़ूर के हवाई जहाज़, क़लम, चश्मे, सूट, रंग-बिरंगे कपड़ों की ख़रीद पर ख़र्च हो रहे हैं। लोकतंत्र में हुज़ूरों की एक फ़ौज बन गयी है। लेकिन ज़्यादा चिंतित मत होइए। आपको उन्होंने हिन्दू मुस्लिम की अफ़ीम चटा दी है। अफ़ीम चाटिए और मस्त रहिए।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)