शिक्षा की ताबूत में आखिरी कील साबित हो रही है नो डिटेंशन नीति
दो वर्गों में बांटती है यह शिक्षा नीति!
ब्रह्मानंद ठाकुर
उस दिन हाईस्कूल के एक शिक्षक से विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की बाबत चर्चा हो रही थी। शिक्षक इस बात को लेकर चिंतित थे कि नवमी कक्षा के छात्रों की दक्षता वर्ग सापेक्ष नहीं है। अधिकांश छात्र हिंदी और अंग्रेजी की पाठ्य-पुस्तक पढ़ने में भी सक्षम नहीं है। उनका गणित विषयक ज्ञान का स्तर भी बड़ा ही निम्न हैं। शिक्षक की चिंता वाजिब है और इसका कारण वर्तमान शिक्षा नीति के नो डिटेंशन नीति में तलाशने की जरूरत है। नो डिटेंशन नीति यानि पास-फेल प्रणाली को समाप्त कर देना। केन्द्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में नो डिटेंशन नीति लागू किया है। वर्तमान केन्द्र सरकार ने भी 2020 की अपनी शिक्षा नीति में इस प्रावधान को यथावत रहने दिया है। इस नीति के अनुच्छेद-16 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि सरकारी स्कूल में दाखिला लेने वाले कक्षा 1 से 8 तक के किसी भी छात्र को फेल नहीं नहीं किया जाएगा तथा प्राथमिक स्तर तक की पढ़ाई पूरी करने तक उसे स्कूल से निकाला भी नहीं जाएगा। इसी तरह अधिनियम के अनुच्छेद-30 में कहा गया है कि किसी भी छात्र को प्राथमिक स्तर तक कोई भी बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करनी होगी। यह भी कि हर छात्र को प्राथमिक शिक्षा पूरी करने पर प्रमाणपत्र दिया जाएगा। यह शिक्षा नीति शिक्षा को स्पष्ट रूप से गरीब और अमीर दो वर्गों में बांटती है। इस कानून ने देश में दो तरह के शिक्षा का दरबाजा खोल दिया है। एक सरकारी और दूसरा निजी विद्यालय। निजी विद्यालयों में परीक्षा का प्रावधान है। वहां बेहतर शैक्षणिक ढांचे के साथ बेहतर पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। ऊंची फीस लेकर छात्रों का दाखिला होता है। वहां भीषण प्रतिस्पर्धा के कारण गांव के गरीब परिवारों के बच्चे नामांकन से बंचित रह जाते हैं। सरकार ने 25 प्रतिशत सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित कर 75 प्रतिशत सीट ऊंचे दाम पर बेंचने की परोक्ष रूप से खुली छूट दे रखी है।
अब थोड़ी चर्चा परीक्षा की। एक छात्र को सम्पूर्ण मूल्यांकन के लिए उसे तीन स्तरों से गुजरना पड़ता है। पहला, जिस वर्ग में वह दाखिला लेना चाहता है उसके लिए उसमें योग्यता है या नही? दूसरा, जिस वर्ग में वह नामांकित हुआ है, उस वर्ग के पाठ्यक्रम एवं विषय वस्तु को वह समझ रहा है या नहीं? और तीसरा , शैक्षणिक सत्र के अंत में आयोजित परीक्षा में इस बात की जांच की जाती है कि छात्र ने अगली कक्षा में जाने की योग्यता हासिल की है या नहीं? इसमें परीक्षा केवल छात्रों की ही नहीं, शिक्षक की भी होती है और उन्हें अपनी क्षमता बढ़ाने का अवसर मिलता है। नो डिटेंशन नीति ने इस अवधारणा को ही खत्म कर दिया है। पास-फेल प्रणाली सिर्फ छात्रों को ही नहीं, यह इंसान को चुनौतियों का मुकाबला करते हुए शानदार जीवन जीने को प्रेरित करता है। इसतरह नो डिटेंशन नीति ने शिक्षा सम्बन्धी इस अवधारणा को ही खारिज कर दिया है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)