ब्रह्मानंद ठाकुर
हर मां-बाप की दिली इच्छा होती है कि उसका बेटा बुढ़ापे में उसका सहारा बनेगा। उसकी परिवरिश करेगा। लेकिन वही बेटा जब अपने बूढ़े मां-बाप का क़ातिल बन जाए तो इंसानियत पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। आज हमारा समाज कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से गुजर रहा है। आज के ठाकुर का कोना का विषय बिहार के नालंदा जिले के गांव में हाल ही में घटित हत्या की एक नृशंस घटना की खबर पर केन्द्रित है। खबर यह है कि इस जिले के छबीलापुर थानांतर्गत दोगी गांव में एक इकलौते पुत्र ने पैसे के लिए अपने माता-पिता की हत्या कर दी। आरोपी पुत्र का नाम विपिन कुमार है। वह बी फार्मा का छात्र है और नशाखोरी के साथ-साथ जुआ और सट्टेबाजी का शौकीन भी। अपने इस शौक को पूरा करने के लिए विपिन ने काफी रुपये कर्ज ले रखा था। उस कर्ज की अदायगी के लिए वह अपने माता-पिता से रुपये मांग रहा था। रुपये नहीं देने के कारण उसने अपने माता-पिता की बेरहमी से हत्या कर दी। घटना बीते 18 नवम्बर की है। पुलिस ने दोनों का शव बिछावन पर अधजली अवस्था में बरामद कर हत्यारे पुत्र को गिरफ्तार कर लिया है। आम लोगों के लिए ऐसी घटना आम हो सकती है लेकिन यह खबर हर संवेदनशील व्यक्ति की संवेदना को झकझोरती है। हमारा पूरा समाज आज इंसानियत, स्नेह -प्यार, ममत्व और अमन-चैन में व्याप्त घनघोर संकट से गुजर रहा है। हमारा अतीत तो ऐसा नहीं था? आज पारिवारिक जीवन की दुर्दशा से बच्चे मुक्त नहीं है। दस-बारह साल के बच्चे आपस में झगड़ा होने पर एक-दूसरे की हत्या कर दे रहे हैं। इसी उम्र में लड़के-लडकियां मानसिक विकारों से ग्रसित हैं। इस तरफ न राजनेताओं का कोई ध्यान है और न शिक्षण संस्थाएं ही उच्च नीति-नैतिकता और मानवीय मूल्यबोध की शिक्षा दे रहे हैं। सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सर्वत्र अभाव बोध, हाहाकार और पीड़ा व्याप्त है। न केवल हमारा देश बल्कि दुनिया के अन्य देश भी इससे अछूता नहीं हैं। आखिर ऐसा हुआ क्यों? यह जानने के लिए थोड़ा अतीत में झांकना होगा।
सामंती युग में जिस धर्म को केन्द्र में रख मूल्यबोध और इंसानियत का ढांचा तैयार हुआ था, वह राजनीति, अर्थव्यवस्था, सामाजिक और पारिवारिक जीवन, प्यार मोहब्बत, दाम्पत्य जीवन सभी को प्रभावित करता था। अपने ऐतिहासिक विकासक्रम के नियमों से ये धार्मिक मूल्यबोध आगे चलकर काफी समय बाद रुढ़िवादी हो गये। इसके बाद नवजागरण काल में विज्ञान और तार्किक मानसिकता के आधार पर समाज में धार्मिक प्रभाव से मुक्त जनवादी, मानवतावादी मूल्यों का आगमन हुआ। हमारे देश में भी राजा राममोहन राय, ईश्वर चंन्द्र विद्यासागर जैसे लोगों ने इस चिंतन को आगे बढ़ाया। नवजागरण के इस प्रथम युग को मानवतावाद का युग कहा जाता है। कालांतर में यह मानवतावाद भी प्रतिक्रियावादी हो गया। वह अपने मूल्यों, संस्कृति और आदर्शों की रक्षा नहीं कर सका। यहीं से मौजूदा संकट की शुरुआत हुई है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)