खाता न बही, भागवत जो कहे वही सही

संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं का संघ के लिए कोई मतलब नहीं!

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डॉ योगेन्द्र
खिड़कियों और दरवाज़े से खिली हुई धूप घर में पसर गई है। यों आम के पत्ते अब तक सिकुड़े हैं और उन पर धूल पड़ी है। मंजर आने का वक्त आ रहा है। बहुत सारे बगीचे कटते गये। उसमें घर बनते गये। कुछ नये आम के पौधे लगे हैं, मगर वे व्यवसाय के निमित्त हैं या फिर मजबूरी बस। जिनके बाल- बच्चे शहर चले गए। उन्हें जमीन बचानी थी, इसलिए उन्होंने पेड़ लगा दिए। खैर। अभी तो यह है कि धूप रौशन कर रही है। उसके लिए सब बराबर है। सब पर वह छायी है। गाय पर भी और गोबर पर भी। झोपड़ी पर भी, महल पर भी। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि उन्नति तरंगाकार होती है और गति चक्राकार। समुद्र में लहरें तरंग का रूप लेतीं हैं और आगे बढ़ती जाती हैं। बीज से पेड़, पत्ते और फूल- फल और फल से फिर बीज। बीज से फिर पेड़। सब कुछ एक चक्र में घूमता रहता है। पानी से वाष्प, वाष्प से बादल, बादल से पानी। प्रकृति चक्रों में घूमती रहती है। जीवन का भी तो वही क्रम है। बचपन, जवानी, बुढ़ापा और फिर बचपन। क्या समाज और देश की गति और उन्नति ऐसी ही होती है।
आदमी को अमूमन झूठ पसंद नहीं है, लेकिन झूठ के आधार पर पद और पैसा पसंद है। आप झूठ बोल रहे हैं और सफल नहीं हो रहे तो आप लुच्चे -लफंगे हैं और अगर आप सफल हो गए तो आप पूजे जाते हैं। दुनिया विचित्रताओं से भरी है। एक अच्छी बात दुनिया में यह है कि इतिहास में अच्छाई ही दर्ज होती है। अगर बुराई भी दर्ज होती है तो नकारात्मक रूप से ही। इतिहास में गांधी भी हैं और हत्यारे गोडसे भी। गांधी से बहुतों को खुन्नस थी। आज भी है। जिनकी हत्या हुई, उनके खिलाफ भी प्रपंच रचे जाते हैं और हत्यारे के पक्ष में भी तर्क दिए जाते हैं। मैं गांधी के रचना- खंडों को उलट-पुलट कर देख रहा था। गांधी ने हिन्दू धर्म की अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज भी लगाई और आंदोलन भी चलाया। इसके लिए तथाकथित हिन्दुओं ने गांधी को बहुत कुछ कहा। एक ने कहा कि अस्पृश्यता सनातन धर्म का अंग है। अस्पृश्यता के खत्म होने का मतलब सनातन धर्म का खत्म होना है। गांधी ने साफ-साफ कहा कि जिस धर्म में अस्पृश्यता है, उसे मैं धर्म नहीं मानता। कट्टर हिन्दू गांधी को कैसे स्वीकार करते? उन्होंने गांधी की हत्या के लिए षड्यंत्र रचा। छह- सात बार हमले हुए। नत्थूराम गोडसे ने अंततः गांधी को गोलियों से भून दिया। गोडसेवादी गांधी की हत्या के पक्ष में तर्क रच और गढ़ रहे हैं। ये कायर और धूर्त लोग हैं। गांधी को हराना था तो उनको वैचारिक रूप से हराते, शारीरिक रूप से हत्या कर नहीं। गांधी की हत्या गांधी की हार नहीं थी। हार तो गोडसे की थी या फिर हत्यारे के समर्थकों की। सनातन धर्म अगर ऐसे हत्यारों को स्पेस देता है तो धर्म के बारे में पुनर्विचार की ज़रूरत है। यह तो अच्छा हुआ कि मोहन भागवत ने खुलकर कह दिया कि 1947 में आजादी नहीं मिली। जब आजादी ही नहीं मिली तो उस संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं का उनके लिए कोई मतलब नहीं है। यही वजह है कि मोहन भागवत की संस्था में कोई लोकतंत्र नहीं है। लगभग राजशाही है। एक तरफा प्रवचन होता है। कांशीराम के बारे में कहा जाता था कि खाता न, बही, कांशीराम जो कहे, वही सही। यह बात तो मोहन भागवत पर ज़्यादा सटीक बैठती है।

 

Mohan Bhagwat statement
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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