चढ़ती थी उस मजार पर चादरें बेशुमार
बाहर बैठा कोई फकीर सर्दी से मर गया।।
आज चादर चर्चा में है। उर्स के अवसर पर अजमेर की दरगाह पर चादर चढ़ा आये मोदी के दूत। जेल में सुरंग बोलकर हा हा मत कीजिये। दरगाह पर चादर! यह हा हा ही ही का विषय नहीं है, बल्कि एक हकीकत है। ईदगाह में मोदी! अटपटी खबर जैसी है पर यह सत्य है कि दरगाह के दीवाने हुए मोदी।
झूठा ही सही, अमन का ख्याल मोदी के मन में तो आया। मन की बात अब अमन की बात तक पहुँच गयी है। ये हुई न काम की बात! अच्छा लग रहा है इसे देख सुन कर। खुदाई करते-करते अगर खुदा याद आ जाए तो क्या बुरा है? हमारे यहां तो मरा-मरा कह कर अंगुलीमाल के राम हो जाने का किस्सा पुराना है।
अल्पसंख्यक मंत्री किरन रिजीजु मोदी जी की तरफ से चादर चढ़ा कर अजमेर से लौट आये हैं। दरगाह प्रमुख ने सरकार की इस पहल को लेकर खुशियां भी जाहिर की है। चादर मखमल की थी, पर अहसास मखमली नहीं था। जो कुछ देश में हो रहा है उसका सम्बन्ध विनाश से ही है, विकास से नहीं। विस्मरण किसी भी सभ्यता की मजबूत बुनियाद होती है। जख्मों को कुरेद-कुरेद कर जब कोई परिवार नहीं बचता है तो देश क्या खाक बचेगा?
इसी भारत में अपमान को याद कर महाभारत हो गया था। अपमान दुर्योधन नहीं भूल पाया और द्रोपदी नहीं भूल पायी। अपमान का बदला अपमान। परिवार को एकजूट रखने के लिए बहुत कुछ सहना और भूलना पड़ता है। दुर्भाग्य है कि हिन्दू और मुसलमान की नई जंग नई जमीन खोज रही है। इसका खुरदरा अहसास हमें भी हो रहा है और आपको भी हो रहा होगा। काश! मोदी की यह मखमली चादर मखमली अहसास कराती?
पीछे लौटने के बजाय आगे देखना चाहिए। यह मोदीकाल है। मुगलकाल के बारे में अब क्या सोचना? आगे का समर बिल्कुल नया होगा। सदियों पुराने औजार से हम इस नयी लड़ाई को कैसे लड़ेंगे? नयी सदी की नयी चुनौतियाँ हैं। पुरानी सदी में समाज को उलझाना उचित नहीं होगा।
मोहन भागवत ने जब खुदाई का विरोध किया तो देश ने राहत की सांस ली। मुस्लिम मंचो से भागवत के बयान की खूब सराहना हुई। गजब का यह संयोग है कि जहां जो स्थान खुदा, वहां भगवान ही निकला? खुदा! खुदा!! आ खुदा!!!
मैली चादर ओढ़ के कैसे किसी ईदगाह या दरगाह पर जाया जा सकता है? मन ही मन शरम तो आ ही रहा होगा। चादर के खिलाफ हिन्दू सेना ने मामला दर्ज कर रखा है कि यह दरगाह नहीं, देवालय है। 24 जनवरी को सुनवाई भी होनी है। काश! सरकार देश में हो रही इस लम्पटई पर रोक लगाती? खुदाई तेल की होती, गैस की होती, सोना चांदी खनिज की होती तो हिन्दू भी मजबूत होता और मुसलमान भी मजबूत होता। हम जानते हैं कि भूखे नंगे बेरोजगार लोगों को कट्टर बनाना आसान होता है। दुर्भाग्य है कि धर्म की आड़ में सरकार अपने अभाव को ढकती रहती है।
चादर कबीर की थी जो बेदाग थी। जस की तस उन्होंने चादर वापस की थी। सत्ता की झीनी झीनी बीनी चादर में दाग लग ही जाती है। जो जाए लंका वही हो जाय रावण। कौन हनुमान होकर लौटता है? फिलहाल चादर की धुलाई ही हो रही है। और भी जगह यूज होना है। बिना चादर में दाग लगाए आप चादर चढ़ाने लायक नहीं हो सकते। राजनीति में कुछ दाग अच्छे हो जाते हैं। वाशिंग पाउडर नरेन्दर! बिना इस्तेमाल का ही इनपर विश्वास करें। भाजपा के वाशिंग मशीन का क्या कहना?
चादर से हम गरीबों का रिस्ता सनातन रहा है। चढ़ाने के लिए हमारे चादर की औकात कहाँ थी? बिछाने और ओढने के लिए चादर की किल्लत थी। गेनरा भी भोथरा हो चला था। किस्मत की उस फटी चादर का कोई रफूगर नहीं था। चादर छोटी ही रही जिंदगी की। सर ढकने पर पैर उघरता था और पैर ढकने पर सर उघरता था। मां का उपदेश अनसुना होता रहा कि जितनी बड़ी चादर उतना ही पैर फैलाना चाहिए।
मोदीजी को भी उतना ही पैर पसारना चाहिए जितनी बड़ी इनके चिंतन और चरित्र की चादर है। गुड़ खाये और गुलगुले से परहेज? कटोगे और बटोगे का क्या होगा? मूँह में राम है तो बगल में भी राम ही होना चाहिए। क्या छुरी रखना? तिरछी टोपी वाले जब आपको सीधा ही चलने नहीं देंगे तो आप क्या करेंगे?
बहाना कुछ भी हो थोड़ा मीठा हो जाय। चादर के बहाने सरकार का चरित्र बदल जाय तो बेहतर ही है। आशावान मन कभी हारता नहीं। बर्फ की चादर पसरी हुई है। काँपते हाथ से आशा का गीत लिख रहा हूँ। दुष्यन्त कुमार की चादर पर भी घोर तिमिर के बीच आशा की किरण सजी हुई है-
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अँधेरी की सड़क उस भोर तक जाती तो है
नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है…..
Prev Post
Next Post