डॉ योगेन्द्र
मुझे ट्रंप और मोदी जी की वह तस्वीर अपमानजनक लगी, जिसमें मोदी जी बैठ कर किसी कागजात पर हस्ताक्षर कर रहे हैं और पीछे ट्रंप खड़े हैं। लगता ऐसा है कि ट्रंप जबरदस्ती मोदी जी से हस्ताक्षर करवा रहे हैं। जैसे गाँव में जमींदार के कारिंदे किसानों के साथ किया करते थे। अंतर यह आया है कि पहले अंगूठे लगाये जाते थे और अब हस्ताक्षर किये जाते हैं। देश में दोनों तरह के एक्सपर्ट हैं। एक का कहना है कि मोदी ट्रंप के जबड़े से भारत के हितों को खींच कर लाए। दूसरी ओर के एक्सपर्ट कह रहे हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्ते टैरिफ के सवाल पर उलझे हैं। अमेरिका जबर्दस्ती कह रहा है कि उससे ऑयल खरीदना होगा, चाहे उसके मूल्य कुछ भी हों। हथियार लेना होगा और फाइटर विमान भी खरीदना पड़ेगा। यह बात समझ से परे है कि जब रूस सस्ता ऑयल देगा तो अमेरिका से महंगे दामों पर ऑयल कोई क्यों खरीदेगा? अगर कोई खरीदता है, इसका मतलब है कि उसने घुटने टेक दिया है। ट्रंप की शातिरपना देखिए। एक तरफ मोदी जी को वे दो विशेषणों से नवाजते हैं- ‘टफ नेगोशियटर‘ और ‘ग्रेट मैन’। मोदी जी फुलकर कुप्पा हो गए होंगे और मीडिया उसकी प्रशंसा में न जाने कौन-कौन से कसीदे गढ़ेगा। मुँह पर प्रशंसा कर गले काटने में ट्रंप को महारत हासिल है। वे जिस ओर बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि विश्व एक नये संकट की ओर बढ़ रहा है।
अखबार में यह सब पढ़ कर कुछ अच्छा नहीं लगता। हम कितने नकारा देश हैं। केवल बच्चे पैदा कर रहे हैं। सबसे बड़ी आबादी वाला देश सबसे ज्यादे कर्ज और मजबूरी में फँसा है। कभी चीन धकिया देता है, कभी अमेरिका बॉस बन जाता है। घरेलू बाजार विदेशी सामानों से अटा पड़ा है। हम नया कुछ आविष्कार नहीं कर सकते। अपने देश को सपनों का देश नहीं बना सकते। हमारी जरूरत के अनुसार समझौते नहीं हुए हैं, बल्कि अमेरिका की जरूरतों के अनुसार समझौते हुए हैं। हमें जो चीज़ें नहीं चाहिए, वह भी खरीदनी है, क्योंकि अमेरिका की जमींदारी कायम रहे। घर का बाघ बाहर में कितना दयनीय होता है! ट्रंप ने टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी तो अमेरिका जाने से पहले मोदी जी ने अपनी टैरिफ घटा दी। मैं हर सुबह टहलने के लिए हवाई अड्डे जाता हूँ। आज भी गया तो गेट पर खड़े सिपाही ने अंदर जाने से रोक दिया। मैंने पूछा कि क्यों रोक रहे हैं तो उन्होंने कहा कि सबको रोक रहे हैं। मैंने कहा कि प्रधानमंत्री 24 जनवरी को भाषण देंगे। अभी तो कई दिन बचे हैं। रोकना है रोकिए, लेकिन अच्छा नहीं कर रहे हैं। नौ दिन पहले से वहॉं जाने से रोकना जहाँ प्रधानमंत्री आयेंगे, क्या गजब का फैसला जिला प्रशासन का है। यह देश क्या प्रधानमंत्री का ही है? जनता कुछ नहीं है। मुख्यमंत्री आये थे तो एक दिन रोका गया। प्रधानमंत्री आ रहे हैं तो नौ दिन। बादशाह भी ऐसा नहीं करता होगा, जैसा अब हो रहा है। सरकार भी देश में क्या कर रही है? जनता को दूहने के सिवा? जब भिखमंगे से भी जीएसटी के माध्यम से टैक्स वसूले जायें, इससे भयावह और क्या होगा? घर में टाँय-टाँय और बाहर फिस्स।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)