ब्रह्मानंद ठाकुर
आज का यह ठाकुर का कोना बांग्ला के प्रख्यात उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की स्मृतियों को समर्पित है। 16 जनवरी इनकी पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 1938 में 61 बर्ष की उम्र में इस महान साहित्यकार का निधन हुआ था। शरत बाबू उपन्यासकार के साथ-साथ कहानीकार, नाटककार और निबंधकार भी थे। भारतीय नवजागरण काल के इस महान साहित्यकार से मेरा पहला परिचय बचपन में छात्र जीवन के दौरान उनकी कहानी ‘महेश’ से हुआ था। वह कहानी हमारी तीसरी या चौथी कक्षा के हिन्दी पाठ्यक्रम में शामिल थी। तब मेरे बाल मस्तिष्क पर उस कहानी का जो प्रभाव पड़ा, वह अबतक कायम है। आज थोड़ी चर्चा उस कहानी की। कहानी के पांच मुख्य पात्र हैं — गफूर, गफूर की दस बर्षीया बेटी अमीना, महेश, पंडित तर्क रत्न, और जमींदार शिवशंकर बाबू। महेश गफूर के प्यारे बैल का नाम है। गफूर भूमिहीन है। टूटी- फूटी जर्जर झोंपड़ी में बेटी अमीना के साथ रहता है। बंटाई पर थोड़ी-बहुत खेती करता है लेकिन सूखा पड़ने के कारण खेती मारी गई है। इधर कई दिनों से गफूर बुखार से पीड़ित हैं। महेश को खिलाने के लिए उसके पास एक मुठ्ठी चारा तक नहीं है। खुद कई दिनों से बुखार से पीड़ित होने के कारण वह उसे चराने भी नहीं ले जा रहा है। एक दिन उसी रास्ते से पंडित तर्क रत्न गुजर रहे होते हैं। बैल को इस हालत में देख गफूर को खूब डांट-फटकार करते हैं। गफूर उनको अपनी लाचारी बताते हुए उनसे अपने महेश के लिए उधार कुछ पुआल मांगता है। वे देने से मना कर देते हैं, जबकि उनके पास पुआल की कमी नहीं है। गफूर उदास हो जाता है। एक दिन महेश रस्सी तोड़ कर एक किसान के खेत मे चला जाता है। किसान उसे पकड़ कर मवेशी थाने में पहुंचा देता है। गफूर अपनी थाली बंधक रख, जुर्माना देकर महेश को वापस लाता है। फिर एक दिन महेश रस्सी तोड़ कर जमींदार की फुलवारी में चला जाता है। वहां वह फूल के पौधों को बर्बाद कर देता है। जमींदार इस अभियोग में गफूर की बड़ी निर्दयता से पिटाई कर देते हैं। गफूर जमींदार के यहां से वापस घर लौटकर बदहवास बिछावन पर लेट जाता है। उसे तनिक भी होश नहीं है। तभी उसके कानो में बेटी अमीना की चीत्कार सुनाई देती है। वह बाहर निकलता है तो देखता है, अमीना जमीन पड़ गिरी रो रही है। जिस घड़े में वह पानी ला रही थी वह घड़ा फूट कर पानी जमीन पर बह रहा है और प्यासा महेश जमीन में मुंह सटाए पानी पी रहा है। बीमार गफूर होश हवास खोते हुए सामने पड़े हल के सिरे को उठा कर गुस्से में महेश के माथे पर मारता है। महेश की मौत हो जाती है। पंडित तर्क रत्न और जमींदार दंड -जुर्माने के भय से उसी दिन अंधेरी रात में गफूर अपनी बेटी अमीना के साथ घर छोड़ देता है। अमीना जब घर के भीतर से पिता के खाने वाली पीतल की थाली और पीतल का लोटा उठा कर चलने लगती है तब गफूर ने कहता है ‘यह सब यहीं रहने दें बिटिया, इससे अपने महेश का पिरासचित होगा।’ फिर आंगन से निकलकर दरवाजे पर महेश के खूंटे के निकट पहुंच कर गफूर फूट-फूट कर रोते हुए आसमान की तरफ मुंह उठा कर कहता है — अल्लाह! मुझे जितनी इच्छा हो सजा देना, पर मेरा प्यारा महेश मर गया। उसके चरने-खाने तक को किसी ने जमीन नहीं दी। जिसने तुम्हारी दी हुई घास और तुम्हारा दिया हुआ पानी उसे वंचित कर दिया, उसे कभी माफ नहीं करना। कहानी बड़ी मार्मिक है जो तत्कालीन सामंती व्यवस्था के शोषण उत्पीड़न को दर्शाती है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)