मार्क्सवाद को खारिज नहीं किया जा सकता
मार्क्सवाद को खारिज करने का मतलब है विज्ञान को खारिज करना
ब्रह्मानंद ठाकुर
मार्क्सवाद एक वैज्ञानिक जीवन दर्शन है। पूंजीवादी शोषण -उत्पीडन का जड़मूल से खात्मा मार्क्सवादी, लेनिनवादी विचार धारा से ही सम्भव है। चूंकि मार्क्सवाद आज पूंजीवाद के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। यह शोषित-पीड़ित जन को शोषण से मुक्ति की राह दिखाता है। इसलिए मार्क्सवाद के खिलाफ एक बड़ा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि यह विदेशी विचारधारा है। आये दिनों विभिन्न प्रचार माध्यमों, पाठ्य-पुस्तकों में यही दुष्प्रचार किया जा रहा है कि मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा अपने देश के लिए अनुकूल नहीं है। ऐसा करते हुए वे सड़ी-गली, शोषणमूलक पूंजीवादी व्यवस्था को ही टिकाए रखना चाहते हैं। उन्हें शायद इस सच्चाई की समझ नहीं है कि किसी भी ज्ञान-विज्ञान को देश विदेश की सीमा में बांधा नहीं जा सकता। यह सार्वदेशिक होता है। वैज्ञानिक उपलब्धियां और वैज्ञानिक जीवन-दर्शन विश्व मानवता के कल्याण के लिए होता है। थोडा पीछे मुड़ कर देखने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अपने देश में जो संसदीय लोकतंत्र है, संवैधानिक व्यवस्था है वह हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों से नहीं आई है। ये चीजें हमने पश्चिमी दुनिया से ली है। सिर्फ शासन व्यवस्था ही नहीं, विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांत, आधुनिक शिक्षा प्रणाली, यातायात के साधन, उद्योग, कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित नई-नई तकनीक आदि के क्षेत्र में हमारी जो उपलब्धियां हैं वे सभी पश्चिमी दुनिया की ही देन है। विज्ञान की देन है। मार्क्सवाद को खारिज करने का मतलब है विज्ञान को खारिज करना। ऐसे लोग अध्यात्मवाद और यथा स्थिति के पृषठपोषक हैं। अध्यात्मवाद लोगों को बताता है कि ईश्वरीय सत्ता ही सर्वोपरि है। उसी की कृपा से सब कुछ होता है। उसी ने अमीर-गरीब बनाए हैं। उसी की इच्छा से समाज में आर्थिक विषमता कायम है। इस धरा पर सभी अपने पूर्व जन्म का फल भोगते हैं —आदि आदि। समाज में ऐसी सौच तब पैदा हुई जब आधुनिक विज्ञान का आगमन नहीं हुआ था। लोग भाववादी तरीके से हर घटना, परिघटना पर विचार करते थे। अध्यात्मवाद का यह चिंतन पूरी तरह से मनगढ़ंत चिंतन है। यह न तो तर्क संगत है, न विज्ञान द्वारा प्रमाणित ही है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के युग में ऐसी सोच का कोई मायने नहीं है। मार्क्सवाद ने ही वैज्ञानिक तरीके, निरीक्षण-परीक्षण से यह साबित किया है कि पूरी प्रकृति ही वस्तु द्वारा निर्मित है। यह अपने नियमों से ही नियंत्रित, संचालित और परिवर्तनशील है। इस परिवर्तन को चाहकर भी रोका नहीं जा सकता। मार्क्सवाद ने यह भी दिखाया है कि इन्हीं नियमों के तहत मनुष्य ने आदिम समाज से लेकर, दासप्रथा, राजतंत्र और फिर पूंजीवादी समाज व्यवस्था तक का सफर तय किया है। आगे इन्हीं नियमों के तहत समाजवाद और फिर साम्यवाद आएगा। इसलिए मार्क्सवाद को विदेशी दर्शन बताकर खारिज नहीं किया जा सकता।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Kh150abar उत्तरदायी नहीं है।)