महाराष्ट्र चुनाव में कौन बड़ा खिलाड़ी- महायुति या महाविकास अघाड़ी

महाराष्ट्र चुनाव: सज्जन और सभ्य लोगों के लिए राजनीति अब दूर का ढ़ोल

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बाबा विजयेन्द्र
महाराष्ट्र का चुनाव अब अपने चरम पर पहुँच गया है। बचे हुए दस दिनों तक नेता लोग अपना गला साफ करते नजर आएंगे। लोक लुभावन भाषण और आश्वासन की सुनामी नजर आएगी। खट्टा कुछ ज्यादा होगा मिठास कम होगा। कड़वाहट असीम है। सारी मर्यादाएं दम तोड़ती नजर आ रही है। असहमति दुश्मनी में तब्दील हो चुकी है। एक दम गलाकाट प्रतियोगिता हो रही है महायुति और महाविकास अघाड़ी में।

जनता को लुभाने के लिए हर तरह के हथकंडे इश्तेमाल किये जा रहे हैं। हिन्दू मुसलमान करना भारत के चुनाव की खास पहचान तो बन हीं चुकी है। अब एक कदम और हम बढ़ चुके हैं। अब बात पड़पीड़ा वाली हो गयी है। विश्नोई गैंग भी इस पॉलिटिकल गैंग के सामने बहुत छोटा है। आपराधिक वृतियाँ राजनीति को घेर ली है। सज्जन और सभ्य लोगों के लिए राजनीति अब दूर का ढ़ोल हो चुकी है। आप जितने बड़े फरेबी उतने ही बड़े नेता? जनता स्वयं इस फरेब में फंसकर आत्मघात को न्योत रही है।

ऊंट कि कर्तव्यविमूढ़ है अपनी करबट को लेकर। हर चुनाव में यह ऊंट करबट लेता रहा है पर व्यवस्था कभी करबट नहीं ले पायी। ऊंट, बेमतलब का बदनाम हो रहा है। ऊंट अपने को घसीटे जाने को लेकर व्यथित है। कभी-कभी इनके करबट का इन्हे ही जानकारी नहीं होती है। करबट किस तरफ और परिणाम किस तरफ चला जाता है। जब इनके करबट का कोई असर ही नहीं है तो फिर यह जुमलेबाजी क्यों?

महाराष्ट्र का चुनाव कुछ ज्यादा ही पेंचीदा हो चूका है। दल और इनके चुनाव चिन्ह को लेकर जनता परेशान है। घड़ी शरद के हाथ से फिसल गई। बिना इसके इश्तेमाल किये ही भाजपा ने इस पर विश्वास कर लिया। तीर भी उद्धव के कमान से निकल कर एकनाथ के पास आ गया है। उद्धव के पास अब मशाल है और शरद पवार के पास तुरही। प्रतिबद्धता का भी कोई पैमाना नहीं है। कौन किसके साथ कब तक रहेगा यह अनुमान लगाना कठिन है। सत्ता प्राप्त करना और सत्ता में बने रहना ही पहली प्राथमिकता है। किसी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता की इस चुनाव में कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

पूरे तौर पर एक अवसरवाद का खेल खेला जा रहा है। अभी-अभी देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने की खबर आयी है। अमित शाह के बयान से यह संकेत मिल रहा है कि महायुति के नेता देवेंद्र फडणवीस होंगे। अगर ऐसा होता है तो महायुति का क्या होगा? अजित पवार और एकनाथ कहाँ जायेंगें? क्या मुख्यमंत्री शिंदे उपमुख्यमंत्री का पद संभालेंगे? अजीत पवार को केंद्र का सुख दिया जाएगा? यह एक कल्पना है। यह सच भी हो सकता है और इससे कुछ बड़ा भी सच सामने आ सकता है।
घर वापसी भी हो सकती है। टूटे हुए मलवे एक जगह आ सकते हैं। महत्वकांक्षा की कुछ अलग ही कहानी यहां घटित होगी। पूरी सरकार भी शिफ्ट हो सकती है। जनता केवल चुनाव को निबटा देने की ही तैयारी में है। केवल औपचारिकता निभा रही है जनता।
इस बीच अल्पसंख्यक को लेकर जो राजनीति हो रही है वह न तो नेक है न ही इस देश के लिए सेफ है। इसमें विभाजन के बदबू आ रहे हैं। मुसलमान फिर एक मतदाता सूची बन जा रहे हैं। एक सम्मान जनक नागरिक होने की भूमिका अब ख़त्म होती दिख रही है। भाजपा तो विरोध में है ही पर विपक्ष भी इन्हें वोटबैंक के अलावे कुछ भी नहीं समझती।
सीन खराब है। जो पिक्चर बन रहा है वह बहुत ही गन्दा है। प्रबुद्ध समाज को ही आगे आना होगा। नहीं तो ये सबकुछ स्वाहा कर देंगे। एक नये पाकिस्तान का शिलान्यास ही कर रहे हैं। नफरत की अभूतपूर्व स्थिति बन चुकी है। यह 47 से भी बदतर स्थिति में हम हैं। अगर देश हमारी चेतना में है तो इसे बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

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