मुजफ्फरपुर का लोटा विद्रोह

लोटा विद्रोह जेल के कैदियों ने किया था

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ब्रह्मानंद ठाकुर
लोटा विद्रोह। सुनने में यह शब्द बड़ा अटपटा लगता है। लेकिन यह सच है। सन्1857 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में लोटा विद्रोह हुआ था। यह विद्रोह जेल के कैदियों ने किया था। इन कैदियों में अधिकांश गरीब किसान थे। विद्रोह का उनका हथियार जेल में मिला पीतल का लोटा था। Waris Ali, rebellion, इस विद्रोह के नायक थे। ये दिल्ली के शाही घराने से ताल्लुक रखते थे और वक्त की मार से मुजफ्फरपुर आकर पुलिस की नौकरी करने लगे थे।
इस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत के खिलाफ जनता को भड़काने के आरोप में 23 जुलाई 1857 के दिन इनको फांसी पर लटका दिया गया था। उन दिनों दरभंगा और मुजफ्फरपुर को मिलाकर तिरहुत एक जिला हुआ करता था। मुजफ्फरपुर के बरुराज पुलिस चौकी पर वारिस अली बतौर पुलिस जमादार कार्यरत थे। किसान-मजदूरों पर जमींदारों और इस्ट इंडिया कंपनी का संयुक्त अत्याचार चरम पर था। किसानों ने जब इसका विरोध शुरू किया तो बड़ी संख्या में उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। तब कैदियों को पानी पीने के लिए पीतल का लोटा दिया जाता था। कैदी यदा-कदा इस लोटे को हथियार बना जेल में हंगामा कर देते थे। जेल प्रशासन को यह संदेह हुआ कि कैदी चोरी छिपे पीतल के लोटे को गला कर उससे घातक हथियार बना जेल अधिकारियों पर कभी भी हमला कर सकते हैं। इसी संदेह के आधार पर कैदियों से पीतल वाला लोटा वापस लेकर उसके बदले मिट्टी से बना लोटा दिया। कैदी इसका पुरजोर विरोध करने लगे। जब यह विरोध विद्रोह का रूप ले लिया तब मैजिस्ट्रेट ने विद्रोह को दबाने के लिए कैदियों पर गोली चलवा दीं। जेल के पास ही सोडा गोदाम था, जहां दूर देहात से काफी लोग आते-जाते रहते थे। घटना के वक्त वहां काफी लोग जमा हो गये। जेल में बंद कैदियों में अधिकांश किसान थे। गोलियों की आवाज सुन जेल के बाहर बड़ी संख्या में लोग जमा हो गये। जेल प्रशासन के प्रति उनका आक्रोश बढता जा रहा था। बढ़ती भीड़ और उसका आक्रोश देख जेल प्रशासन ने अपना आदेश वापस ले लिया। कैदियों को फिर से पीतल वाली लोटा वापस लौटा दिया गया।
उधर जमींदारों और नील कोठी के मालिकों ने कलक्टर को यह जानकारी दी कि जमादार वारिस अली किसानों से मिला हुआ है और उन्हें इस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध भड़का रहा है। इसके बाद वारिस अली पर पैनी नजर रखी जाने लगी। 23 जून 1857 को वारिस अली को गिरफ्तार कर लिया गया। 6 जुलाई 1857 को उन्हें इस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध षड्यंत्र करने का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई गई। लोटा विद्रोह के इस नायक को 23 जुलाई 1857 को फांसी के तख्ते से लटका दिया गया। 1857 की क्रांति का परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया ने भारत में इस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर यहां की शासन व्यवस्था अपनी सरकार के अधीन कर लिया।

 

Lota-rebellion-Muzaffarpur
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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