असम्भव है समाज में रहते हुए राजनीति से अलग रहना

राजनीति के प्रति आम लोगों की धारणा

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ब्रह्मानंद ठाकुर
छात्रों को राजनीति नहीं करनी चाहिए। कर्मचारियों को राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए। शरीफ और ईमानदार लोगों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है। आमतौर पर समाज में राजनीति को लेकर ऐसी ही बातें कही और सुनी जा रही है। ऐसा अनायास नहीं है। लम्बे समय से विभिन्न राजनीतिक दलों में व्याप्त सिद्धांत हीनता, स्वार्थ लोलुपता, उनका आचार-व्यवहार और ओछी हरकतों को देख कर राजनीति के प्रति आम लोगों में ऐसी धारणा पैदा हुई है। कुछ लोगों को तो यह भी कहते सुना जा रहा है कि उन्हें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि ऐसा नहीं है। असम्भव है समाज में रहते हुए राजनीति से अलग रहना। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त राजनीति ही उसके जीवन को संचालित और नियंत्रित करती है। हां,यह बात भी सही है कि यह राजनीति वैसी राजनीति नहीं है जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है।
राजनीति का अर्थ संकुचित नहीं, बड़ा व्यापक है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस समाज में वह रहता है उसकी एक समाज व्यवस्था होती है। कायदे-कानून होते हैं। उसकी अर्थव्यवस्था होती है। सरकार और प्रशासन होता है। शिक्षा-दीक्षा, साहित्य-संस्कृति, नीति-नैतिकता, कृषि, उद्योग, रोजगार सहित मानव जीवन के विभिन्न कार्यक्षेत्रों को मिला कर यह समाज बना है। देश की आर्थिक व्यवस्था उसका प्रशासन, संविधान, कानून उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजी-रोजगार आदि का सम्बन्ध राजनीति से है। राजनीति ही इन सभी को नियंत्रित और संचालित करती है। समाज का हर व्यक्ति इसमें से किसी न किसी क्षेत्र से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। हमारे दैनिक जीवन की जरूरतें जैसे भोजन, वस्त्र, दवा आदि हम बाजार से प्राप्त करते हैं। इस बाजार को नियंत्रित करने का काम सरकार करती है। सरकार भी एक राजनीति के तहत अपना काम करती है। स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग और मेडिकल का पाठ्यक्रम सरकार अपनी राष्ट्रीय राजनीति के आधार पर ही तय करती है। नौकरी, रोजगार, कानून, कचहरी और न्यायपालिका भी सरकार की इसी राजनीति के अधीन है। किसी भी तरह का सामाजिक सम्बन्ध, कर्तव्य बोध, न्याय-अन्याय, उचित-अनुचित का बोध आदि एक राजनीति के तहत ही कानून के द्वारा निर्धारित होता है। यहां यह उल्लेख आवश्यक है कि किसी भी वर्ग विभाजित समाज में राजनीति भी दो तरह की होती है, शोषक वर्ग के हित की राजनीति और शोषित वर्ग के हित की राजनीति। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारा समाज एक वर्ग विभाजित समाज है। इसकी अर्थव्यवस्था पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था है और इसकी राजनीति भी शोषक पूंजीपतियों की ही पृष्ठ पोषक है। ऐसे में राजनीति न करने या छात्र- युवाओं को राजनीति से अलग रहने की बात देश के शोषित-पीडित आवाम के हित में नहीं है।

Living in society and staying away from politics
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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