डॉ योगेन्द्र
नेताओं से बढ़ कर कठजीव कोई नहीं होता। कितना सहता और झूठ बोलता है, तब वह नेतागिरी की दुनिया में टिक पाता है। कोई मामूली धंधा नहीं है और न नेता बनने का कोई स्थायी फंडा है। कितना सहना और कितना झूठ बोलना है- यह भी नेताओं के कौशल पर निर्भर करता है। जिसने इसे साध लिया, समझिए कि वह पक्का नेता हो गया। नेतागिरी में एक अच्छी बात यह होती है कि शुरुआत में आप पूरी ईमानदारी की बातें करें। कुछ ऐसा करें कि लगे कि आपके बनने मात्र से सारे दुख और रोग दूर भाग जायेंगे। भले बाद में दुख और बढ़ जाए और रोग मन और शरीर को ग्रास ले। मजा यह है कि जब आप गद्दी पर रहेंगे तो दूसरे झूठ की जुगत कर लेंगे जो पहले वाले झूठ से ज़्यादा चमकदार होगा। कुर्सी तो आपके पास रहेगी। कुर्सी से जुड़े रहते हैं बुद्धिजीवी, पत्रकार और मीडियाकर्मी। ये लोग ऐसा घनघोर मचायेंगे कि मजाल है कि आपका झूठ पकड़ में आए। ये लोग ही आपको नये झूठ के लिए नयी आइडिया देंगे।
एकाध बुद्धिजीवी या पत्रकार भटके हुए होते हैं। वे आपका विरोध करेंगे। लांक्षन लगायेंगे। इससे आपका बाल बाँका भी नहीं होगा। जनता आपके चरणचुम्बन कर बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की रंगीन बातों में गोते लगाते रहेगी। उसे पता ही नहीं चलेगा कि सत्य क्या है और असत्य क्या है? सत्य के प्रयोग को तो जनता जानती थी। मगर असत्य के प्रयोग से वह अंजान थी। बहुत मुश्किल से जनता सत्य को पहचानने लगी थी, लेकिन अब उसे सत्य बेमतलब और असत्य ज़रूरी लगने लगी है। पाकिस्तान बना ही ग़लत बुनियाद पर है। जिन्ना को लगा था कि हिंदुस्तान के सभी मुसलमान एक हैं। वे दिन को रात कहेंगे तो सभी रात मानेंगे। जीवन में ख़ुशफ़हमी बड़ी चीज़ होती है। उन्होंने पाकिस्तान बनवाया कि सभी मुसलमान एक छत के नीचे रहेंगे, क्योंकि सभी मुसलमान एक देश हैं। भारतीय मुसलमानों के जन्म की कहानी उन्हें मालूम नहीं थी। मुसलमान भी हिन्दुओं की तरह विभिन्न भाषाएं बोलते थे। उन्होंने पंजाब की उर्दू और बंगाल की बंगाली को एक ही रस्सी से नाथना चाहा। नतीजा यह निकला कि पाकिस्तान दो देशों में विभाजित हो गया। सिंध और ब्लूचिस्तान अभी बाक़ी है। जिन्ना ने विभाजन का रास्ता चुना। वह असत्य का प्रयोग कर रहा था। तात्कालिक सफलता के बाद असफलता उसके हाथ में है। भारत में भी यह प्रयोग हो रहा है। जिन्ना ने नारा लगाया था- हिन्दुस्तान के मुसलमानों एक हो। अब नारा लग रहा है- हिन्दुस्तान के हिन्दुओं एक हो। वे यह नहीं जानते कि हिन्दुस्तान के हिन्दू एक भाषा भाषी नहीं हैं और न एक समान संस्कृति है। जीवन जीने की अपनी पद्धति है। विभाजन अगर हथियार बनेगा तो इसका दंश भोगने के लिए तैयार रहिए। विविधता हमारे संस्कार में है। अगर आपके असत्य में तारे हैं और चाँद-सूरज नहीं हैं तो गलती चाँद और सूरज की नहीं है। जलेबी बनाइए, मगर चाशनी में चीनी और ताप की मात्रा को कम नहीं कीजिए। असत्य के अंधाधुंध प्रयोग कहीं देश को नहीं ले डूबे, आपका डूबना तो तय है। जिन्ना और गांधी के अंतर को समझिए। एक की शव यात्रा में लाखों की भीड़ थी तो दूसरे के पास जब मौत आ रही थी तो मुँह पर भिनभिनाती मक्खियों को उड़ाने वाला भी कोई न था।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)